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बागेश्वर नाम से जुड़ी एक लोककथा : जब शिव व पार्वती ने सरयू के लिए एक संयोग रचा

बागेश्वर नाम से जुड़ी एक लोककथा : जब शिव व पार्वती ने सरयू के लिए एक संयोग रचा
सीएन, बागेश्वर।
कुमाऊं के सबसे पुराने नगरों की बात की जाय तो बागेश्वर की गिनती सबसे पुराने नगरों में की जाती है. बागेश्वर वर्तमान में एक जिला है जो अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान और अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य के लोकप्रिय है. बागेश्वर व्याघ्रेश्वर का अपभ्रंश है माने बागेश्वर का पुराना नाम व्याघ्रेश्वर था जो समय के साथ बदलता हुआ बागेश्वर हो गया. कुमाऊं में बागेश्वर को काशी के सामान तीर्थ माना जाता है. काशी तीर्थ से तुलना का कारण संभवतः इसका गोमती और सरयू नदी के संगम पर स्थित होना है. बागेश्वर के नाम जुड़ी एक स्थानीय लोककथा कुछ इस प्रकार है–अयोध्या में रामचन्द्र जी का जन्म हुआ तो एक विशाल समारोह का आयोजन किये जाने की घोषणा हुई. आयोजन में शामिल होने के लिये दूर-दूर तक आमंत्रण भेजे गये. सरयू नदी भी अयोध्या में होने वाले इस समारोह में शामिल होने निकली पर उसे रास्ते में ही रुक जाना पड़ा. दरसल मारकण्डेय मुनि सरयू के मार्ग में तप कर रहे थे जिस वजह से सरयू आगे न बड़ सकी. सरयू की यह विपदा देवी पार्वती से न देखी गयी और उन्हें सरयू पर दया आ गयी. देवी पार्वती ने भगवान शिव से सरयू की मदद करने का आग्रह किया. शिव तो आशुतोष हैं वह कहां किसी को विपदा में देख पाते. भगवान शिव और देवी पार्वती ने सरयू को इस विपदा से निकालने हेतु एक संयोग रचा. शिव ने एक व्याघ्र का अवतार लिया और पार्वती ने लिया गाय का अवतार. दोनों जा पहुंचे उस जगह जहां मारकण्डेय मुनि तप कर रहे थे. आगे-आगे गाय भागती उसके पीछे व्याघ्र. मारकण्डेय मुनि ने एक व्याघ्र और गाय पर आक्रमण करता देखा तो गाय की रक्षा के लिये उन्हें अपना तप छोड़ना पड़ा. गाय को बचाने जैसे ही मारकण्डेय मुनि अपने स्थान से हिले सरयू ने अपना रास्ता पकड़ लिया. सरयू के निकलते ही व्याघ्ररूपी शिव और गौ रूपी पार्वती अन्तर्ध्यान हो गया. यह माना जाता है कि मारकण्डेय मुनि ने इसी स्थान को व्याघ्रेश्वर कहा और एक मंदिर का निर्माण कराया जो कालान्तर में बागेश्वर हुआ. इस मंदिर में स्थापित शिव व्याघ्रनाथ हुए. काफल ट्री से साभार

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