धर्मक्षेत्र
28 अगस्त को है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी : कान्हा जन्मोत्सव पर बन रहे द्वापरकाल जैसे चार शुभ संयोग
28 अगस्त को है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी : कान्हा जन्मोत्सव पर बन रहे द्वापरकाल जैसे चार शुभ संयोग
सीएन, नैनीताल। सावन माह का प्रमुख त्योहार रक्षाबंधन का पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया गया। भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। इस तिथि पर जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं। इस दिन कान्हा जी का जन्म हुआ था। इस खास मौके पर मंदिरों को तरीके से सजाया जाता है और शुभ मुहूर्त पर उनकी विधि.विधान पूर्वक पूजा.अर्चना की जाती है। हिंदू पंचांग के मुताबिक इस बार की कृष्ण जन्माष्टमी काफी ज्यादा शुभ मानी जा रही है। इस दिन दशकों बाद 4 शुभ संयोगों का निर्माण हो रहा है। इस बार भक्तों को दोगुना फल प्राप्त होगा। कृष्ण जन्माष्टमी हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाएगी। इस बार कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 28 अगस्त, 2024 को मनाया जा रहा है। पूजा का शुभ समय 27 अगस्त. देर रात 12.01 से लेकर 12.45 तक है। ज्योतिष शास्त्र की मानें तो इस बार कृष्ण जन्माष्टमी के दिन खास संयोग बन रहे हैं। कृतिका नक्षत्र का संयोग.दोपहर 03.56 बजे से हो रहा है। हर्षण योग.शुरुआत रात 10.18 पर होगी। सर्वार्थ सिद्धि योग, संयोग संध्याकाल 3.55 पर होगा, जिसका समापन 27 अगस्त सुबह 5.57 पर होगा। इसके अलावा शिव वास योग बनने से यह दिन और भी अधिक खास हो जाएगा। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार यह जीवन में हर्ष और उल्लास वाला योग माने जा रहे हैं। ये योग जीवन में तरक्की और सफलता का योग सिद्ध हो सकते हैं। इन योगों के बनने से पूजा करने पर जातकों के पारिवारिक जीवन में खुशियों की बौछार होगी। स्वयं महादेव और मां पार्वती की कृपा बरसेगी। इन संयोगों के अलावा 25 अगस्त की रात 10.19 पर चंद्रमा वृषभ राशि में गोचर करने वाले हैं। उनके राशि परिवर्तन का असर जन्माष्टमी का व्रत करने वाले जातकों पर भी दिखाई देगा। इसलिए यह बेहद खास संयोग माना जा रहा है क्योंकि भगवान श्री कृष्ण की लग्न राशि वृषभ है।
भगवान कृष्ण की महानता
श्री कृष्ण जी भगवान विष्णु जी के अवतार हैं जो तीनों लोकों के तीन गुणों सतगुण, रजगुण तथा तमोगुण में से सतगुण विभाग के प्रभारी हैं। भगवान का अवतार होने के कारण से श्री कृष्ण जी में जन्म से ही सिद्धियां उपस्थित थी। उनके माता पिता वसुदेव और देवकी जी के विवाह के समय मामा कंस जब अपनी बहन देवकी को ससुराल पहुँचाने जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई थी जिसमें बताया गया था कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का अन्त करेगा। अर्थात् यह होना पहले से ही निश्चित था अतः वसुदेव और देवकी को कारागार में रखने पर भी कंस कृष्ण जी को नहीं समाप्त कर पाया। मथुरा के बंदीगृह में जन्म के तुरंत उपरांत उनके पिता वासुदेव आनक दुन्दुभिः कृष्ण को यमुना पार ले जाते हैं जिससे बाल श्रीकृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा को दिया जा सके। जन्माष्टमी पर्व लोगों द्वारा उपवास रखकर कृष्ण प्रेम के भक्ति गीत गाकर और रात्रि में जागरण करके मनाई जाती है। मध्यरात्रि के जन्म के उपरान्त शिशु कृष्ण की मूर्तियों को धोया और पहनाया जाता है फिर एक पालने में रखा जाता है। फिर भक्त भोजन और मिठाई बांटकर अपना उपवास पूरा करते हैं। महिलाएं अपने घर के द्वार और रसोई के बाहर छोटे-छोटे पैरों के चिन्ह बनाती हैं जो अपने घर की ओर चलते हुए, अपने घरों में श्रीकृष्ण जी के आने का प्रतीक माना जाता है।