Connect with us

संस्कृति

उत्तराखंड की परंपरा : ओखव या ओखली पहाड़ के परिवारों का आधार

उत्तराखंड की परंपरा : ओखव या ओखली पहाड़ के परिवारों का आधार
विनोद पन्त, हरिद्वार।
ओखव या ओखली पहाड़ के परिवारों का आधार है. धान कूटने का यह स्थान बेहद पवित्र माना जाता है. इसको नंग्याते यानी लांघते नहीं हैं. यहां पर धान कूटने के अलावा मडुवा भी कूटा जाता है जिसको मडू फवण कहते हैं. धान कूटने और मडुवा कूटने में फरक है. धान को मूसल की फव् की तरफ से कूटा जाता है ताकि उसका छिलका अलग हो सके जिसे बूस कहते हैं. मडुवा या तो हल्के हाथों से या मूसल उल्टा करके कूटा जाता है. धान को दो महिलायें दोमुसई करके भी कूटती हैं. दोमुसई यानी दो मूसल से. इसके लिए दक्षता की जरूरत होती है जिसे महिलाए आसानी से हासिल कर लेती हैं. दो मुसई करते समय दोनों महिलाएं बारी-बारी से चोट मारती हैं तो उनके मुंह से स्हू-स्हू की आवाज एक लयबद्ध संगीत सा बन जाती है. एक चोट मारेगी और उसका मूसल उपर जाऐगा उसी दौरान दूसरी चोट मार देगी. यह इतनी कुशलता से होता है कि न तो आपस में मूसल टकराते हैं न दूसरे को चोट लगती है और यह काम ऐसे करना है कि ओखल के धान बिखरे भी नहीं. मतलब नपा तुला प्रहार. इन्हीं चोटों के बीच जिनमें सेकेंडों का अन्तर होता है एक महिला पैर से थोड़े बिखर रहे चावलों को पैर से बीच में करती रहती है. इसके लिए कभी-कभी एक अन्य महिला की सहायता भी ली जाती है जो छोटे कूच यानी झाडु (मिनी झाडू बाफिल घास का) से चावल अन्दर को धकेलती रहती है जिसे बटोवण (बटोरना) कहते हैं. धान कूटने वाली को कूटनेर और बटोरने वाली को बटोवनेर कहते हैं. ओखली में ही च्यूड़े (पोहा या चिवड़े जैसे) भी कूटते हैं जिसके लिए खुशबूदार स्वादिष्ट धान को भिगोकर फिर भूनकर कूटा जाता है. इसको एक कूटनेर कूटती है एक बटोवनेर उल्टे पण्यूल (भात निकालने की पोनी) से खोदती सी रहती है ताकि भीगे कच्चे धान आपस में चिपके नहीं और बराबर कुट जाऐ. ओखल पर विभिन्न तीज त्यौहारों और अवसरों पर ऐपण भी दिये जाते हैं. ओखल खुले में या एक कमरेनुमा जगह पर भी बनते हैं जिसे ओखवसार कहते हैं. यह ओखवसार कुछ ही घरों में मिलती है. बरसात वगैरह में इसी में कूटते हैं. लोग एक दूसरे के यहां भी ओखसलार में कूटने जाते हैं. ओखलसार पर कई कहावतें भी बनी है जिसमें प्रमुख है- साज क पौंण ओखवसार बास्. गांव के लोग इससे एक काम और लेते हैं. च्यूंकि बारिश को मापने का कोई यन्त्र नहीं होता था तो लोग ओखल में भरा पानी देखकर बारिश की मात्रा का अंदाजा लगाते थे कि कम बारिश हुई ओखल की तली तक पानी था, आधा ओखल पानी बरसा या औखल डब्ब भर गया तो बहुत बारिश हुई. आजकल तो ओखल व ओखलसार लगभग बांज पड़ गये हैं. काफल ट्री से साभार

More in संस्कृति

Trending News

Follow Facebook Page

About

आज के दौर में प्रौद्योगिकी का समाज और राष्ट्र के हित सदुपयोग सुनिश्चित करना भी चुनौती बन रहा है। ‘फेक न्यूज’ को हथियार बनाकर विरोधियों की इज्ज़त, सामाजिक प्रतिष्ठा को धूमिल करने के प्रयास भी हो रहे हैं। कंटेंट और फोटो-वीडियो को दुराग्रह से एडिट कर बल्क में प्रसारित कर दिए जाते हैं। हैकर्स बैंक एकाउंट और सोशल एकाउंट में सेंध लगा रहे हैं। चंद्रेक न्यूज़ इस संकल्प के साथ सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर दो वर्ष पूर्व उतरा है कि बिना किसी दुराग्रह के लोगों तक सटीक जानकारी और समाचार आदि संप्रेषित किए जाएं।समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी को समझते हुए हम उद्देश्य की ओर आगे बढ़ सकें, इसके लिए आपका प्रोत्साहन हमें और शक्ति प्रदान करेगा।

संपादक

Chandrek Bisht (Editor - Chandrek News)

संपादक: चन्द्रेक बिष्ट
बिष्ट कालोनी भूमियाधार, नैनीताल
फोन: +91 98378 06750
फोन: +91 97600 84374
ईमेल: [email protected]

BREAKING