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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बनाम भारत के पीएम नरेन्द्र मोदी : किसका झूठ सबसे मजबूत

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बनाम भारत के पीएम नरेन्द्र मोदी: किसका झूठ सबसे मजबूत
हो न हो, सभी तरफ से कुछ न कुछ झूठ बोला जा रहा है। पूरे सच के लिए इतिहासकारों पर निर्भर करना पड़ेगा,
सीएन, नईदिल्ली।
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की बात पर भरोसा करना मुश्किल है। सच से उनका छत्तीस का आंकड़ा रहा है। वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार, अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने 30,573 बार झूठ बोला था, यानी प्रतिदिन 21 झूठ। उन्हें जानने वाले लोग कहते हैं कि उनका सारा जीवन असत्य के प्रयोग करते हुए बीता है। अपने मां-बाप की पैदाइश से लेकर अपने बिजनेस और महिलाओं से संबंध से लेकर राजनीति, कोई ऐसा विषय नहीं जिस पर ट्रंप का झूठ पकड़ा न जा चुका हो। झूठ पकड़े जाने से उन पर उतना ही असर होता है जितना चिकने घड़े पर पानी का। इसलिए जब डॉनल्ड ट्रंप यह दावा करते हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान में युद्ध को एटम बम वाली खतरनाक दिशा में जाने से रोक दिया, तो उसे उतनी गंभीरता से भी नहीं लिया जा सकता जैसे किसी भी राष्ट्राध्यक्ष के बयान को लिया जाना चाहिए। इधर, हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कोई सत्यवादी हरिश्चंद्र नहीं हैं। वैसे, उनके झूठ की कभी गिनती नहीं हुई है, हमारे किस अखबार की मजाल अगर होती भी, तो ट्रंप से कम ही निकलती। ट्रंप ने तो मानो सच न बोलने की कसम खा रखी है। मोदी जी ने ऐसी कोई प्रतिज्ञा नहीं की है। वह इस मामले में परिस्थिति सापेक्ष है, न सच से दोस्ती, न ही सच से बैर। जहां सच से काम चल गयाए वहां सच। लेकिन जरूरत पड़े, तो असत्य से भी परहेज नहीं है उन्हें। चाहे हर भारतीय के अकाउंट में 15 लाख डालने का वादा हो या फिर किसान की आय दोगुनी करने का। नोटबंदी से देश को हुए फायदे का दावा हो या कोविड के दौरान हुई मौतों की संख्या का या फिर लद्दाख में, कोई नहीं घुसा है, जैसे बयान हों। इस इतिहास के चलते उनके किसी बयान को भी स्वयंसिद्ध नहीं माना जा सकता।  
इसलिए भारत-पाकिस्तान युद्धविराम कैसे हुआ, किसने करवाया और किस शर्त पर इस मसले पर किसी एक नेता के बयान को आंख मूंदकर मान लेने की बजाय तथ्यों की जांच करना जरूरी होगा। पिछले हफ्ते इस मुद्दे पर एक बड़ा मोड़ आया जब जी-7 की कनाडा में हुई बैठक से ट्रंप को जल्दी निकलना पड़ा और दोनों की मुलाकात नहीं हो पाई, तब कनाडा से ही प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिका से राष्ट्रपति ट्रंप के बीच 17 जून को कोई 35 मिनट तक टेलीफोन कॉल हुई। इस वार्ता के बाद भारत के विदेश मंत्रालय की तरफ से बातचीत का ब्यौरा देते हुए एक बयान आया। इस बयान में पहली बार भारत सरकार ने ट्रंप द्वारा भारत-पाकिस्तान में मध्यस्थता करवाने के दावे का खंडन किया गया। इस बयान के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति ट्रंप को साफ तौर पर बताया कि इस पूरे घटनाक्रम के दौरान किसी भी स्तर पर भारत-अमेरिका व्यापार समझौते या भारत और पाकिस्तान के बीच अमेरिका द्वारा मध्यस्थता के किसी प्रस्ताव पर कोई चर्चा नहीं हुई। सैन्य कार्रवाई बंद करने की चर्चा भारत और पाकिस्तान के बीच दोनों सशस्त्र बलों के बीच मौजूदा संचार चैनलों के जरिये सीधे हुई और इसकी शुरुआत पाकिस्तान के अनुरोध पर हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने दृढ़ता से कहा कि भारत मध्यस्थता स्वीकार नहीं करता और कभी नहीं करेगा। इस मामले पर भारत में पूरी तरह से राजनीतिक सहमति है। तो क्या राष्ट्रपति ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी की इस बात को मान लिया, भारत सरकार का बयान इस पर चुप है। अमेरिकी पक्ष से इस टेलीफोन कॉल के बारे में कोई बयान जारी नहीं हुआ। भारतीय बयान सिर्फ इतना कहता है कि ट्रंप ने मोदी की बात को ध्यान से सुना। ध्यान से सुनने का क्या असर हुआ, इसके बारे में हम सिर्फ इतना जानते हैं कि इस बातचीत के कुछ ही घंटे बाद ट्रंप ने यह दावा तेरहवीं बार दोहराया कि भारत और पाकिस्तान का युद्ध उन्होंने रुकवाया था। वार्ता के अगले दिन ट्रंप ने पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष मुनीर को लंच पर बुलाया, जहां मुनीर ने ट्रंप के इस दावे की पुष्टि की और उन्हें युद्धविराम के लिए धन्यवाद दिया। मतलब ढाक के तीन पात। फिर भी भारत सरकार का बयान महत्वहीन नहीं है। मोदी जी ने ट्रंप को क्या कहा, उन्होंने क्या सुना, इसे छोड़कर इस बयान में एक अच्छी बात है। भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि भविष्य में भारत.पाकिस्तान संबंध में अमेरिका की मध्यस्थता भारत में किसी पक्ष को भी नहीं चाहिए। पिछले छह दशक से भारत की तमाम सरकारों में इस बात पर सहमति रही है। यानी कि इतना तो आश्वस्त हो सकते हैं कि इस प्रकरण में जो भी हुआ, भारत आगे से अपनी विदेश नीति के इस संकल्प पर कायम रहेगा। लेकिन यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है कि भारत.पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम किसने करवाया, किन शर्तों पर हुआ। मोदी.ट्रंप फोन कॉल के बारे में जारी भारतीय बयान इस बात को तो स्वीकार करता है कि युद्ध विराम से 24 घंटे पहले अमेरिका के उपराष्ट्रपति वैन्स ने प्रधानमंत्री मोदी को फोन किया था, युद्ध के बारे में बातचीत की थी। मोदी जी ने फोन पर यह तो कहा कि उस दौरान कहीं व्यापार की बात नहीं हुई, लेकिन यह नहीं बताया कि और क्या कुछ बात हुई। बयान इसकी सफाई नहीं देता कि अगर युद्ध विराम की बातचीत सिर्फ भारत और पाकिस्तान के बीच हुई, तो युद्ध विराम की घोषणा भारत या पाकिस्तान के विदेश मंत्री की बजाय सबसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कैसे कर दी, मोदी जी ने यह बताया कि युद्धविराम की पहल पाकिस्तान की तरफ से हुई। यह बात सही लगती है, चूंकि तीसरे दिन की सैन्य कार्रवाई में पाकिस्तान की वायु सेना को भारी नुकसान की खबर है। लेकिन मोदी जी ने यह साफ नहीं किया कि क्या पाकिस्तान का अनुरोध अमेरिका के जरिये आया था। मतलब क्या बातचीत की शुरुआत अमेरिका ने करवाई थी, यह बयान प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्र ने नाम संदेश में किए उस बड़े दावे पर भी चुप्पी साध जाता है कि युद्धविराम तभी हुआ जब पाकिस्तान की तरफ से वादा किया गया कि उसकी ओर से आगे कोई आतंकी गतिविधि और सैन्य दुस्साहस नहीं दिखाया जाएगा। देश को आज तक इन सवालों के उत्तर का इंतजार है, किसने यह वादा किया, किसको किया, इसे लागू कैसे करवाया जाएगा। ले-देकर अभी भी दाल में कुछ काला नजर आता है। हो न हो, सभी तरफ से कुछ न कुछ झूठ बोला जा रहा है। कहना मुश्किल है कि किसका झूठ सबसे मजबूत। पूरे सच के लिए हमें इतिहासकारों पर निर्भर करना पड़ेगा।

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