दुर्घटना
28 सितंबर को है अनंत चतुर्दशी : व्रत रखने पर आर्थिक, मानसिक और शारीरिक कष्ट हो जाते हैं दूर
28 सितंबर को है अनंत चतुर्दशी: व्रत रखने पर आर्थिक, मानसिक और शारीरिक कष्ट हो जाते हैं दूर
सीएन, हरिद्वार। भगवान विष्णु के लिए व्रत रखकर पूजा करते हैं। साल 2023 में अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर 2023 को मनाई जाएगी। इस समय के दौरान सभी भक्त भगवान विष्णु का आशीर्वाद लेने के लिए विशेष पूजा और प्रार्थना करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर अनंत चतुर्दशी का व्रत रखा जाता है। अनंत चतुर्दशी को अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने पर भक्तों के जीवन से आर्थिक, मानसिक और शारीरिक कष्ट दूर हो जाते हैं। करीब दस दिनों तक गणेशोत्सव का यह पर्व चलता हैए इसके बाद अनंत चतुर्दशी के दिन श्गणपति वप्पा मोरिया अगले बरस तू जल्दी आश् इसी भावना के साथ गणपति की मूर्ति का विसर्जन कर दिया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर हर साल अनंत चतुर्दशी के दिन ही या फिर बप्पा की मूर्ति की स्थापना करने के दस दिन बाद उनकी मूर्ति का विसर्जन क्यों किया जाता है। मान्यतानुसार अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा.अर्चना की जाती है। इस साल पंचांग के अनुसार चतुर्दशी तिथि 28 सितंबर के दिन पड़ रही है और इसका समापन 28 सितंबर की ही शाम 6 बजकर 49 मिनट पर हो जाएगा। अनंत चतुर्दशी पर पूजा का सुबह मुहूर्त 28 सितंबर के दिन सुबह 6 बजकर 12 मिनट से शाम 6 बजकर 49 मिनट तक कहा जा रहा है। अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत रखने वाले भक्त मान्यतानुसार भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा करते हैं। सुबह.सवेरे उठकर स्नान किया जाता है और स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैंण् इसके बाद भक्त व्रत का संकल्प लेते हैं। फिर बारी आती है कलश स्थापना करने कीण् भगवान विष्णु की प्रतिमा को साफ किया जाता है और पूजा के लिए केसर, कुमकुम, हल्दी, फूल, अक्षत, फल और भोग आदि श्रीहरि के समक्ष अर्पित किए जाते हैं। हल्दी, कुमकुम या केसर से रंगी कच्ची डोरी पर चौदह गाठें बांधकर उसपर अनंत लिखा जाता है। अनंत चतुर्दशी की पूजा करते हुए विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी बेहद शुभ होता है। इस घर में विशेषकर आटे की रोटियां या फिर पूड़ी बनाई जाती हैं और पूजा के पश्चात प्रसाद में बांटी जाती हैं।
महाभारत और वेदव्यास
गणपति बप्पा की मूर्ति को दस दिन बाद जल में विसर्जित करने के पीछे की मुख्य वजह महाभारत और महर्षि वेदव्यास से जुड़ी है। दरअसल महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणेश से इसे लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की थी। भगवान गणेश ने उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार किया था और महाभारत लेखन का कार्य गणेश चतुर्थी के दिन से ही शुरू किया गया था। यद्धपि, भगवान गणेश ने महर्षि वेदव्यास की प्रार्थना को तो मान लिया था, लेकिन उन्होंने महाभारत को लिपिबद्ध करने के लिए एक शर्त रखी थी कि मैं जब लिखना प्रारंभ करूंगा तो कलम को रोकूंगा नहीं, यदि कलम रुक गई तो लिखना बंद कर दूंगा। तब वेदव्यासजी ने कहा कि भगवन आप देवताओं में अग्रणी हैं, विद्या और बुद्धि के दाता हैं और मैं एक साधारण ऋषि हूँ। यदि किसी श्लोक में मुझसे त्रुटि हो जाय तो आप उस श्लोक को ठीक कर उसे लिपिबद्ध करें। गणपति जी ने सहमति दी और फिर दिन.रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ और इस कारण गणेश जी को थकान तो होनी ही थी, लेकिन उन्हें पानी पीना भी वर्जित था। अतः गणपति जी के शरीर का तापमान बढ़े नहीं, इसलिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की। जिसके बाद महाभारत लेखन का कार्य शुरू हुआ। इसे पूरा होने में करीबन 10 दिन लग गए।
जिस दिन गणेश जी ने महाभारत लेखन का कार्य पूरा किया, उस दिन अनंत चतुर्दशी थी। लेकिन लगातार दस दिनों तक बिना रूके लिखने के कारण भगवान गणेश का शरीर जड़वत हो चुका था। मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई, इसी कारण गणेश जी का एक नाम पार्थिव गणेश भी पड़ा। वेदव्यास ने देखा कि, गणपति का शारीरिक तापमान फिर भी बहुत बढ़ा हुआ है और उनके शरीर पर लेप की गई मिट्टी सूखकर झड़ रही है, तो वेदव्यास ने उन्हें पानी में डाल दिया। इन दस दिनों में वेदव्यास ने गणेश जी को खाने के लिए विभिन्न पदार्थ दिए। यही कारण है कि गणपति स्थापना 10 दिन के लिए की जाती है और फिर 10 दिनों के बाद अनंत चतुर्दशी पर गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन करते हैं।