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नैनीताल हिमालय संग्रहालय में रखी कुषाण प्रस्तर मूर्तियां इन दिनों बनी पर्यटकों की आकर्षण का केन्द्र

नैनीताल हिमालय संग्रहालय में रखी कुषाण प्रस्तर मूर्तियां इन दिनों बनी पर्यटकों की आकर्षण का केन्द्र
500 से 1200 ईसवी में कत्यूर वंश शासकों ने कुमाऊं में मूर्तिकला को दिया था प्रोत्साहन
सीएन, नैनीताल।
डीएसबी परिसर नैनीताल स्थित हिमालय संग्रहालय में रखी कुषाण कला शैली से बनी प्रस्तर मूर्तियां यंहा आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र ही नहीं बल्कि शोध का विषय बनी है। इन दिनों नैनीताल आने वाले व यहां के इतिहास से रूचि रखने वाले सैलानी भी संग्रहालय पहुंच रहे हैं। कुषाणकालीन शैली में बनी मूर्तियों में सिर से पैर तक चोगा व पैरों में बूट दिखाया जाना 11वां सदी की उन्नत जीवन को प्रदर्शित करती है। संग्रहालय में दूसरी सदी ईसवी पूर्व से लेकर 10वीं से 15वीं सदी के मध्य की प्रस्तर मूर्तियां संग्रहित की गयी है। डीएसबी परिसर प्रशासन द्वारा इस संग्रहालय को शोधार्थियों के लिए ही नही बल्कि सैलानियों के लिए भी अवलोकन के लिए खोला गया है। संग्रहालय की खास विशेषता यह है कि यहां, रखी अधिकांश प्रस्तर मूर्तियां चर्तुभुजी गणेश, विष्णु, द्विभुजीय सूर्य, चतुभुजी बाराह, नवग्रह की है। जो विभिन्न सदी के शासित राजाओं के समय का है। इस संग्रहालय में रखी 11वीं सदी लगभग की कुषाण कला शैली की सूर्य प्रतिमा रखी गई है। जिसे अल्मोड़ा जिले से लाया गया है। इतिहासकार प्रो. अजय रावत के मुताबिक कुमाऊं में 300 ईसवी से कुलिन्द काल में प्रस्तर मूर्ति बनाने का प्रचलन हुआ था। 500 से 1200 ईसवी में कुमाऊं में कत्यूर वंश शासकों का शासन रहा। इस दौरान कुमाऊं में मूर्तिकला व मंदिर निर्माण को काफी प्रोत्साहन मिला। भव्य मंदिर बनाने गये। कत्यूरी काल में अधिकांश स्थानों में सूर्य, विष्णु की प्रस्तर मूर्तिया बनायी गईं 1200 से 1790 ईसवी में कुमाऊं में चंद वंशीय राजाओं ने मंदिरों का जीर्णोद्धार मूर्ति स्थापना व नये मंदिरों का निर्माण कराया। इसके बाद गोरखा वंश के राजाओं ने भी प्रस्तर मूर्तिकारों को प्रोत्साहन दिया। संग्रहालय के क्यूरेटर डा. हीरा भाकुनी के मुताबिक 1815 में यहां अंग्रेजी शासन शुरू हो गया। इसके बाद प्रस्तर मूर्तिकला घरों तक सिमट कर रह गयी। सैकड़ों साल पूर्व बनायी गई प्रस्तर मूर्तियों को देखने अब पर्यटक भी संग्रहालय में आते है। इसके अलावा यहां इतिहास से संबंधित विशाल संग्रह भी है। शोधार्थियों के लिए यह संग्रहालय महत्वपूर्ण है।

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