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सपने जैसी लगती है इस पहाड़ी लड़की के रिवर्स माइग्रेशन की कहानी

सपने जैसी लगती है इस पहाड़ी लड़की के रिवर्स माइग्रेशन की कहानी
सीएन, पौड़ी।
जागेश्वर मंदिर से कुछ दूरी पर एक गांव है न्योली। अपने नाम की खूबसुरत इस बसासत की खूबसूरती देखते बनती है। न्योली से गुजरते हुए सड़क से लगा एक होम स्टे है रूमुक। रूमुक एक पहाड़ी युवा लड़की द्वारा चलाया जाने वाला होम स्टे है। रिवर्स पलायन जैसे शब्द हम वर्षों से पहाड़ से जुड़ी हर गंभीर चर्चा में सुनते हैं। पहाड़ को विषय बनाकर लिखी गयी कई कहानियों में हम युवाओं के पहाड़ लौटने की बात किसी स्वप्न जैसे सुखांत के साथ पढ़ा करते हैं। अंजली सिंह रावत का रूमुक बरसों पुराने इस स्वप्न की हकीकत लगता है। जैसा की आप देख सकते हैं रूमुक एक होम स्टे है, एक पारम्परिक पहाड़ी घर है जो रहने की जगह के साथ पहाड़ी व्यंजन का भरपूर स्वाद देता है। सच कहूं तो रूमुक घड़ी भर ठहर कर सांस लेने के लिए बनाया गया एक ठिकाना है। वैसे रूमूक गढ़वाली में सांझ को कहते हैं। नहीं मैं तो पौड़ी की रहने वाली हूं। दरसल हम लोग मूलत पौड़ी से हैं। दादाजी दिल्ली में नौकरी करते थे तो पिताजी भी नौकरी ढूंढने गांव से दिल्ली आए। मैं और मेरा भाई दोनों का ही जन्म दिल्ली में हुआ। नहीं रूमुक मेरा बरसों से देखा गया एक सपना है। कई बरसों की मेहनत के बाद बनाया मेरा सपना। हम बचपन से छुट्टियों में पहाड़ जाया करते थे। मुझे दिल्ली कभी पसंद नहीं आया। मैं हमेशा गांव में ही रहना चाहती थी पर आप समझ सकते हैं पहाड़ियों की मज़बूरी। क्या आप कहना चाहती है कि आपने दो पीढ़ियों के बाद रिवर्स माइग्रेशन किया है। रिवर्स माइग्रेशन तो बहुत भारी भरकम टर्म हैं। मैं यहां हूं क्योंकि पहाड़ों के अलावा और कहीं नहीं रह सकती। इतनी वजह काफ़ी हैं यहां रह कर काम करने के लिए।  
उत्तराखंड में कब से काम कर रही हैं…..
दिल्ली यूनिवर्सिटी से हिस्ट्री आनर्स किया और कुछ साल दिल्ली में ही इधर उधर जॉब्स करती रही! नौकरी करने ही देहरादून आई थी! एक ट्रैवल वेबसाइट की जॉब थी। 2015 में देहरादून आना हुआ फिर दिल्ली नहीं गई दोबारा।
रूमुक का विचार कैसे आया
जब मैं छोटी थी तब हम छुट्टियों में गांव आते थे तो तब से ही रहा हैं पहाड़ों के लिए आकर्षण। दिल्ली में सब कुछ स्क्वायर फुट में चलता हैं गांव में सब कुछ खुला.खुला सा लगता था लेकिन तब ऐसा कुछ सोचा नहीं था कि टूरिज्म में आना हैंण् कॉलेज खत्म होते.होते यह बात दिमाग में आ गई थी कि उत्तराखंड सांस्कृतिक और प्राकृतिक तौर पर बहुत रिच स्टेट हैं और मुझे देखना है पूरा उत्तराखंडण् यह धुन जैसी लग गई थी तो मैंने ट्रेवल करना शुरू किया। ट्रेवल करते हुए मैंने देखा कि लड़कियां अकेले ट्रेवल बहुत कम करती हैं। बहुत सारे कंसर्न के चलते तो यह आइडिया वहीं से आया कि वोमेन एक्सक्लूसिव टूर्स करवाना शुरू किया जाए। सात.आठ लड़कियां एक गाइड के साथ पहाड़ घूम रही हैं यह बड़ी एमपार्विंग सी चीज़ लगी मुझे। अच्छा रिस्पॉन्स भी आया। जरुरतें पूरी हो जाती हैं एम्बिशन मेरे हैं नहीं। मजा आ रहा हैं यह काम करने में। सुकून हैं जिंदगी में।
रूमुक होम स्टे के विषय में कुछ बताइए
मैंने कभी होमस्टे के विषय में तो सोचा नहीं था हां एकांत में एक छोटा सा घर तो काफ़ी पहले से चाहिए था मुझे। सो यह था कि एक छोटा सा घर होना चाहिए जरूरत भर की चीजें जिसमें हों फिर ट्रेवल सेक्टर में काम करते हुए रियलाईस हुआ कि फुरसत आज के समय में सबसे बड़ी लक्जरी हैं। पहले जो फुरसत हुआ करती थी लोगों के पास। वो अब नहीं हैं उसकी वजह यह हैं कि आदमी बेफिजूल की चीजों में ज्यादा इन्वॉल्व रहता हैं अब आदमी बेफिजूल की चीजों को जोड़ने के लिए अब परेशान रहता हैं तो सोचा कि एक जगह तो ऐसी होनी चाहिए जहां कम से कम कुछ दिन ही सही आदमी फुरसत से सिर्फ अपने लिए समय निकाल पाए। जैसा की मैंने बताया रूमूक एक गढ़वाली शब्द है जिसका अर्थ सांझ है। सांझ को आदमी दिन भर की माथापच्ची के बाद सुकून से सांस लेता हैं इसलिए मैंने होमस्टे का नाम रुमूक रखा। मैंने रूमुक में टीवी नहीं लगाए हैं, फोन की कनेक्टविटी भी जरूरत भर की है यहां। फैंसी कुछ मिलता नहीं मतलब आपको यहां सब कुछ बेयर मिनिमम ही मिलेगा। बेयर मिनिमम के साथ लाइफ आसान हो जाती हैं। इच्छाएं तो कभी खत्म नहीं होती वो ही हमको भगाती हैं यहां.वहां।
काफल ट्री से साभार

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