उत्तराखण्ड
उत्तराखंड : ठंड के बीच नैनी झील पहुंचा प्रवासी कार्मोरेंट पक्षी जोड़ा, अन्य जलाशय भी गुलजार
नैनीताल के स्थानीय लोग पनकव्वा व पनडुब्बी के नाम से पक्षी को जानते है
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल। उत्तराखंड और हिमाचल की सीमा पर स्थित आसन झील, नैनीताल झील, रामनगर, उधमसिंह नगर सहित यहां के नदियों व जलाशय इन दिनों प्रवासी पक्षियों से गुलजार है। उत्तराखंड में विभिन्न प्रजातियों के प्रवासी पक्षी पहुंचे हैं। पक्षियों के कलरव पक्षी प्रेमियों और पर्यटकों को अपनी और आकर्षित कर रहे हैं। सर्दियों के मौसम के दौरान विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के प्रवासी पक्षियों को देखा जा सकता है। अक्टूबर से नवंबर और फरवरी से मार्च तक की अवधि में यहां पक्षियों को देखने का सबसे अच्छा समय है। पक्षी प्रेमियों के लिए भी उत्तम पर्यटन स्थल के रूप में उन्हें आने के लिए विवश करता है। देश विदेश की प्रजातियों के पक्षी जैसे मल्लाडर्स, सुर्खाब, कार्मोरेंट, कुरजां यूरेशियन रोलर, वेरिएबल व्हिटियर, रोजी स्टर्लिंग, स्पॉटेड फ्लाईकैचर और स्टेपी ईगल देखने को मिले हैं। वहीं पश्चिम एशिया से रुफस टेल्ड स्क्रब रॉबिन भी देखने को मिल जाती हैं। सरोवर नगरी नैनीताल में प्रकृति ने बहुत कुछ दिया है। लेकिन यहां का जीव जगत भी विभिन्नताओं से भरा है। इन दिनों नैनी झील में साइबेरिया मूल का प्रवासी पक्षी कार्मोरेट यानि पनकौवा पहुंच गया है। इस बार यह पक्षी समय से पहले यहां पहुंचा है। झील में तरह-तरह की कलाबाजी करने वाला यह पक्षी स्थानीय व सैलानियों के आर्कषण का केन्द्र बना हुआ है। उच्च हिमालयी क्षेत्र में ठंड पड़ने के कारण यह पक्षी मध्य हिमालय क्षेत्र के झीलों, नदियों व जलाशयों की ओर पहुंच जाता है। स्थानीय लोग इस प्रवासी पक्षी को पनकव्वा व पनडुब्बी के नाम से जानते है। बीते वर्षों तक यह पक्षी काफी संख्या में यहां पहुंचते थे लेकिन अब तक एक जोड़ा ही यहां पहुंचा है। लगभग दो से पांच किलो वजनी यह पक्षी जब तैरता है तो इसका पूरा शरीर पानी के अन्दर व सिर पानी की सतह से ऊपर रहता है। इसी दौरान यह पक्षी डुबकी लगा कर अपना आहार मछलियों को पकड़ता है। यह पानी के अन्दर 10 मिनट तक डूबा रह सकता है। इसका सिर काले रंग का तथा भूरे रंग का शरीर तथा काले रंग के पंखों के कारण लोग इसे पन कव्वा भी कहते है। लम्बी सफेद गर्दन, काली पीठ व सामने से सफेद रंग का दिखने में सुन्दर यह पक्षी अपने दुश्मनों को आसपास पाते ही पानी में डुबकी लगा कर काफी दूर तक चले जाते है। पानी के किनारे होने पर यह झाड़ियों में भी दुबक जाते है। रात्रि को यह झील किनारे घने पेड़ों में विश्राम करता है। पक्षी विशेषज्ञ लोकेश पांडे का कहना है कि यह पक्षी उच्च हिमालयी क्षेत्र में ठंड बढ़ने के साथ ही मध्य हिमालय क्षेत्रों में आते है। यह नवम्बर से मार्च-अप्रैल तक प्रवास पर रहते है। इसके बाद यह अपने मूल स्थानों में चले जाते है। नैनीताल में बीते दो वर्षों में काफी संख्या में यह पक्षी नैनीताल पहुंचा था और लम्बे प्रवास में भी रहा।
साइबेरिया, अफगानिस्तान व तिब्बत आदि क्षेत्रों से पहुंचता है नैनीताल
नैनीताल। यह पक्षी साइबेरिया, अफगानिस्तान व तिब्बत आदि क्षेत्रों में ठंड बढ़ने, बर्फवारी व झीलों व जलाशयों के जमने के कारण मध्य हिमालय क्षेत्रों में पहुंचते है। उत्तराखंड के मध्य हिमालय क्षेत्रों में यह अपने मछली आहार के लिए झीलों व नदियों में इन दिनों देखे जा सकते है। यह पक्षी समय-समय पर अपने आहार के लिए लगातार स्थान बदलते रहते है। नैनी झील में पहुंचा पन कव्वा को पनडुब्बी भी कहा जाता है। दरअसल यह पानी में पनडुब्बी की तरह तैरता है। इसका मुख्य आहार झीलों, जलाशयों व नदियों में पाई जाने वाली मछलियां है।
विकासनगर का आसन बैराज प्रवासी पक्षियों से गुलजार
देहरादून। सर्दी बढ़ते ही विकासनगर का आसन बैराज प्रवासी पक्षियों से गुलजार होने लगा है। इन दिनों प्रवासी पक्षियों को देखने के लिए पर्यटक भी उमड़ रहे हैं। वहीं प्रवासी पक्षियों के आगमन से आसन झील की आभा देखते ही बन रही है। उत्तराखंड और हिमाचल की सीमा पर स्थित आसन झील इन दिनों प्रवासी पक्षियों से गुलजार है। आसन बैराज में विभिन्न प्रजातियों के प्रवासी पक्षी पहुंचे हैं। पक्षियों के कलरव पक्षी प्रेमियों और पर्यटकों को अपनी और आकर्षित कर रहे हैं। आसन बैराज में सर्दियों के मौसम के दौरान विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के प्रवासी पक्षियों को देखा जा सकता है। अक्टूबर से नवंबर और फरवरी से मार्च तक की अवधि में यहां पक्षियों को देखने का सबसे अच्छा समय है। पक्षी प्रेमियों के लिए भी आसन बैराज उत्तम पर्यटन स्थल के रूप में उन्हें आने के लिए विवश करता है। देश विदेश की प्रजातियों के पक्षी जैसे मल्लाडर्स, सुर्खाब आदि कई प्रवासी पक्षी यहां देखे जा सकते हैं।