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उत्तराखण्ड

उत्तराखंड : गढ़वाल-कुमाऊं मंडलों में कहर बरपा रही है जंगल की आग

अप्रैल की शुरूआत से अब तक 2337 हेक्टेयर जंगल जलकर हो चुका है राख
पहाड़ के जंगलों में घट रही आग की अधिकांश घटनायें मानवजनित माना
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल।
इन दिनों पहाड़ में चीड़ के जंगलों में आग ने कोहराम मचा रखा है। खास बात यह है कि कल्पवृक्ष कहे जाने वाले ओक यानि बांज के घने जंगलों में चीड़ के पेड़ों की उपस्थिति से ओक के जंगलों में भी आग की घटनायें हुईं जो पर्यावरणीय दृष्टि से खतरनाक संकेत है। पहाड़ में आग से सैंकड़ों हेक्टेयर जंगल खाक हो गये है। संसाधनों की कमी के चलते वन महकमें को आग पर नियंत्रण पाने में काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। इस वर्ष प्रदेश के जंगलों में आग कहर बरपा रही है। अप्रैल की शुरूआत से अब तक 2337 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो चुका है। यानी हर दिन 86 हेक्टेयर करीब जंगल को नुकसान हुआ। वहीं, पर्यावरणीय क्षति मतलब प्लांटटेशन व पेड़ों को हुए नुकसान का आंकलन करे तो इसका रोजाना औसत दो लाख 28 हजार 508 रुपये बैठता है। हालांकि, वन विभाग इस बात से राहत में है कि पिछले चार दिनों से मौसम के साथ देने की वजह से प्रदेश भर के जंगलों में आग की कोई बड़ी घटना नहीं हुई। हालत यह है कि पूरे वातावरण में धुंध छाई हुई है। जंगल की आग से जहां वन्य जीव उग्र हो रहे है। वहीं आग आवासीय क्षेत्रों की ओर भी बढ़ रही है। फारेस्ट फायर पर शोध कर चुके लोगों का कहना है कि जंगलों में घट रही आग की अधिकांश घटनायें मानवजनित है। कुविवि के भूगोल विभाग में फारेस्ट फायर विषय पर शोध कर चुके पर्यावरणविद् डा. दीपक मनचन्दा का कहना है कि अधिकांश हिमालय वाइल्डफायर पूरी तरह से मानव द्वारा लगाई जाती है। लोगों का मानना है कि जंगलों में आग लगने के बाद अच्छी घास पैदा होती है। गर्मियों में लगी आग बेकाबू हो जाती है। पश्चिमी देशों की तरह संसाधन नही होने से भारत में खास तौर पर हिमालयी राज्यों खास तौर पर उत्तराखंड में आग बुझाने के लिए वर्षा पर ही निर्भर रहना पड़ता है। इधर लगातार तापमान बढ़ने से फिर एक बार राज्य के चीड़ जंगल आग से धधक रहे है। तापमान में इन दिनों चार डिग्री की बढ़ोत्तरी हुई है।
पहाड़ के वनों को आग से भारी नुकसान का अंदेशा
नैनीताल। इस बार जहां लगातार तापमान बढ़ रहा है वहीं लम्बे समय से वर्षा नही होने के कारण सूखे की स्थित बन चुकी है। इस बार इसका असर पहाड़ के वनों में पड़ने की पूरी आशंका बन गई है। नैनीताल सहित पर्वतीय क्षेत्रों के चीड़ वनों में नमी भी समाप्त हो रही है। मालूम हो कि 2016 में पर्वतीय क्षेत्र के 4470 हैक्टेयर वनों में भीषण आग से भारी नुकसान हो गया था। 2017 में समय-समय पर वर्षा होने के कारण आग की घटनाएं कम हुई। लेकिन इस बार 2016 की पुनरावृत्ति होने के पूरे आसार बने हुए है। अभी वर्षाकाल में 2 माह का समय बचा है। यदि इस दौरान वर्षा नही हुई तो आग पहाड़ों में कोहराम मचा सकती है। इस पर वनाधिकारियों ने चिन्ता भी जाहिर की है।
जंगलों की आग को लेकर हाई कोर्ट के हैं कड़े निर्देश
नैनीताल।
वर्ष 2016 में उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों में भीषण आग का मामला उत्तराखंड हाई कोर्ट में पहुंच गया था। इस मामले हाई कोर्ट ने गम्भीर रूख आख्तियार कर लिया था। इसके साथ ही कड़े निर्देश भी जारी कर दिये। कोर्ट ने शासन को जहां एसडीआरएफ, एनडीआरएफ फोर्स तैनात करने के निर्देश दिये थे। वहीं 24 घंटे आग नहीं बुझने पर डीएफओ, 48 घंटे में वन संरक्षक व 72 घंटे जंगल की आग नहीं बुझने पर प्रमुख वन संरक्षक को सस्पेंड करने तक के कड़े आदेश जारी किये थे। लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सस्पेंड मामले पर स्टे दिया था। लेकिन अफसरों को अन्य आग को रोकने संबंधित आदेशों का पालन करने को लेकर इस बार भी डर बना हुआ है।
आग के दायरे में आते हैं प्रदेश के 23 हजार हैक्टेयर जंगल
नैनीताल।
मिली रिपोर्टो के मुताबिक प्रदेश के 23 हजार हैक्टेयर जंगल आग के दायरे में आते है। रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, अल्मोड़ा, चमोली व पौड़ी जिला के वन सवाधिक संवेदनशील है। पहाड़ों के चीड़ जंगलों में गर्मियों में आग लगना आम बात है। लेकिन सूखे व सरकारी मशीनरी की उदासीनता के कारण यह आग भीषण रूप रख लेती है। जंगलों में नमी नही होने के कारण आग और अधिक भयानक होती है। पहाड़ों में चीड़ के जंगलों में भारी पतझड़ होने के बाद आग की घटनायं शुरू होती है। मार्च माह से शुरू होने पतझड़ तक वन विभाग को पूरी तैयारी करनी पड़ती है। कई स्थानों में वनों में पतझड़ जारी है। वनों की आग चीड़ जंगलों को भारी नुकसान पहुंचाती है। वहीं अब बांज वनों में चीड़ के अतिक्रमण से मिश्रित वनों को भी खतरा पैदा हो गया है।

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