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धर्मक्षेत्र

आज 17 सितंबर से शुरू हो रहे हैं पितृ श्राद्ध पक्ष : 15 दिनों के लिए पितर यमकोल से धरती पर आकर करते हैं निवास

सीएन, हरिद्वार। हिंदू धर्म में पितरों की विशेष स्थान दिया गया हैं. सनातम धर्म में मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध पक्ष में 15 दिनों के लिए पितर यमकोल से धरती पर आकर निवास करते हैं. धार्मिक मान्यताओं में तो यहां तक कहा जाता है कि जो व्यक्ति अपने पितरों को भूल जाता है और श्राद्ध पक्ष में उनका दर्पण और पिंडदान नहीं करता, उससे उनके पितर रुष्ठ हो जाते हैं. ऐसे रूष्ठ पितरों को मानने के लिए धरती पर तीन स्थान बताए गए हैं, जिसमें से दो स्थान उत्तराखंड के हरिद्वार का नारायणी शिला और चमोली जिले में बदरीनाथ धाम है. वहीं एक स्थान बिहार का गया जी हैं. पुराणों में बताया गया है कि जब सूर्य कन्या राशि में आता है, तब श्राद्ध पक्ष शुरू होते हैं. इस ग्रह योग में पितृलोक पृथ्वी के सबसे करीब होता है. यह ग्रह योग आश्विन कृष्ण पक्ष में बनाता है. श्राद्ध संस्कार का उल्लेख कई हिंदू ग्रंथों में मिलता है. श्राद्ध पक्ष को महालय और पितृ पक्ष के नाम से भी जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध का मतलब अपने देवताओं, पितरों, परिवार और वंश के प्रति श्रद्धा प्रकट करना होता है. हिंदू धर्म में मनुष्य पर तीन ऋण बताए गए हैं, जिसमें पहला देव ऋण, दूसरा ऋषिऋण और तीसरा पितृऋण. पितृऋण से मुक्ति पाने के लिए ही श्राद्ध किया जाता हैं. श्राद्ध, पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का एक अनुष्ठान है. माना जाता है कि जो लोग पितृपक्ष में पितरों का तर्पण नहीं करते है, उन्हें पितृ दोष लगता है. जिस किसी तिथि को व्यक्ति की मौत होती है, उसका श्राद्ध उसी दिन किया जाता है.

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