धर्मक्षेत्र
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में चूहों का आंतक, उड़ा रखी है पुजारियों की रातों की नींद
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में चूहों का आंतक, उड़ा रखी है पुजारियों की रातों की नींद
सीएन, पुरी। जगन्नाथ पुरी मंदिर में चूहों ने आतंक मचा रखा है। मंदिर प्रबंधन की रातों की नींद हराम हो रखी है। हाल ही में ये चूहे भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की पोशाक चबा गए थे। अब इस बात की आशंका जताई जा रही है कि ये लकड़ी से बनी देवताओं की मुर्तियों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है, सोमवार को मंदिर में खसपदा अनुष्ठान शुरू होने वाला था। मुख्य अनुष्ठान करने वाले दैतापति सेवकों ने पाया कि चूहों ने देवताओं के कपड़े खराब कर दिए थे, माला चबा ली थी और रत्न सिंहासन पर चढ़ाया गया प्रसाद खा लिया था। मंदिर के गर्भगृह में भी चूहों ने गंदगी फैला रखी थी। मंदिर प्रशासन ने हाल ही में चूहों, बंदरों और कबूतरों से निपटने के लिए एक अलग रास्ता अपनाया था। उन्होंने एक भक्त द्वारा दान की गई एक मशीन स्थापित की थी, जो चूहों, बंदरों और कबूतरों को भगाने के लिए ध्वनि का उपयोग करती थी। हालांकि, सेवादारों ने कहा कि ध्वनि के कारण भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की नींद में खलल पड़ता है, जिसके बाद इस मशीन को हटा दिया गया। रिपोर्ट के मुताबिक मंदिर के वरिष्ठ सेवादार विनायक दशमोहापात्र, जो अनुष्ठान का हिस्सा थे, उन्होंने बताया कि देवताओं के श्री अंग (पवित्र लकड़ी के शरीर) को कोई नुकसान नहीं हुआ, हालांकि चूहों ने पोशाक, फूल और तुलसी के पत्तों को नुकसान पहुंचाया। आमतौर पर रात के समय मंदिर बंद होने के बाद चूहों का आतंक बढ़ जाता है, जो आम तौर पर पवित्र वेदी के ऊपर छिपते हैं, नीचे चढ़ते हैं और हंगामा करते हैं।
श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर की उत्कृष्ट विशेषताएं
जगन्नाथ पुरी भारत के सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है। भारत के पूर्वी तट पर स्थित यह धाम भगवान विष्णु के अखिल ब्रम्हांड नायक स्वरूप को समर्पित है। उन्हे भगवान विष्णु का वह स्वरूप माना जाता है जो वर्तमान में व्याप्त कलयुग के लिए उत्तरदायी हैं। यह तथ्य इस तीर्थ को वर्तमान समय में और अधिक महत्वपूर्ण बनाता है। आदि शंकराचार्यजी ने भी पूर्वी गोवर्धन मठ की स्थापना करने के उद्देश्य से इसी स्थान का चयन किया था। पूर्वी गोवर्धन मठ उन ४ मठों में से एक है जिनकी स्थापना आदि शंकराचार्यजी ने भारत के चार दिशाओं में की थी।
जगन्नाथ मंदिर का संक्षिप्त इतिहास
ऐसी मान्यता है कि जगन्नाथ के मूल मंदिर का निर्माण सतयुग में राजा इंद्रद्युम्न ने करवाया था। सतयुग काल के प्रमाण खोजना व्यर्थ है। किन्तु इंद्रद्युम्न सरोवर नामक एक सरोवर अब भी पुरी नगरी में स्थित है। जगन्नाथ मंदिर से संबंधित कथा सर्वविदित एवं सर्वस्वीकृत है। इस कथा के अनुसार भगवान विष्णु इस क्षेत्र के वनों में मूलतः नील माधव के नाम से पूजे जाते थे। इंद्रद्युम्न मालवा के राजा थे। उन्होंने विद्यापति नामक एक ब्राह्मण को नील माधव को खोजने की आज्ञा दी। ब्राह्मण ने उस क्षेत्र के मुखिया की पुत्री से विवाह कर उस स्थान की जानकारी प्राप्त कर ली जहां नील माधव थे। किन्तु भगवान की लीला निराली है। उन्हे यह स्वीकार्य नहीं था कि ब्राह्मण उन्हे खोजे। अंततः भगवान विष्णु की आज्ञा पाकर राजा इंद्रद्युम्न यहाँ आए तथा उनका बताया हुआ लकड़ी का लठ्ठा प्राप्त किया। इस लठ्ठे से जगन्नाथ, बलराम एवं सुभद्रा की प्रतिमाएं बनायी गईं। एक सुदर्शन चक्र भी उत्कीर्णित किया गया। तत्पश्चात राजा ने पहाड़ी के ऊपर मंदिर की स्थापना की। एक अन्य किवदंती के अनुसार देवलोक के शिल्पकार विश्वकर्मा ने मूर्ति गढ़ने की स्वीकृति दी किन्तु उस समयावधि में कार्यशाला में किसी के भी प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि किसी भी बाधा की स्थिति में मूर्तियाँ अपूर्ण रह जाएंगी। किन्तु अधीर राजा ने भीतर झाँककर विश्वकर्मा के कार्य में विघ्न उत्पन्न किया जिससे मूर्तियाँ अपूर्ण रह गईं। विश्वकर्मा ने तब तक विग्रहों के बाहु नहीं बनाए थे।
