Connect with us

संस्कृति

कभी खाया पहाड़ी वनस्पति च्यूरे, काले भूरे तिल व कौंच का घी, आजमा कर देखो

कभी खाया पहाड़ी वनस्पति च्यूरे, काले भूरे तिल व कौंच का घी, आजमा कर देखो
प्रोफेसर मृगेश पाण्डे, हल्द्वानी।  
पहाड़ी वनस्पति च्यूरे से घी बनता तो इसके फल खाये जाते। इसके घी में रसेदार सब्जी बड़ी स्वाद बनती। इसे टपकी और पालक के कापे में भी डाला जाता। काले भूरे तिल भी होते जिनका तेल भी सब्जी व दाल  में डाला जाता। जाड़ों में तिल भून कर खाये भी जाते। गुड़ के पाग के साथ लड्डू भी बनते। उर्द या मास की दाल में मसाले की तरह पीस के डाले जाते। खाने के साथ तिल भून व पीस कर चटनी बनती। जाड़ों में बदन का ताप भी बना रहता। बाल भी घने रहते बदन में लुनाई और चमक भी रहती। फिर मूत्र रोगों की रोकथाम भी करता पहाड़ी काला भूरा तिल।  बच्चों के साथ वो सब जिन्हें सोये में मुतभरी जाने का अल्त हो गया हो को कुछ दिन लगातार भुने तिल का किसी भी रूप में सेवन कराया जाता। ज्वान  बने रहने को भी जाड़ों में तिल से बने व्यंजन बनाना और खिलाना जरुरी जैसा हो जाता। खाया भी खूब जाता क्योंकि काला भूरा पहाड़ी तिल जितना चबाओ उतना सुवाद बढ़ता। मूंगफली भी बलुई जगहों में काफी होती। यह कच्ची भी खायी जाती और भून भान के भी। मूंगफली का तेल तो निकलता ही जो खाना बनाने में काम आता और बदन में चुपड़ने के भी। अखरोट और खुबानी कि गिरी का तेल भी जाड़ों में बदन में चुपड़ने और ठंड की आदि.व्याधि दूर करने में काम आता। खुबानी की कई किस्में ऐसी भी होतीं जिनकी गिरी बादाम जैसी मीठी होती पर बाकी बड़ी तीती कड़वी। इन्हें एकबटिया लिया जाता। फिर सिल में पीस लिया जाता। बीच.बीच में पानी से गीला करते रहते। जब यह खूब गुलगुला हो जाता और लोड़े से चिपकता नहीं तो मोटे कपड़े में रख निचोड़ लेते। खुमानी का यह तेल मालिश के काम तो आता ही नाक सूखने और ख्वारपीड़ में  बहुत काम आता। पहाड़ के जंगलों में कौंच भी खूब होता। जिसकी कोमल कलियों का साग बनता तो गोल बड़े दानों को दूध में उबाल, सुखा पीस पौडर या घी में मिला अवलेह भी बनाया जाता। पर इसके झाड़ को सिसूण कि तरह कोरे हाथ से नहीं छूते। छू लो तो तो इसके रोओं से भयानक खुजली लगती। इसलिए हाथ में बोरी का हंतरा बाँध कौंच की फली टीप ली जाती। इन्हें दूध में उबाल कर फली के सख्त बीज शुद्ध हो जाते, उबला दूध फेंक दिया जाता। जाड़ों में जोड़ों का दर्द कम करने बात व्याधि दूर करने में बदन में दम-ख़म बनाये रखने को इसे पूरक आहार की तरह लिया जाता। पहाड़ों में स्यांली या निर्गुन्डी भी होती इसके बीज जो हलकी  सफेदी.नीलापन लिए होते  सरसों या लाही के झांस वाले तेल में पका छान.छून कर शीशी में भर लेते। इसे पुठ पीड़, सुन्न पट्ट, आंग पीड़ में  चुपड़ा  जाता, मालिश की जाती। पत्तियों का चूर्ण और रस भी इसी काम आता तो मंत्रो को बुदबुदा इसकी पत्तियों से झाड़ा भी जाता।

More in संस्कृति

Trending News

Follow Facebook Page

About

आज के दौर में प्रौद्योगिकी का समाज और राष्ट्र के हित सदुपयोग सुनिश्चित करना भी चुनौती बन रहा है। ‘फेक न्यूज’ को हथियार बनाकर विरोधियों की इज्ज़त, सामाजिक प्रतिष्ठा को धूमिल करने के प्रयास भी हो रहे हैं। कंटेंट और फोटो-वीडियो को दुराग्रह से एडिट कर बल्क में प्रसारित कर दिए जाते हैं। हैकर्स बैंक एकाउंट और सोशल एकाउंट में सेंध लगा रहे हैं। चंद्रेक न्यूज़ इस संकल्प के साथ सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर दो वर्ष पूर्व उतरा है कि बिना किसी दुराग्रह के लोगों तक सटीक जानकारी और समाचार आदि संप्रेषित किए जाएं।समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी को समझते हुए हम उद्देश्य की ओर आगे बढ़ सकें, इसके लिए आपका प्रोत्साहन हमें और शक्ति प्रदान करेगा।

संपादक

Chandrek Bisht (Editor - Chandrek News)

संपादक: चन्द्रेक बिष्ट
बिष्ट कालोनी भूमियाधार, नैनीताल
फोन: +91 98378 06750
फोन: +91 97600 84374
ईमेल: [email protected]

BREAKING