अंतरराष्ट्रीय
ऐतिहासिक अंतरिक्ष अभियान : भारत वो भारत है जिसके पीछे संसार चला..
ऐतिहासिक अंतरिक्ष अभियान : भारत वो भारत है जिसके पीछे संसार चला..
सीएन, नईदिल्ली। अंतरिक्ष को जीतने की प्रतिस्पर्धा इतनी बड़ी थी कि 1950 और 1960 के दशक में लगभग हर साल दो महाशक्तियों में से एक द्वारा एक नया मानदंड स्थापित किया गया था। जब कोल्ड वॉर के दौरान अंतरिक्ष में जाने की प्रतिस्पर्धा चल रही थी तो उस वक्त हमारा भारत क्या कर रहा था? जब जीरो दिया था भारत ने दुनिया को तब गिनती आई, तारों की भाषा भारत ने दुनिया को पहले सिखलाई। देता न दशमलव भारत तो चांद पर जाना मुश्किल था। धरती और चांद की दूरी का अंदाजा लगाना मुश्किल था। 70 के दशक में फिल्म आई थी पूरब और पश्चिम भारत कुमार यानी मनोज कुमार के निर्देशन में बनी इस फिल्म ने गाने के बोल के जरिए ये बताने की कोशिश की कि अपना भारत वो भारत है जिसके पीछे संसार चला और आगे बढ़ा। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ के बीच अंतरिक्ष की दौड़ मानव जाति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण बिंदु रही। इस महाशक्ति की दौड़ ने शीत युद्ध की प्रतिद्वंद्विता को और बढ़ा दिया। मानव जाति पहली बार अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा करना चाह रही थी। अंतरिक्ष पर प्रभुत्व और एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ संयुक्त राज्य अमेरिका और यूएसएसआर दोनों के लिए गर्व का विषय बन गई। अंतरिक्ष को जीतने की प्रतिस्पर्धा इतनी बड़ी थी कि 1950 और 1960 के दशक में लगभग हर साल दो महाशक्तियों में से एक द्वारा एक नया मानदंड स्थापित किया गया था। अब आप सोच रहे होंगे की जब कोल्ड वॉर के दौरान अंतरिक्ष में जाने की प्रतिस्पर्धा चल रही थी तो उस वक्त हमारा भारत क्या कर रहा था? जुलाई 1969 में अमेरिका के अंतरिक्ष यात्रियों ने चांद पर कदम रखा था तो इसी साल भारत ने अंतरिक्ष की खोज के लिए अपना कदम बढ़ाया था। 15 अगस्त 1969 को भारत की आजादी के 22 साल पूरे हुए थे और इसी दिन विक्रम साराभाई ने इसरो की स्थापना की थी। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉक्टर विक्रम साराभाई ने एक ऐसी टीम तैयार की कि एक के बाद एक अनेक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को दूरदर्शी नेतृत्व प्रदान करते आ रहे हैं। प्रोफेसर सतीश धवन, प्रोफेसर यू आर राव, प्रोफेसर कस्तूरीरंगन और माधवन नैयर से लेकर अब एस सोमनाथ तक इसरो का लंबा समृद्ध इतिहास है। हमारा सफर आर्यभट्ट से शुरू हुआ था। अब हम चंद्रयान-3 तक पहुंच गए हैं। देश स्पष्ट रूप से अंतरिक्ष अन्वेषण में एक उभरती हुई शक्ति है और इसके भविष्य के मिशन निश्चित रूप से और भी अधिक महत्वाकांक्षी होंगे। इन मिशनों के अलावा, भारत कई अन्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का भी विकास कर रहा है, जैसे पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान और उपग्रह नेविगेशन सिस्टम। देश संयुक्त मिशनों पर अन्य अंतरिक्ष यात्रा करने वाले देशों के साथ सहयोग करने के लिए भी काम कर रहा है। भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम देश के लिए गर्व का एक प्रमुख स्रोत है, और इसे इसकी बढ़ती तकनीकी शक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इस कार्यक्रम को भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार और इसके वैज्ञानिक और तकनीकी विकास को बढ़ावा देने के एक तरीके के रूप में भी देखा जाता है। भारत का तीसरा चंद्र मिशन, 2022 में लॉन्च किया गया। इसमें एक ऑर्बिटर, एक लैंडर और एक रोवर शामिल है। चंद्रयान-3 का लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर और रोवर की सॉफ्ट लैंडिंग कराना है। चंद्रयान 3 तीन लाख किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय करते हुए चांद के करीब पहुंचा है। चंद्रयान 3 मिशन में लैंडर, रोवर और प्रॉपल्शन मॉड्यूल शामिल है। भारत के इस महत्वकांक्षी मिशन में केवल 615 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं।