अंतरराष्ट्रीय
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस : समतामूलक समाज की द्योतक है लैंगिक समानता
समानता रूपी नींव पर राष्ट्र के विकास रूपी इमारत का किया जा सकता निर्माण
डॉ. शंकर सुवन सिंह, प्रयागराज। महिला’ शब्द नारी को गरिमामयी बनाता है। महिला शब्द नारी के आदर भाव को प्रकट करता है। ‘स्त्री’ शब्द नारी के सामान्य पक्ष को प्रदर्शित करता है। नर का स्त्रीलिंग ही नारी कहलाता है। नारी शब्द का प्रयोग मुख्यत: वयस्क स्त्रियों के लिए किया जाता है। नारी शब्द का प्रयोग संपूर्ण स्त्री वर्ग को दर्शाने के लिए भी किया जाता है। औरत एक अरबी शब्द है,। औरत शब्द ‘औराह’ धातु से बनी है। जिसका अर्थ शरीर को ढंकना होता है। अरबी मजहब में औरत की यही परिभाषा है। स्त्री, प्रकृति सूचक है। यह स्वभाव वाचक शब्द है। नारी, देवत्व सूचक है। यह गुणवाचक शब्द है। महिला, सामाजिक प्रस्थिति सूचक है। यह अधिकार वाचक शब्द है। औरत, मजहबी सूचक है। यह उपभोग बोधक शब्द है। मादा (फीमेल), जैविक सूचक है। यह प्रजनन बोधक शब्द है। वूमेन,पराधीनता सूचक है अर्थात (किसी व्यक्ति की पत्नी) वाइफ ऑफ़ मैन। यह पराधीन बोधक शब्द है। अतः महिलाओं के लिए शब्द चयन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। कहने का तात्पर्य यह है कि भारतीय स्त्रियां भी अपने लिए सही शब्द का चयन करें/करवाएं। क्योंकि स्त्रियों की सोच और उनकी अभिव्यक्ति ही उनके व्यक्तित्व का दर्पण होती है। किसी भी राष्ट्र के विकास का स्थाई भविष्य उसके लैंगिक समानता से तय होता है। लैंगिक समानता राष्ट्र के विकास को गति प्रदान करता है। कहावत है कि हर एक सिक्के के दो पहलु होते हैं। इनमे से किसी एक पहलु को हटा दें तो सिक्के का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता। कहने का तात्पर्य – नर और नारी एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। नर और नारी के अस्तित्व से समाज है। इनमे से किसी एक के साथ दुर्व्यवहार होगा तो समाज में असंतुलन की स्थिति पैदा होगी। जिससे समाज का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा। राष्ट्र के विकास के लिए समाज में लैंगिक समानता का होना बहुत जरूरी है। महिला और पुरुष समाज के मूलाधार हैं। अतएव लैंगिक समानता रूपी नींव पर राष्ट्र के विकास रूपी इमारत का निर्माण किया जा सकता है। अभी भी भारत में लिंग आधारित भेदभाव कार्य कर रहा है। जन्म से लेकर मौत तक, शिक्षा से लेकर रोजगार तक, हर जगह पर लैंगिक भेदभाव साफ साफ नजर आ जाता है। इस भेदभाव को कायम रखने में सामाजिक और राजनीतिक पहलू बहुत बड़ी भूमिका निभाते है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2022 की थीम/प्रसंग – ‘जेंडर इक्वालिटी टुडे फॉर ए सस्टेनेबल टुमारो’ (एक स्थायी कल के लिए आज लैंगिक समानता) है। सेंटर फॉर जेंडर इक्वलिटी एंड इनक्लूसिव लीडरशिप की चेयरपर्सन अलका रजा का लक्ष्य है- महिला सशक्तिकरण, शांति और सुरक्षा के लिए मौजूदा चुनौतियों और बाधाओं को कवर करना। संयुक्त राष्ट्र सचिवालय न्यूयॉर्क में अब तक की सबसे कम उम्र की पेशेवर महिला के रूप में नियुक्त होने का गौरव लिसेलोटे वाल्डहाइम नेचुरल को मिला है। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान महिलाओं व पुरुषों के लिंगानुपात को ठीक करने के साथ महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई बड़ी पहल की थी। वर्ल्ड इकनोमिक फोरम द्वारा वर्ष 2021 के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स की बात करें तो भारत 156 देशों की सूची में 140 नंबर पर आता हैं। इस रैंक से साबित होता है कि आज भी हमारे देश में लैगिंक भेदभाव की जड़ें गहरी हैं। महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक ऐसा शब्द है, जिसका इस्तेमाल समाज में महिलाओं के खिलाफ होने वाले और मुख्य रूप से हिंसात्मक कार्यों के सभी रूपों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा आमतौर पर लिंग आधारित होती है। लैंगिक समानता लाकर लिंग आधारित असमानताओं को समाज से दूर किया जा सकता है। लैंगिक समानता का उद्देश्य पुरुषों और महिलाओं के बीच सभी सीमाओं और मतभेदों को दूर करना है। यह पुरुष और महिला के बीच किसी भी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करता है। लिंग समानता पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान अधिकार और अवसर सुनिश्चित करती है, चाहे वह घर पर हो या शैक्षणिक संस्थानों में या कार्यस्थलों पर। लैंगिक समानता राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक समानता की गारंटी देती है। महिलाओं के साथ भेदभाव को समाप्त करने में अध्यात्म गहरी भूमिका निभाता है। हमारी संस्कृति में स्त्री का दर्जा पुरुष से कम नहीं माना गया है। मुगल आक्रमण से पहले स्त्रियों को पुरुषों के समान दर्जा दिया जाता था। हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार ज्ञान की देवी सरस्वती, धन की देवी लक्ष्मी और शक्ति की देवी दुर्गा पूजा जाता है। हमारे जीवन को अधिशासित करने वाले सत, रज और तम, इन तीन गुणों में सामंजस्य बनाए रखने के लिए हम देवी मां की ही प्रार्थना करते हैं। यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।। मनुस्मृति 3/56 ।। जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं। नारी जननी है। नारी नर का अभिमान है। नारी राष्ट्र के विकास की नींव है। नारी सृष्टि का अनमोल उपहार है। नारी से सृष्टि और सृष्टि से नारी है। नारी सशक्त बनेगी तो देश सशक्त बनेगा। नैतिक मूल्यों को अपनाने से ही नारी सशक्त बनेगी। वैदिक साहित्य में आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों के कारण नारी पूजनीय एवं वंदनीय थी। परंतु वर्तमान समय में नारियों का पाश्चात्य संस्कृति के कारण व्यसन, नशा विकृतियों में लिप्त होना आदि अवगुण नारी को अबला बनाता है। नारी जीवन में सदगुणों को अपनाकर फिर से देवत्व को प्राप्त हो सकती है। संस्कृति, संस्कार से बनती है। सभ्यता, नागरिकता से बनती है। नागरिकता मानव की पहचान है। नर और नारी दोनों मानव हैं। मानव ही किसी भी देश के नागरिक कहलाते हैं। नागरिक शब्द से नागरिकता का निर्माण हुआ। लैंगिक समानता किसी भी राष्ट्र के सतत भविष्य का द्योतक होता है। लैंगिक असमानता समाज के संतुलन व्यवस्था और विकास को प्रभावित करती है। समतामूलक समाज राष्ट्र को संतुलित करता है। किसी भी राष्ट्र की सभ्यता की पहचान उसके संतुलित समाज से ही होती है। अतएव हम कह सकते हैं कि लैंगिक समानता, समतामूलक समाज को स्थापित करता है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास
आठ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है, इस दिन भारत सहित पूरी दुनिया में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को खत्म करने के लिए प्रयास किए जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस यानि 8 मार्च को दुनिया के सभी देश चाहे वह विकसित हो या विकासशील मिलकर महिला अधिकारों की बात करते हैं। महिला दिवस के दिन औरतों की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों के बारे में चर्चा की जाती है। 19 वीं सदी तक आते-आते महिलाओं ने अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता दिखानी शुरू कर दी थी। अपने अधिकारों को लेकर सुगबुगाहट पैदा होने के बाद 1908 में 15000 स्त्रियों ने अपने लिए मताधिकार की मांग दुहराई। साथ ही उन्होंने अपने अच्छे वेतन और काम के घंटे कम करने के लिए मार्च निकाला। यूनाइटेड स्टेट्स में 28 फरवरी 1909 को पहली बार राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का विचार सबसे पहले जर्मनी की क्लारा जेडकिंट ने 1910 में रखा। उन्होंने कहा कि दुनिया में हर देश की महिलाओं को अपने विचार को रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने की योजना बनानी चाहिए। इसके मद्देनजर एक सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें 17 देशों की 100 महिलाओं ने भाग लिया और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने पर सहमति व्यक्त की। 19 मार्च 1911 को आस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। उसके बाद 1913 में इसे बदलकर 8 मार्च कर दिया। 1975 संयुक्त राष्ट्र संघ ने पहली बार 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया था।