संस्कृति
महाकुंभ 2025 का पहला अमृत स्नान मंगलवार को मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर शुरू हुआ
महाकुंभ 2025 का पहला अमृत स्नान मंगलवार को मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर शुरू हुआ
सीएन, प्रयागराज। महाकुंभ 2025 का पहला अमृत स्नान मंगलवार को मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर शुरू हुआ, जिसमें संतों और भक्तों ने पवित्र डुबकी लगाई। मकर संक्रांति पर सबसे पहले श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी और श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा ने अमृत स्नान किया। पहला अमृत स्नान कई मायनों में खास है। यह सोमवार को पौष पूर्णिमा के अवसर पर संगम क्षेत्र में पहले बड़े स्नान के एक दिन बाद हुआ। महाकुंभ में विभिन्न संप्रदायों के संतों के 13 अखाड़े भाग ले रहे हैं। त्रिवेणी संगम, उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती का पवित्र संगम है। महाकुंभ में भाग लेने वाले 13 अखाड़ों को तीन समूहों में बांटा गया है, संन्यासी शैव, बैरागी वैष्णव, और उदासीन। शैव अखाड़ों में श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा, श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी, श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा, श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी, श्री शंभू पंचाग्नि अखाड़ा, श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा और तपोनिधि श्री आनंद अखाड़ा पंचायत शामिल हैं। तलवार-त्रिशूल, डमरू लेकर घोड़े और रथ की सवारी कर हर.हर महादेव का उद्घोष करते हुए नागा साधु.संत संगम पहुंचे। नागा साधुओं के शादी अंदाज को देखकर ही इस विशेष स्नान को शाही स्नान कहा गया है। नागा साधुओं को धर्म का रक्षक माना जाता है और उन्हें सम्मान देते हुए पहला शाही स्नान कराया जाता है।नागा साधु और साधु-संतों के स्नान के बाद ही आम लोग स्नान करते हैं। वे मोक्ष की कामना से ऐसा करते हैं। कार्यक्रम के अनुसार श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी और श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा अनुष्ठान करने वाले पहले थे उसके बाद अन्य शैव और वैष्णव अखाड़े थे। हाड़ कंपा देने वाली ठंड के बावजूद हजारों श्रद्धालु इस पवित्र परंपरा में भाग लेने के लिए त्रिवेणी संगम पर पहुंचे। सोमवार को पवित्र स्नान के साथ शुरू हुआ महाकुंभ महोत्सव मकर संक्रांति पर अपने दूसरे दिन मनाया गया जो कि अमृत स्नान की शुरुआत के साथ मेल खाता है। देशभर में मनाया जाने वाला मकर संक्रांति भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और विविधता का प्रमाण है कुछ क्षेत्रों में इसे उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है, यह सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में संक्रमण का प्रतीक है। हर साल 14 जनवरी या लीप वर्ष में 15 जनवरी को मनाया जाने वाला यह त्यौहार सूर्य देवता को समर्पित है, जो सूर्य के उत्तर की ओर गति करने और एक नई शुरुआत का संकेत देता है। इस त्यौहार को जीवंत उत्सव पतंगबाजी और सामुदायिक समारोहों के साथ मनाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चे पारंपरिक रीति.रिवाजों का पालन करते हैं, घर-घर जाकर गीत गाते हैं और मिठाइयां इकट्ठा करते हैं। मकर संक्रांति मौसमी परिवर्तन का भी प्रतीक है, जो सर्दियों को अलविदा कहता है और वसंत का स्वागत करता है, दिलों को आशा और खुशी से भर देता है।