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55 फीट लंबा, 7700 किलो वजन, पाकिस्तान के छक्के उड़ाने वाले इंदिरा का शमशेर जगुआर, पहलगाम का लेगा इंतकाम

55 फीट लंबा, 7700 किलो वजन, पाकिस्तान के छक्के उड़ाने वाले इंदिरा का शमशेर जगुआर, पहलगाम का लेगा इंतकाम
सीएन, नईदिल्ली।
आज नहीं तो कल पाकिस्तान और उसके टुकड़ों पर पलने वाले आतंकियों को पहलगाम अटैक का अंजाम भुगतना ही है। भारत अपने दुश्मनों को यूं ही नहीं छोड़ता। इसका सबूत पाकिस्तान सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक से देख चुका है। अब पहलगाम का इंतकाम में मोदी सरकार के काम इंदिरा गांधी का शेर आएगा। वही शेर जो पिछले 25 सालों से अपने शिकार की तलाश में भूखा है। भारत का लड़ाकू विमान जगुआर ने आखिरी बार 1999 में पाक सैनिकों के रूप में अपना शिकार किया था। जगुआर एक कम ऊंचाई पर उड़ने वाला सुपरसॉनिक फाइटर जेट है। यह विमान आवाज की गति से भी तेज रफ्तार से उड़ान भरता है और यह हल्का फाइटर जेट है। जगुआर फाइटर जेट का मुख्य लक्ष्य दुश्मनों पर हमला करना, हल्की बमबारी और बम गिराना है। जगुआर ने कारगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाते हुए पाकिस्तान के छक्के उड़ाए थे। अगर पाकिस्तान पर भारत अटैक करता है तो इसमें मोदी सरकार के बाहुबली यानी राफेल के साथ इंदिरा का शेर यानी जगुआर भी होगा। वही जगुआर जो पाकिस्तान को आज से 25 साल पहले कारगिल के युद्ध में अपनी ताकत का एहसास करा चुका है। बहरहाल, पहलगाम अटैक के बाद भारत और पाक जंग के मुहाने पर हैं। कभी भी दोनों देशों के बीच जंग छिड़ सकती है। कंप्लीट जंग न भी हो मगर भारत बदला तो जरूर लेगा। ऐसे में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई में भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान जगुआर की भूमिका अहम होगी। जगुआर लड़ाकू विमान 55.22 फीट लंबा और 28.51 फीट चौड़ा है। उसकी ऊंचाई 16.04 फीट है। अगर वजन की बात करें तो यह विमान 7700 किलोग्राम का है। जगुआर 1700 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से उड़ान भर सकता है। हथियार क्षमता में 30 एमएम के दो एडीईएन या डीईएफए गोले शामिल हैं। भारतीय वायुसेना का जगुआर मल्टी.रोल वाला लड़ाकू विमान है। यह हर तरह के मिशनों यानी ग्राउंड अटैक से लेकर एयर अटैक को अंजाम देने में माहिर है। जगुआर को भारतीय वायुसेना का शमशेर कहा जाता है। यह इंदिरा के जमाने यानी 1970 के दशक से वायुसेना का शान बना हुआ है। अब इससे भी खतरनाक लड़ाकू विमान भारत के पास हो गए हैं। मगर इसे भी समय.समय पर आधुनिक तकनीकों के साथ अपग्रेड किया गया है। भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति में जगुआर से एलओसी यानी नियंत्रण रेखा के पास पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों, तोपखाने या आतंकी शिविरों को ध्वस्त किया जा सकता है। 1971 में भी भारत और पाकिस्तान के बीच जंग हुई थी उसके बाद जगुआर जैसे लड़ाकू विमानों की जरूरत महसूस हुई।  भविष्य को देखते हुए पाक से युद्ध के बाद इंदिरा गांधी ने सबसे पहले इसे खरीदने का फैसला किया। जगुआर एक ब्रिटिश-फ्रांसीसी डीप-पेनेट्रेशन स्ट्राइक विमान है। इसे 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद भारतीय वायुसेना की आधुनिकीकरण योजना के तहत चुना गया। वो इंदिरा गांधी की ही सरकार थी जिसने 1970 के दशक में वायुसेना की डीप हमले और ग्राउंड-अटैक क्षमताओं को मजबूत करने के लिए जगुआर को प्राथमिकता दी गई। इसके बाद साल 1978 में इंदिरा की सरकार में ही भारत ने यूके की रॉयल एयर फोर्स से 18 जगुआर विमानों की खरीद का सौदा किया। भारत में एचएएल यानी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को इस विमान को बनाने का लाइसेंस मिला। इंदिरा की पहले के कारण ही पहला जगुआर 1979 में भारतीय वायुसेना में शामिल हुआ। तब मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार सत्ता में थी। यहां यह बताना जरूरी है कि भले ही सप्लाई के वक्त मोरारजी देसाई की सरकार थी, मगर इसकी डील की कवायद, बातचीत और निर्णय प्रक्रिया सब इंदिरा गांधी के 1971-1977 कार्यकाल में पूरी हुई थी। इसके आने से ही भारतीय वायुसेना की ताकत में बड़ा इजाफा हुआ था। बहरहाल, भारत के शमशेर यानी जगुआर की ताकत को पाकिस्तान देख चुका हैं 1999 के कारगिल युद्ध में जगुआर ने भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई थी। इस जगुआर की वजह से पाकिस्तान घुटनों पर आया था और उल्टे पैर भागने को मजबूर हुआ था। इसे सरकार ने टोही मिशनों और प्रेसिजन स्ट्राइक के लिए तैनात किया था कारगिल युद्ध के वक्त जगुआर ने हाई अल्टिट्यूड वाले टारगेट्स पर लेजर-गाइडेड बमों और रॉकेट्स के साथ हमले किए। इससे पाकिस्तानियों की बैंड बज गई। अब अगर हमला होता है तो यह मोदी सरकार के लिए राफेल के बाद बड़ा हथियार बनेगा। जगुआर जमीन और हवा दोनों से मार करता है। यह विमान रात में भी काम कर सकता है, जिसमें अत्याधुनिक इन्फ्रारेड सिस्टम और रडार लगे रहते हैं। इस फाइटर जेट की रेंज 800 किलोमीटर से ज्यादा है और यह 1ण्5 मैक की स्पीड से आसमान में उड़ सकता है। इस विमान में दो इंजन लगे हैं और यह एक स्थान से दूसरे स्थान तक भारी बम और मिसाइलों को ले जा सकता है। सीमा और जहानों पर हवाई हमले के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है और वायुसेना के जवान इस विमान से ट्रेनिंग लेते हैं।

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