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भारत के सिंधु जल संधि स्थगित करने से पाकिस्तान को हो सकता है भारी नुकसान, 70 प्रतिशत तक कम होगा पानी

भारत के सिंधु जल संधि स्थगित करने से पाकिस्तान को हो सकता है भारी नुकसान, 70 प्रतिशत तक कम होगा पानी
सीएन, नईदिल्ली।
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हमला करके आतंकवादियों ने 28 लोगों को मार दिया। इस हमले में पाकिस्तान का हाथ पाया गया है। इसके बाद भारत ने सिंधु जल समझौता, अटारी बॉर्डर बंद करना, वीजा समझौता रद्द करने सहित कई अन्य बड़े फैसले लिए हैं। जो पाकिस्तान को सीधे प्रभावित करेंगे। इनमें सिंधु नदी संधि का टूअना महत्वपूर्ण है। सिंधु जल संधि अगर टूटी तो पाकिस्तान पूरी तरह बर्बाद हो जायेगा। अगर भारत सिंधु जल संधि को रद्द कर दे और सिंधु, झेलम और चिनाब के प्रवाह को रोक दे, तो पाकिस्तान के लिए परिणाम विनाशकारी होंगे। विशेषज्ञों का अनुमान है कि पानी के प्रवाह को रोकने से पाकिस्तान की पानी की उपलब्धता 70 प्रतिशत तक कम हो सकती है।आजादी मिलने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के बंटवारे को लेकर विवाद शुरू हो गया था। ये विवाद उन छह नदियों को लेकर थाए जो कि भारत और पाकिस्तान दोनों में बहती है भारत ने पाकिस्तान के साथ 1965, 1971 और 1999 के युद्ध में भी इस समझौते को नहीं तोड़ा था। लेकिन इस बार भारत ने कड़ा रुख अपनाते हुए सिंधु जल समझौते को रद्द कर दिया है। इंडस वाटर ट्रिटी को सिंधु जल संधि भी कहा जाता है। यह भारत और पाकिस्तान के बीच एक छह नदियों के जल के बंटवारे का समझौता है। जो कि 19 सितंबर 1960 को हुआ था। 1947 में आजादी मिलने के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों में ही पानी के बंटवारे को लेकर विवाद शुरू हो गया था। ये सभी नदियां सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, व्यास और सतलुज भारत और पाकिस्तान में बहती हैं। पाकिस्तान का आरोप था कि भारत इन नदियों पर बांध बनाकर पानी का दोहन करता है। जिससे उसके इलाके में पानी कम आता है और वहां सूखा जैसी स्थिति बनी रहती है। भारत और पाकिस्तान के बीच नदियों के पानी को लेकर विवाद बढ़ता गया। इस पर 1949 में अमेरिकी विशेषज्ञ टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल ने विवाद को समाप्त करने का प्रयास किया। सितंबर 1951 में विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष यूजीन रॉबर्ट ने इसमें मध्यस्थता की। कई बैठकों के बाद 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि हुई। इस समझौते पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। इसके बाद 12 जनवरी 1961 को इस संधि की शर्तें लागू की गई। इस संधि में तय किया गया कि पूर्वी क्षेत्र की तीन नदियों रावी, व्यास और सतलुज पर भारत का अधिकार होगा। जबकि पश्चिम क्षेत्र की नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम का पानी पाकिस्तान को दिया जाएगा। लेकिन भारत के पास इन नदियों के पानी से खेती व अन्य इस्तेमाल का अधिकार रहेगा। सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों के कुल 16.80 करोड़ एकड़ फीट पानी में से भारत को 3.30 एकड़ पानी दिया गया। जो कुल पानी का 20 प्रतिशत है। इस समझौते के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच एक स्थाई आयोग का गठन किया गया। जिसे सिंधु आयोग नाम दिया गया। दोनों तरफ से एक-एक आयुक्त इस समझौते के लिए तैनात किया गया। यही दोनों अपनी.अपनी सरकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। दोनों आयुक्तों को साल में एक बार मीटिंग करनी होती है। ये मीटिंग एक साल भारत में तो दूसरे साल पाकिस्तान में होती है। पाकिस्तान की सिंचाई का 80 प्रतिशत हिस्सा सिंधु नदी के पानी पर आश्रित है। भारत के झेलम व चिनाब पर हैं। चिनाब के रतले और पाकुल दुल प्रोजेक्ट, झेलम के किशनगंगा प्रोजेक्ट को लेकर पाकिस्तान 2015 से विवाद कर रहा है। पाकिस्तान को भारत के 330 मेगावाट के किशनगंगा प्रोजेक्ट और 850 मेगावाट के रातले जलविद्युत प्रोजेक्ट पर आपत्ति है। पाकिस्तान ने विश्व बैंक से भारत के दो जल विद्युत परियोजनाओं को लेकर कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन की नियुक्त का अनुरोध भी किया है। भारत ने फिलहाल सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया है। भारत इस संधि से पूरी तरह से हट नहीं सकता, क्योंकि इसमें वर्ल्ड बैंक भी शामिल है। संधि से बाहर निकलने के लिए अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी। संधि को स्थगित करके भारत अब इसके नियम मानने को बाध्य नहीं है। चिनाब नदी पर भारत ने किशनगंगा और बहलिहार जैसे प्रोजेक्ट्स शुरू किए हैं। अब जब भारत ने संधि को स्थगित कर दिया है तो वह इन प्रोजेक्ट्स को और बढ़ा सकता है। अभी यह प्रोजेक्ट्स रन.ऑफ.द.रिवर हैंए इसलिए इनसे पानी बहुत ज्यादा देर तक रुकता नहीं है। पाकिस्तान का पानी रोकने के लिए भारत को झेलम चिनाब और सिंधु नदी में कई बांध बनाने होंगे या हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट शुरू करने होंगे लेकिन इनमें कम से कम 5 से 10 साल का वक्त लग सकता है। अपने हिस्से में आने वाली पूर्वी नदियों पर भारत ने 5 बड़े प्रोजेक्ट बनाए हैं। इनमें सतलुज पर भाखड़ा नागल बांध, ब्यास पर पोंग बांध, रावी पर रंजीत सागर बांध और हरिके बैराज, इंदिरा नहर जैसे प्रोजेक्ट्स हैं। इसके अलावा, रावी पर शाहपुर कांडी प्रोजेक्ट, सतलुज.ब्यास नहर लिंक प्रोजेक्ट और रावी की सहायक नदी पर उझ डैम बनाया जा रहा है लेकिन इन्हें पूरा होने में अभी वक्त लगेगा। अब संधि से बाहर आने के बाद भारत पश्चिमी नदियों के पानी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर सकता है। पश्चिमी नदियों के पानी को पूर्वी नदियों में मोड़ने का विकल्प भी भारत के पास है। हालांकि यह सब कुछ अचानक नहीं किया जा सकता। क्योंकि अगर ऐसा होता है तो इससे भारत के पंजाब और कश्मीर में बाढ़ का खतरा आ सकता है। कुल मिलाकर यह है कि भारत इस संधि से अस्थायी रूप से बाहर आ गया है लेकिन पाकिस्तान को मिलने वाले पानी को पूरी तरह से रोकने में अभी कुछ साल लग सकते हैं।

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