धर्मक्षेत्र
आज 4 अगस्त को है विभुवन संकष्टी चतुर्थी, क्या है कथा
आज 4 अगस्त को है विभुवन संकष्टी चतुर्थी, इन उपायों से बढ़ेगी सुख-समृद्धि, कथा
सीएन, हरिद्वार। हिंदू पंचांग के अनुसार,विभुवन संकष्टी चतुर्थी का व्रत 4 अगस्त, शुक्रवार के दिन रखा जाएगा। ये व्रत 3 साल में एक बार किया जाता है। चतुर्थी तिथि का आरंभ 4 अगस्त की दोपहर 12:46 बजे से होगा और इसका समापन 05 अगस्त की सुबह 09:38 बजे होगा। पूजा का शुभ मुहूर्त 4 अगस्त की सुबह 5:39 बजे से सुबह 7:30 बजे तक रहेगा। इसके अतिरिक्त सुबह 10:45 बजे से दोपहर 2:40 बजे तक भी पूजा की बहुत ही शुभ मुहूर्त है। इस विशेष दिन पर चंद्र देव की पूजा का भी विशेष महत्व है। साथ ही व्रत का पारण चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही किया जाता है। विभुवन संकष्टी चतुर्थी व्रत के दिन पूजा करने पर मान्यतानुसार भगवान गणेश अति प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों का जीवन सुख और समृद्धि से भर देते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिन लोगों की कुंडली में बुध कमजोर हो, उन्हें ये व्रत अवश्य करना चाहिए। साथ ही जिनकी कुंडली में राहु और केतु का अशुभ प्रभाव होता है, उन्हें इस व्रत को रखने से विशेष लाभ मिलता है। अगर आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रहती हो तो विभुवन संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश जी को बेसन के मोदक का भोग लगाएं। इससे आर्थिक समस्या दूर होगी। घर की सुख-समृद्धि के लिए इस दिन गणपति के मंत्र- ‘ओम गं गणपतये नम:।’ का 11 माला का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से धन में वृद्धि के योग बनेंगे। परिवार में समृद्धि बनी रहे, इसके लिए घर या वर्कप्लेस पर गणेश जी की दोनों पैरों पर खड़ी मूर्ति लगानी चाहिए। ऐसा करने से वास्तु दोष से मुक्ति मिल सकती है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार सभी देवी-देवताओं के ऊपर भारी संकट आ गया. जब वह खुद से उस संकट का समाधान नहीं निकाल पाए तो भगवान शिव के पास मदद मांगने के लिए गए। भगवान शिव ने गणेश जी और कार्तिकेय से संकट का समाधान करने के लिए कहा तो दोनों भाइयों ने कहा कि वे आसानी से इसका समाधान कर लेंगे। इस प्रकार शिवजी दुविधा में आ गए। उन्होंने कहा कि इस पृथ्वी का चक्कर लगाकर जो सबसे पहले मेरे पास आएगा वही समाधान करने जाएगा। भगवान कार्तिकेय बिना किसी देर किए अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए निकल गए। वहीं गणेश जी के पास मूषक की सवारी थी। ऐसे में मोर की तुलना में मूषक का जल्दी परिक्रमा करना संभव नहीं था। तब उन्होंने बड़ी चतुराई से पृथ्वी का चक्कर ना लगाकर अपने स्थान पर खड़े होकर माता पार्वती और भगवान शिव की 7 परिक्रमा की। जब महादेव ने गणेश जी से पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया तो इस पर गणेश जी बोले माता पिता के चरणों में ही पूरा संसार होता है। इस वजह से मैंने आप की परिक्रमा की। यह उत्तर सुनकर भगवान शिव और माता पार्वती बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने देवताओं का संकट दूर करने के लिए गणेश जी को चुना। इसी के साथ भगवान शिव ने गणेश जी को यह आशीर्वाद भी दिया कि जो भी चतुर्थी के दिन गणेश पूजन कर चंद्रमा को जल अर्पित करेगा उसके सभी दुख दूर हो जाएंगे। साथ ही पाप का नाश और सुख समृद्धि की प्राप्ति होगी।
