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आज 7 अप्रैल को है विश्व स्वास्थ्य दिवस : स्वास्थ्य से जुड़े अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना उद्देश्य

आज 7 अप्रैल को है विश्व स्वास्थ्य दिवस: स्वास्थ्य से जुड़े अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना उद्देश्य
सीएन, नैनीताल।
जीवन में स्वास्थ्य का असीमित महत्व है। यह न केवल हमें बीमारियों से बचाता है, बल्कि लंबी उम्र जीने के लिए मार्गदर्शक का काम करता है, स्वस्थ जीवन हमें सक्रिय, खुशहाल और उत्पादन जीवन जीने में मदद करता है। जीवन में स्वास्थ्य की इन्हीं अहमियत को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रत्येक वर्ष 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाने की घोषणा की। इस दिन को मनाने का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों और सेहत से जुड़े अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। विश्व स्वास्थ्य दिवस का मुख्य उद्देश्य वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए हर संभव मदद मुहैया करवाना, लोगों को अच्छी सेहत के प्रति जागरूक करना था, तथा स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में सुधार करना था। विश्व स्वास्थ्य दिवस के माध्यम से विश्व स्वास्थ्य संगठन सरकारी, संगठनों एवं आम जनता को स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करने और इन मुद्दों का समाधान खोजने के लिए प्रेरित करता है। विश्व स्वास्थ्य दिवस को एक सही दशा.दिशा देने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रत्येक वर्ष एक थीम निर्धारित करता है। उसी थीम के अनुसार विश्व स्वास्थ्य दिवस का समायोजन किया जाता है। इस वर्ष की थीम है हेल्दी बिगिनिंग्स, होपफुल फ्यूचर यानी स्वस्थ शुरुआत, आशावादी भविष्य। टाले जा सकने वाले मौतों को कम करने और माताओं तथा नवजात शिशुओं के दीर्घकालिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए, सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों से उच्च प्रभाव वाले पहलुओं को निधि देने का आह्वान करता है। साल 1945 में संयुक्त राष्ट्र में ब्राजील और चीन ने एक वैश्विक स्वास्थ्य संगठन का सुझाव दिया जो सरकारी नियंत्रण से परे हो। 1946 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के संविधान की पुष्टि की गई। 7 अप्रैल 1948 को संविधान लागू हुआ, इसकी स्थापना में 61 राष्ट्र शामिल हुए। 22 जुलाई को 1949 को पहली बार विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया गया, लेकिन सभी छात्रों की भागीदारी को प्राथमिकता के लिए इसे 7 अप्रैल किया गया। इस तरह 7 अप्रैल 1950 को पहली बार विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया गया, इसका मुख्य उद्देश्य आम लोगों में स्वास्थ्य के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना, स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाना और खतरनाक एवं जानलेवा बीमारियों के प्रकोप पर नियंत्रण रखना था। यूनिसेफ की मानें तो भारत द्वारा मातृ व शिशु देखभाल के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम उठाये जाने के बाद भी अभी चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। हमारा देश दुनिया में पांच वर्ष से कम उम्र में होने वाली मृत्यु के मामले में दुनिया में छठे स्थान पर है। जबकि दुनियाभर में होने वाली नवजात शिशुओं की कुल मृत्यु का लगभग एक चौथाई हिस्से का बोझ आज भी भारत ही उठाता है। भारत में प्रतिदिन 67 हजार से अधिक बच्चों का जन्म होता है। इस प्रकार दुनिया में प्रतिदिन जितने भी बच्चे जन्म लेते हैं, उनका पांचवा हिस्सा भारत में जन्म लेता है। हालांकि प्रति मिनट इनमें से एक नवजात शिशु का जीवन समाप्त हो जाता है। मां-बच्चे की मृत्यु दर में कमी
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2020 के आंकड़े बताते हैं कि भारत में मातृ मृत्यु दर, नवजात मृत्यु दर और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु में कमी लाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये गये हैं। वर्ष 2014-2016 के बीच जहां मातृ मृत्यु दर प्रति एक लाख में 130 थ,ए वह 2018-2020 में घटकर 97 पर आ गयी। यह 33 अंको की उल्लेखनीय गिरावट दर्शाती है। देश में शिशु मृत्यु दर जहां 2014 में प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 39 थी वह 2020 में 28 पर आ गयी। नवजात शिशु मृत्यु दर 2014 के प्रति एक हजार जीवित जन्मों पर 26 से कम होकर 2020 में 20 हो गयी। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में भी कमी आयी है। वर्ष 2014 में जहां 1000 बच्चों में 45 बच्चे पांच वर्ष से कम उम्र में मर जाते थे, वह घटकर 2020 में 32 पर आ गयी। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में 75 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई है जो वैश्विक स्तर के 58 प्रतिशत से अधिक की कमी है।

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