अंतरराष्ट्रीय
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति गिरफ्तार, तीन हजार पुलिसवालों का घेरा, दीवार चढ़कर अंदर पहुंचे
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति गिरफ्तार, तीन हजार पुलिसवालों का घेरा दीवार चढ़कर अंदर पहुंचे
सीएन, सिओल। हाईवोल्टेज ड्रामे के बाद दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक येओलको गिरफ्तार किया गया। येओल अपने देश में मार्शल लॉ लगाने के कारण महाभियोग का सामना कर रहे हैं। पुलिस इससे पहले भी उन्हें गिरफ्तार करने पहुंची थी। लेकिन उनके समर्थकों के हंगामे की वजह से उनकी गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति अपने निजी सुरक्षाकर्मियों साथ अपने आवास में थे। स्थानीय न्यूज एजेंसी योनहाप की रिपोर्ट के मुताबिक 14 जनवरी को जांच एजेंसी के अधिकारी सीढ़ी लगाकर उनके घर में घुसे, तब जाके येओल की गिरफ्तारी हो सकी। उनकी गिरफ्तारी का ये दूसरा प्रयास था। पुलिस ने उनके आवास के बाहर करीब 3000 कर्मियों को तैनात किया था। येओल के समर्थकों और पुलिस अधिकारियों के बीच झड़पें भी हुईं। उनके आवास के पास दर्जनों समर्थक जमीन पर लेट गए थे। कुछ लोग पास में एक चर्च के बाहर प्रार्थना कर रहे थे और पुलिस के समक्ष अपना विरोध जता रहे थे। हालांकि वहां कुछ ऐसे लोग भी मौजूद थे जो येओल की गिरफ्तारी की मांग कर रहे थे और उनके खिलाफ नारे लगा रहे थे। इन समूहों के बीच कोई बड़ी झड़प नहीं हुई है और इनके बीच से किसी को हिरासत में नहीं लिया गया है। सियोल की अदालत ने करप्शन इन्वेस्टिगेशन ऑफिस को आदेश दिया था कि येओल को गिरफ्तार किया जाए। उन्हें पूछताछ के लिए कई बार तलब किया गया था लेकिन येओल एक बार भी नहीं पहुंचे। आरोप है कि 3 दिसंबर की रात को उन्होंने अचानक से मार्शल लॉ की घोषणा कर दी। इस आदेश को लेकर जब वहां की संसद में चर्चा चल रही थी तभी करीब 300 भारी हथियारों से लैस सैनिकों की भीड़ संसद में पहुंच गई। आरोप है कि येओल ने मतदान को बाधित करने के लिए सेना भेजी थी। न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार सांसदों ने 6 घंटे के बाद ही मार्शल लॉ के आदेश को पलट दिया। इसके बाद 14 दिसंबर को उनके खिलाफ महाभियोग पेश किया गया था। येओल पर विद्रोह और सत्ता के दुरुपयोग के आरोप लगे हैं। रिपोर्ट है कि पूछताछ के बाद उनको उइवांग स्थित सियोल डिटेंशन सेंटर में रखा जाएगा। दक्षिण कोरिया का संविधान वहां के राष्ट्रपति को मार्शल लॉ लगाने का अधिकार देता है। लेकिन तभी जब युद्धकाल चल रहा हो या युद्ध जैसी स्थिति हो या कोई अन्य इमरजेंसी स्थिति हो। इस व्यवस्था में राष्ट्रपति के पास सेना के इस्तेमाल का अधिकार होता है। साथ ही प्रेस और सभा करने की स्वतंत्रता जैसे नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया जाता है। इस हालत मे राष्ट्रपति के पास अदालतों और सरकारी एजेंसियों की शक्तियों को अस्थायी रूप से सीमित करने का भी अधिकार होता है। जिस तरह राष्ट्रपति के पास मार्शल लॉ लगाने का अधिकार है उसी तरह वहां की नेशनल असेंबली को बहुमत के आधार पर मार्शल लॉ हटाने का अधिकार भी दिया गया है। इसलिए जैसे ही सांसदों को देश में मार्शल लॉ लगने की खबर मिलीए अधिकतर सांसद नेशनल असेंबली की तरफ दौड़ पड़े ताकि इसके खिलाफ वोटिंग कर सकें। असेंबली की बिल्डिंग में पहुंचने के लिए सांसदों ने सेना के घेरे को तोड़ने का प्रयास किया। कुछ सदस्य दीवारों पर चढ़ गए ताकि किसी तरह अंदर पहुंचें और संसद की कार्यवाही को पूरा कर सकें। 300 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली में 190 सांसदों ने वोट देकर जताया कि मार्शल लॉ हटाया जाए। इनमें खुद येओल की पार्टी के 18 सांसद शामिल थे। जबकि इस आदेश के पक्ष में एक भी सदस्य ने वोट नहीं किया। महाभियोग प्रस्ताव में कहा गया कि येओल ने जिस स्थिति में मार्शल लॉ लगाया है वो गंभीर संकट के संवैधानिक मानक को पूरा नहीं करता। आगे कहा गया कि देश का संविधान राष्ट्रपति को संसद को निलंबित करने के लिए सेना का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देता। प्रस्ताव में तर्क दिया गया है कि राजनीतिक पार्टी की गतिविधियों को निलंबित करना और नेशनल असेंबली को घेरने के लिए सैनिकों को तैनात करना विद्रोह के बराबर है।गिरफ्तारी के बाद यून सुक येओल ने एक वीडियो जारी किया है। उन्होंने कहा है कि ये जांच अवैध है।