अंतरराष्ट्रीय
रूस-यूक्रेन जंग की कीमत चुका रही पूरी दुनिया
अमेरिका बेहाल, इंग्लैड में महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर
सीएन, नईदिल्ली। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को 4 महीने पूरे हो गए हैं. युद्ध अब भी जारी है. इस युद्ध की कीमत रूस, यूक्रेन के अलावा पूरी दुनिया को चुकानी पड़ रही है. जंग में कमजोर यूक्रेन ने जिस तरह से ताकतवर रूस को अभी तक चुनौती दी है, वो सबको हैरान कर रहा है, लेकिन इसमें सबसे बड़ा योगदान अमेरिका का है. उसे इसके लिए सबसे ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है. इसके अलावा ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा नीदरलैंड भी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. यहां महंगाई उच्च स्तर पर पहुंच गई है. पिछले दो सालों से कोरोना महामारी से पस्त वैश्विक अर्थव्यवस्था में हाल के महीनों में सुधार के संकेत दिख रहे थे, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण उसके पटरी से उतरने का खतरा बढ़ गया है. यही नहीं, चीन में कोरोना के बढ़ते मामलों और उससे निपटने के लिए लगाए गए सख्त लॉकडाउन से वैश्विक सप्लाई चेन में बाधा, गैस-पेट्रोल की ऊंची कीमतों और कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में बेकाबू महंगाई दर ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की मुश्किलें बढ़ा दी हैं रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका ने हाल ही में यूक्रेन को 40 अरब डॉलर की अतिरिक्त सहायता देने वाला बिल पास कर दिया है. फरवरी से लेकर अब तक अमेरिका यूक्रेन को 56.44 अरब डॉलर की मदद दे चुका है. ये मदद रूस के 2022 के कुल रक्षा बजट से भी अधिक है. बता दें कि रूस ने इस साल अपना रक्षा बजट 51.3 बिलियन डॉलर रखा था. इसके अलावा रूस से लड़ाई जारी रखने के लिए यूक्रेन को और मदद की जरूरत है. उसने अमेरिका और अन्य सहयोगी देशों से इसकी मांग की थी. इसे लेकर अमेरिका ने कार्रवाई शुरू कर दी थी. इसी क्रम में शनिवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने 40 बिलियन डॉलर की अतिरिक्त मदद के विधेयक पर साइन कर दिया. यह विधेयक अमेरिकी कांग्रेस में दोनों दलों के समर्थन से पारित हुआ था. इतनी भारी भरकम मदद देकर अमेरिका का कद दुनिया में बड़ा तो हो गया, लेकिन अपने देश में बाइडन सरकार को तमाम आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. यहां महंगाई अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर जा रही है. रूस की ओर से लगाए गए जवाबी बैन की वजह से अमेरिका को कई तरह की आर्थिक परेशानियां झेलनी पड़ रही है. ब्रिटेन में भी महंगाई लगातार नए मुकाम हासिल कर रही है. बुधवार को ऑफिस फॉर नेशनल स्टैटिस्टिक्स (ओएलएन) की ओर से जारी किए गए आंकड़ों को देखें तो देश में मुद्रास्फीति 9 प्रतिशत पर पहुंच गई है. यह चार दशक का उच्च स्तर है.
इससे पिछले महीने मार्च में ब्रिटेन में महंगाई दर बढ़कर सात फीसदी के स्तर पर पहुंची थी, जबकि एक अप्रैल में इसमें एकदम से दो फीसदी की तेज बढ़ोतरी दर्ज की गई है. ब्रिटेन के वित्त मंत्री ऋषि सनक, जो कि पहले से ही देश में बढ़ते घरेलू बिलों के बीच जीवन यापन संकट को कम करने के लिए उपाय करने के मामले में दबाव का सामना कर रहे हैं, उन्होंने वैश्विक ऊर्जा कीमतों को मुद्रास्फीति में वृद्धि के लिए जिम्मेदार ठहराया है. सनक ने कहा कि दुनिया भर के देश बढ़ती महंगाई से जूझ रहे हैं. अप्रैल में मुद्रास्फीति का यह उच्च स्तर ऊर्जा मूल्य कैप वृद्धि से प्रेरित है, जो बदले में उच्च वैश्विक ऊर्जा कीमतों से प्रेरित है.विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में इस साल अंतरराष्ट्रीय व्यापार में 4.7 फीसदी की वृद्धि के अपने पिछले पूर्वानुमान को डेढ़ फीसदी से ज्यादा घटाकर सिर्फ तीन फीसदी कर दिया है. दूसरी ओर, संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास संगठन (अंकटाड) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर सिर्फ 2.6 फीसदी रहने का अनुमान है, जो उसके पिछले पूर्वानुमान 3.6 फीसदी से एक फीसदी कम है. उधर, विश्व बैंक और आईएमएफ ने भी रूस-यूक्रेन युद्ध को वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए महामारी के बाद दूसरा बड़ा झटका बताया है. विश्व बैंक और आईएमएफ ने रूस-यूक्रेन सहित मध्य यूरोप, मध्य, दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया की कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं के मंदी की चपेट में आने की चेतावनी दी है. यही नहीं, युद्ध के कारण खाद्यान्नों खासकर गेहूं और वनस्पति तेलों की कीमतों में तेज उछाल से कई विकासशील और गरीब देशों में श्रीलंका की तरह के हालात पैदा होने की आशंका भी जाहिर की जा रही है. रूस और यूक्रेन गेहूं, मक्के और खाद्य तेलों के दुनिया के तीन बड़े निर्यातकों में से हैं. रूस और यूक्रेन अकेले दुनिया का लगभग 30 फीसदी गेहूं निर्यात करते हैं। मध्य पूर्व और उत्तरी और पूर्वी अफ्रीका के कई देश रूस और यूक्रेन के गेहूं पर निर्भर हैं. इसी तरह रूस उर्वरकों में नाइट्रोजन का दुनिया का सबसे बड़ा, पोटैशियम का दूसरा सबसे बड़ा और फॉस्फोरस का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है. युद्ध के कारण एक तो काला सागर से व्यापार ठप है. दूसरे, पश्चिमी देशों ने रूस पर वित्तीय और व्यापार संबंधी पाबंदियां लगा रखी हैं. इससे गेहूं, खाद्य तेलों और उर्वरकों की आपूर्ति प्रभावित हुई है. नतीजा यह कि युद्ध शुरू होने के बाद सिर्फ एक महीने में वैश्विक बाज़ार में गेहूं की कीमतों में लगभग 20 फीसदी और मक्के की कीमतों में 19 फीसदी की रिकॉर्डतोड़ उछाल दर्ज की गई है. विश्व खाद्य संगठन (एफएओ) के मुताबिक, मार्च में अनाजों की कीमतों में लगभग 17 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इसी तरह फरवरी के बाद से खाद्य तेलों में भी 25 फीसदी तक की उछाल आई है. बढ़ती मांग की वजह से पेट्रोलियम और गैस की कीमतों में पहले से ही तेजी आनी शुरू हो गई थी, लेकिन युद्ध ने उसमें आग लगा दी. कच्चे तेल की कीमतें फिलहाल 100 डॉलर प्रति बैरल के आसपास स्थिर दिख रही हैं, लेकिन यह भी बहुत ज्यादा है. कच्चे तेल और साथ में, अनाजों, खाद्य तेलों की कीमतों में इस तेजी का सीधा असर दुनिया के अधिकांश देशों में बेकाबू हो रही महंगाई दर के रूप में दिख रहा है, जिससे अब लगभग सभी उत्पादों और सेवाओं की कीमतें प्रभावित हो रही हैं. यूक्रेन जंग की कीमत आम लोग भी चुका रहे हैं. भारत भी इससे अछूता नहीं है, जहां महंगाई रिजर्व बैंक के ऊपरी दायरे से भी आगे निकल चुकी है. भारत में औद्योगिक उत्पादों की मांग, उत्पादन और निवेश में सुस्ती बनी हुई है. कई वैश्विक और घरेलू संस्थाएं चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी दर के अनुमानों में डेढ़ से दो फीसदी की कटौती कर चुकी हैं. अगर रूस-यूक्रेन युद्ध जल्दी नहीं रुका और महंगाई ऐसे ही बढ़ती रही तो श्रीलंका और कजाखिस्तान जैसे हालात मध्य-पूर्व, उत्तरी और पूर्वी अफ्रीका के कई देशों में दिख सकते हैं.