अंतरराष्ट्रीय
परमाणु युद्ध हुआ तो आधे घंटे में 10 करोड़ मौतें होंगी
18 हजार साल पीछे चली जाएगी दुनिया, सालों तक लोग मरते रहेंगे
सीएन, नईदिल्ली। क्या हो कि सुबह जोर का धमाका हो और पल में ही हजारों लोगों की मौत हो जाए. लोग बैठे रहें और उनकी चमड़ी जलकर गिरने लगे. जोर के धमाके के बाद चारों ओर सन्नाटा छा जाए और कुछ देर बाद रोते-बिलखते लोगों की आवाजें गूंजने लगे. कुछ ऐसा ही हुआ था अगस्त 1945 में. जब दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमला किया था. ये हमले इतने जोरदार थे कि हजारों-लाखों लोगों की मौत चंद मिनटों में ही हो गई थी. उसके बाद भी सालों तक लोग मरते रहे. रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग में अब फिर से परमाणु युद्ध का खतरा बढ़ गया है. हालांकि, लड़ाई अब लगभग निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है, लेकिन खतरा टला नहीं नहीं है. अमेरिका समेत पश्चिमी देश यूक्रेन की मदद कर रहे हैं और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले ही चेता चुके हैं कि अगर कोई भी बाहरी बीच में आया तो वो अंजाम होगा जो पहले कभी नहीं देखा होगा. एक्सपर्ट पुतिन की इस चेतावनी को परमाणु युद्ध की धमकी से ही जोड़कर देख रहे है. जापान परमाणु हमला झेल चुका है और उन हमलों में जो लोग बच गए थे, वो आज भी उस दिन को याद कर सहम उठते हैं. परमाणु युद्ध कुछ और नहीं बल्कि तबाही लेकर आएगा स्विट्जरलैंड की एक संस्था है इंटरनेशनल कैंपेन टू अबॉलिश न्यूक्लियर वेपन . इस संस्था को 2017 में नोबेल पीस प्राइज भी मिल चुका है. संस्था के मुताबिक एक परमाणु बम झटके में लाखों लोगों की जान ले लेगा. वहीं, अगर 10 या सैकड़ों बम गिर गए तो न सिर्फ लाखों-करोड़ों मौतें होंगी, बल्कि धरती का पूरा क्लाइमेट सिस्टम ही बिगड़ जाएगा. के मुताबिक, एक परमाणु बम पूरा शहर तबाह कर देगा. अगर आज के समय में कई सारे परमाणु हथियारों का इस्तेमाल होता है तो इसमें करोड़ों लोग मारे जाएंगे. वहीं, अगर अमेरिका और रूस के बीच बड़ा परमाणु युद्ध छिड़ गया तो मरने वालों की संख्या 10 करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगी. मुंबई, जहां हर एक किलोमीटर दायरे में 1 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं, अगर वहां हिरोशिमा जैसा परमाणु बम गिर जाता है तो एक हफ्ते में 8.70 लाख से ज्यादा मौत मौतें हो जाएंगी. अगर अमेरिका और रूस के बीच परमाणु युद्ध में 500 परमाणु बम का इस्तेमाल हो जाता है तो आधे घंटे के अंदर 10 करोड़ से ज्यादा की मौत मौत हो जाएगी. इतना ही नहीं, किसी युद्ध में अगर दुनिया में मौजूद 1 प्रतिशत से भी कम परमाणु हथियारों का इस्तेमाल होता है तो इससे 2 अरब लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच जाएंगे. साथ ही पूरा हेल्थ सिस्टम भी तबाह हो जाएगा, जिससे घायलों को इलाज भी नहीं मिल सकेगा. जो परमाणु बम हिरोशिमा में गिरा था, अगर उसी साइज के 100 बम गिर जाते हैं तो धरती का पूरा सिस्टम ही बिगड़ जाएगा. ऐसा हमला होने पर क्लाइमेट सिस्टम बुरी तरह प्रभावित होगा और खेती पर भी असर होगा. भी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग से जूझ रही है लेकिन परमाणु युद्ध होने पर धरती का तापमान तेजी से कम होने लगेगा. वो इसलिए क्योंकि इन हमलों से इतना धुआं निकलेगा जो धरती की सतह पर जम जाएगा. अनुमान है कि ऐसा होने पर कम से कम 10 प्रतिशत जगहों पर सूरज की रोशनी नहीं पहुंचेगी. वहीं, अगर दुनियाभर के सारे परमाणु हथियारों का इस्तेमाल होता है तो इससे 150 मिलियन टन धुंआ धरती के स्ट्रेटोस्फेयर में जम जाएगा. स्ट्रेटोस्फेयर धरती की बाहरी सतह है जो ओजोन लेयर से ऊपर होती है. इतना ही नहीं, दुनियाभर के ज्यादातर इलाकों में बारिश भी नहीं होगी. ग्लोबल रेनफॉल में 45% की कमी आ जाएगी और इससे धरती की सतह का औसत तापमान -7 से -8 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाएगा. इसकी तुलना करें तो 18 हजार साल पहले जब हिम युग था, तब तापमान -5 डिग्री सेल्सियस था. यानी, दुनिया 18 हजार साल पीछे चली जाएगी. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान घुटने टेकने को तैयार नहीं था, तब जाकर अमेरिका ने उसके दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिरा दिया था. 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा और 9 अगस्त 1945 को नागासाकी पर बम गिरा था. हिरोशिमा पर गिरे बम से 1945 के आखिर तक ही 1.40 लाख लोगों की मौत हो गई थी. नागासाकी पर जो बम गिरा था, उसकी रेडिएशन पहाड़ों की वजह से 6.7 किमी तक ही फैली थी. इससे भी 1945 के आखिर तक 74 हजार लोग मारे गए थे. हमले के बाद जमीन की सतह का तापमान 4,000 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था. परमाणु बम जब गिरता है तो उसे तबाही मचाने में सिर्फ 10 सेकंड लगता है, लेकिन उसका असर दशकों तक रहता है. बम गिरने के सालों बाद भी लोगों को ल्यूकैमिया, कैंसर और फेफड़ों से जुड़ी खतरनाक बीमारियों से जूझ रहे थे. इतना ही नहीं, सैकड़ों-हजारों की आंखों की रोशनी चली गई थी.