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घोड़े थक जाते हैं उत्तराखंड के युवाओं के आगे: क्षमताएं देखकर लोग हैरान

घोड़े थक जाते हैं उत्तराखंड के युवाओं के आगे: क्षमताएं देखकर लोग हैरान
राजीव पांडे, हल्द्वानी।
ओलंपिक गेम्स के साथ ही खिलाड़ियों की बदहाली पर चर्चा भी खत्म हो गई है। अगले ओलंपिक में खिलाड़ियों के निराशाजनक प्रदर्शन तक सन्नाटा रहेगा। मैं भी इस पर चर्चा नहीं करता यदि फूलों की घाटी से लौटते वक्त दीपक और बादल से मुलाकात न हुई होती। मुझे नहीं पता सरकारी उपेक्षा के बावजूद पदक लाने वाले खिलाड़ी देश को सम्मान दिलाने के लिए कितना पसीना बहाते होंगे मैं तो दीपक और बादल की क्षमताएं देखकर हैरान हूं। गोविंद घाट से फूलों की घाटी की तरफ जब आप चढ़ेंगे तो ऐसे कई एथलीट आपको दिखेंगे जिन्हें ट्रैक पर लाने की आवश्यकता है। रोज साठ किमी घोड़ों के साथ दौड़ना। इससे कठिन अभ्यास कोई करता है तो उसे भी मेरा सलाम है। उत्तराखंड के इन युवाओं की ताकत इससे ज्यादा है लेकिन बेचारे घोड़े थक जाते हैं। हां, कभी.कभार घोड़े साथ देते हैं तो 80 किमी भी हो जाता है इसमें 30 से 40 किमी तक खड़ी चढ़ाई होती है। ये रेस भी अकेले या एक घोड़े के साथ नहीं है। दो से आठ घोड़ों को काबू करते हुए पत्थरीले रास्तों पर दोनों ऐसे भागते हैं कि आने.जाने वाले लोग भौंचक्के रह जाते हैं। ये सामर्थ्य तब है जब न सही से सोने के लिए मिलता है और न खाने के लिए। सुबह चार बजे उठकर यात्रियों को घोड़ों पर बैठाकर दौड़ने का क्रम शुरू होता है और घोड़ों के हांफने तक जारी रहता है। गोविंदघाट से घाघरिया फूलों की घाटी का बेस कैंप तक दस किमी की दूरी दिन में तीन बार तय करते हैं। नाश्ते से लेकर रात.दिन तक के खाने का कोई पता नहीं। जो मिला, जहां मिला खाया और दौड़ा दिए घोड़े। दोनों को देखकर मुझे लगा पदक के लिए तरस रहे हमारे देश में ऐसे युवा बिखरे पड़े हैं लेकिन प्रतिभाओं को तराशना कठिन काम है। इसके उलट चैंपियन के साथ अपना फोटो चिपका लेना, उसके संघर्ष को देश का संघर्ष दिखा देना ज्यादा आसान है।
राजीव पांडे की फेसबुक वाल से

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