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उत्तराखंड में चाय उत्पादन योजनाओं को पर्यटन से जोड़ने की कवायद, जाने अतीत व वर्तमान….

उत्तराखंड में चाय उत्पादन योजनाओं को पर्यटन से जोड़ने की कवायद
उत्तराखंड प्रदेश से उत्पादित होने वाली चाय की विश्व भर में हो चुकी पहचान
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल
। प्रदेश सरकार उत्तराखंड की चाय उत्पादन योजनाओं को पर्यटन सर्किट से जोड़ते हुये किसानों के हाथ मजबूत करने जा रही है। उत्तराखंड राज्य भी अब चाय उत्पादन की दिशा में आगे बढ़ रहा है मुफीद आबो हवा के कारण अब तक तैयार किए गए चाय बागानों में बेहतर गुणवत्ता वाली चाय पैदा हो रही है, जिसे देश के साथ ही विदेशी बाजारों में भी भेजा जाने लगा है। खासतौर पर यहां की ऑर्थोडॉक्स ब्लैक-टी स्वाद और खुशबू की वजह से विदेशियों की पसंद बनती जा रही है। उत्तराखंड राज्य भी अब चाय उत्पादन की दिशा में आगे बढ़ रहा है मुफीद आबो हवा के कारण अब तक तैयार किए गए चाय बागानों में बेहतर गुणवत्ता वाली चाय पैदा हो रही है। जिसे देश के साथ ही विदेशी बाजारों में भी भेजा जाने लगा है। खासतौर पर यहां की ऑर्थोडॉक्स ब्लैक.टी स्वाद और खुशबू की वजह से विदेशियों की पसंद बनती जा रही है। उत्तराखंड चाय बोर्ड के नौटी, चंपावत, कौसानी व घोड़ाखाल बागान की इस चाय कि डिमांड देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी हैण् अब तक उत्तराखंड से तीन हजार किलो चायपत्ती को ईरानए ईराक और रूस भेजा जा चुका है। इस खेप में 1500 किलो चायपत्ती 170 रुपए प्रतिकिलो और 1500 किलो चायपत्ती 130 रुपए प्रतिकिलो के हिसाब से भेजी गई। इस चाय की विदेशों में हो रही अच्छी बिक्री की वजह से उत्तराखंड चाय बोर्ड के नौटी बागान को ही चार लाख बीस हजार रुपये की आय प्राप्त हुई है। अच्छा लाभ कमाने के कारण बोर्ड अब दूसरी खेप की पैकिंग की तैयारियों में जु़ट गया है। पर्यटकों को भी उत्तराखंड की चाय से रूबरू कराया जायेगा योजना पटरी में आई तो प्रदेश में चाय योजना लाभकारी होगी वहीं पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सकेगा। इस सर्किट में चाय की खेती, दर्शनीय, धार्मिक, पौराणिक स्थलों का भी समावेश किया जायेगा। सरकार चाय बोर्ड के माध्यम से देश भर में जो चाय बागानांे के लिए जो मजदूरी निर्धारित है उसका भुगतान किया जा रहा है फिर भी मजदूरी बढ़ाये जाने पर भी विचार कर रही है। नैनीताल के श्यामखेत सहित कौसानी व अन्य चाय बागानों में यह कार्य प्रारंभिक रूप से शुरू भी कर दिये गये हैं। नैनीताल श्यामखेत चाय बागान में स्थापित फैक्ट्री से उत्पादित चाय को राष्ट्रीय राज मार्गों में छोटे-छोटे स्टाल लगा कर बिक्री करने पर भी उत्तराखंड चाय बोर्ड योजना तैयार कर रहा है। नैनीताल के श्यामखेत के चाय बागान, घोड़ाखाल गोलज्यू धाम, कैंची धाम, शीतलादेवी, हैड़ाखान धाम को जोड़ते हुये एक पर्यटन सर्किट का प्रस्ताव शासन को पूर्व में भेजा जा चुका है। जिसके तहत चाय बागानों के विकास के लिए पूरे प्रदेश में विस्तार करते हुए चाय की खेती से काश्तकारों को जोड़ने की कवायद शुरू हो गई है। उत्तराखंड से उत्पादित होने वाली चाय की विश्व भर में पहचान है। यहां उत्पादित होने वाली चाय के छोटे-छोटे बिक्री स्टाल राष्ट्रीय राजमार्गो पर लगाये जाने पर भी योजना बनाई जा रही है। ताकि यहां आने वाले पर्यटकों को सुगमता से यहां की चाय उपलब्ध हो सके। मालूम हो कि चाय का उत्पादन जंगली जानवरों से सुरक्षित है तथा मुनाफे का सौदा भी है। इसलिए इस खेती का विस्तार वन पंचायतांे में भी किये जाने पर सरकार विचार कर रही है। चाय बोर्ड के अधिकारिक सूत्रों के अनुसार इस व्यवसाय के माध्यम से पर्वतीय क्षेत्रों की अधिक से अधिक महिलाओं को रोजगार दिया जा सकता है। जिले में चाय बागानों को विकसित करने के लिए व्यापक स्तर पर नर्सरी तैयार की जा रही है। वर्तमान में विकास खण्ड रामगढ़ में 5.87 लाख पौध, धारी में 4.40 लाख और विकास खण्ड बेतालघाट में 17.63 लाख जनपद मे ंकुल 27.9 लाख चाय पौधों की नर्सरी के रखरखाव का कार्य किया जा रहा है।
प्रदेश में 14 हजार हेक्टेयर भूमि पर चाय की खेती
नैनीताल।
प्रदेश में वर्तमान में लगभग 14 हजार हेक्टेयर भूमि पर चाय की खेती की जा रही है। सालाना 90 हजार किलोग्राम चाय का उत्पादन किया जा रहा है। चमोली जिले के नौटी, चंपावत और नैनीताल जिले के घोड़ाखाल क्षेत्र में 485 हेक्टेयर क्षेत्रफल में जैविक चाय तैयार की जा रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में ग्रीन जैविक चाय का की काफी मांग है। प्रदेश के चंपावत जिले में चंपावत, लोहाघाट, अल्मोड़ा जिले के धौलादेवी, भिकियासैंण, चौखुटिया, द्वाराघाट, हवालबाग, बागेश्वर जिले कपकोट, गरुड़, पौड़ी के कल्जीखाल, खिसू्र, पाबौ, पिथौरागढ़ के बेरीनाग, डीडीहाट, मुनस्यारी, उत्तरकाशी के भटवाड़ी, रुद्रप्रयाग जिले के उखीमठ, अगस्त्यमुनि, जखोली, टिहरी जिले के जाखणीधार, चंबाए नरेंद्र नगर, चमोली जिले के गैरसैंण, धराली, पोखरी क्षेत्र में चाय की खेती के लिए जमीन का चयन किया गया है। उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड द्वारा नैनीताल जनपद के घोड़ाखाल चाय डिवीजन में सरकार द्वारा वर्ष 1994-1995 से वर्ष 1999 तक सैनिक स्कूल से लीज पर ली गई भूमि पर चाय बागान विकसित करने की परियोजना की शुरूआत की गई थी। जिसमें घोडाखाल चाय बागान के अन्तर्गत 12 हेक्टेयर मंे चाय बागान विकसित किये गये। वर्ष 2000-2001 से वर्ष 2006-2007 तक राज्य सरकार द्वारा नैनीताल जनपद में परियोजना बंद कर दी गई थी। इसके पश्चात 2007 से जनपद में राज्य सरकार द्वारा पुनः चाय विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया गया। जिसके तहत बोर्ड द्वारा वर्तमान वर्ष मार्च 2017 तक नैनीताल जनपद के रामगढ़ विकास खंड में 42.83 हैक्टेयर, धारी विकास खंड में 68.776 हेक्टेयर तथा बेतालघाट विकास खण्ड में 11.921 हेक्टेयर कुल 128.52 हेक्टेयर क्षेत्रफल मे बागान विकसित किए गए है। वर्तमान में रामगढ़ विकास खण्ड के श्यामखेत व निगलाट में 12.61 हेक्टेयर, नथुवाखान में 30.22 हेक्टेयर, विकास खंड धारी के पदमपुरी में 28.091 हेक्टेयर, सरना, गुनियालेख में 40.68 हेक्टेयर तथा विकास खंड बेतालघाट में 12.73 हेक्टेयर जनपद में कुल 124.33 हेक्टेयर चाय की खेती की जा रही है।
कैसे आई उत्तराखंड में चायए क्यों हुआ था बंद
दरअसल चाय के पौधे भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में पहले से ही जगंली घास के रूप मौजूद थे। मगर किसी को मालूम नही था की ये चाय के पौधे हैं। असम के लोग इन पत्तियों को पानी में उबालकर दवाई की तरह इस्तमाल किया करते थे। जब 1834 में गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक ने इन लोगों को इसे दवाई की तरह पीते देखा तो उन्होंने एक समिती का गठन किया और असम के लोगों को चाय के बारे में जानकारी दी। जिसके बाद 1835 में असम में चाय की खेती शुरू की गई और इसी समय के आसपास ही उत्तराखंड में भी चाय की खेती शुरू की गई थी। इससे पहले 1827 में सहारनपुर के सरकारी वानस्पतिक उद्दान में अधीक्षक के रूप में कार्यरत डॉ रॉयल ने सरकार से कुमाऊं की ऐसी जमीने मांगी जो बंजर पड़ी थी। डॉ रॉयल का मानना था कि उत्तराखंड की ठंडी जलवायु के कारण यहां उगाई जाने वाली चाय बेहद स्वादिष्ट होगी। फिर 1834 में गर्वनर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक द्वारा एक समिति बनाई गईए जिसमें विशेषज्ञों द्वारा उपजाऊ जमीन का चुनाव किया गया और इसके बाद चाय की खेती में मदद के लिए चीन से बुलाए गए। 1834 में ही इस समिती द्वारा चाय की नर्सरी के लिए प्रशिक्षण हेतू देहरादून को चुना गया। देहरादून में राजपुर रोड और मसूरी के बीच झड़ीपानी में प्रशिक्षण केंद्र तैयार किया गया। इसके बाद 1835 में कलकत्ता से चाय के करीबन 2 हजार पौधे मंगवाए गए, जिन्हें अल्मोड़ा के लक्ष्मेश्वर और भीमताल में भरतपुर की नर्सरी में लगाया गया। इसी वर्ष ही गढ़वाल के टिहरी में भी चाय की कई पौधशालाओं का निर्माण कराया गया। वहीं 1843 में पौड़ी और गडोलिया में कैप्टन हडलस्टन चाय की खेती शुरू कर चुके थे और इसके अगले साल ही देहरादून के कौलागीर में करीब 400 एकड़ भूमि में सरकारी चाय बागान की स्थापना हुई। धीरे धीरे उत्तराखंड में चाय की खेती और उत्पादन तेजी से बढ़ने लगा और साल 1843 में जहां कुमाऊं में चाय का कुल उत्पादन 190 पोंड था वहीं अगले साल ये बढ़कर 375 पोंड हो गया था। उस समय उत्तराखंड और खासकर के अल्मोड़ा में पैदा होने वाली ये चाय असम और दार्जिलिंग में पैदा हो रही चाय से कई ज्यादा बेहतर मानी गई थी। जब इस चाय की पौधें इंग्लैण्ड भेजी गईं तो वहां के लोगों को ये काफी पसंद आईए यहां तक की ये चाय चीन की विश्वप्रसिद्ध ओलांग चाय को टक्कर दे रही थी। अब यहां की चाय का नशा अंग्रजों के सिर ऐसा चढ़ा की ब्रिटेन के कई परिवार यहां आकर बस गए। 1830 से 1856 के बीच ब्रिटेन से कई परिवार रानीखेत, भवाली, अल्मोड़ा, कौसानी, दूनागिरी, बिनसर, मुक्तेश्वर और रामगढ़ जैसी जगहों में बसने लगे। अब इन सभी परिवारों को सरकार द्वारा चाय एवं फलों की खेती के लिए जमीनें भेंट स्वरूप दी गई। इन ब्रिटिश परिवारों को चाय की खेती के लिए जो जमीनें भेंट स्वरूप दी गई उन्हें फ्री सैम्पल स्टेट कहा गया। अब 1965 तक इन इलाकों में चाय का उत्पादन अच्छा खासा हुआ, लेकिन स्वाद में सबसे अव्वल दर्जें की चाय के उत्पादन में पूर्णविराम लगना तब शुरू हुआ जब काठगोदाम और बरेली के बीच रेल यातायात शुरू हुआ। इस रेल का मुख्य उदेश्य था पहाड़ों में पैदा होने वाले उत्पादों को बाहर भेजना। अब लोगों को चाय के मुकाबले फलों में ज्यादा मुनाफा होने लगा, जिसके बाद धीरे धीरे चाय की खेती कम होने लगी और फलों की ज्यादा। इसके बाद साल 2004 में उत्तराखंड में चाय विकास बोर्ड का गठन किया गया और 2021 तक उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड ने प्रदेश के नौ जिलों में चाय के नए बागान विकसित करने के लिए 48 हजार हेक्टेयर जमीन का चयन किया। वहीं चमोली जिले में कई जगहों पर ग्रीन टी का भी उत्पादन किया जा रहा हैए जिसकी मार्केट में काफी ज्यादा डिमांड है।

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