धर्मक्षेत्र
आज 17 जुलाई को है मुहर्रम : कर्बला की जंग में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के छोटे नवासे हजरत इमाम हुसैन की हुई शहादत
आज 17 जुलाई को है मुहर्रम : कर्बला की जंग में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के छोटे नवासे हजरत इमाम हुसैन की हुई शहादत
सीएन, नैनीताल। इस्लाम धर्म में मुहर्रम का महीना बहुत ही खास और पाक माना जाता है। मुस्लिम समुदाय में मुहर्रम का विशेष महत्व है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार मुहर्रम से ही पहले महीने का आरंभ होता है। मान्यता है कि रमजान के महीने के बाद सबसे अच्छा रोजा मुहर्रम का होता है। बता दें कि इसकी तारीख का निर्धारण चांद दिखने के बाद ही किया जाता है। इसलिए इसकी तिथि हर साल बदलती रहती है। दुनियाभर के मुस्लिम समुदाय के लोग इस दिन को खूब मानते हैं। कहा जाता है कि इसे इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में मातम करके मनाया जाता है। इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने का दसवां दिन काफी खास होता है, जिसे आशूरा के रूप में इस दिन मनाया जाता है। इसी दिन कर्बला की जंग में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के छोटे नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। शिया मुसलमान इस महीने को उत्सव के रूप की बजाय शोक के महीने के रूप में मनाते हैं। इस महीने को इमाम हुसैन की मौत के मातम के रूप में याद किया जाता है और लोग गमजदा होकर ताजिए निकालते हैं। इस्लामी कैलेंडर की बात करें तो मोहर्रम के महीने की शुरुआत 7 जुलाई से हो रही है। 17 जुलाई को दुनिया भर में आशूरा मनाया जाएगा। आशूरा के दिन ही ताजिए निकाले जाएंगे और ताजियादारी की जाएगी। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग इमाम हुसैन की शहादत में ताजिए निकालते हैं और दुख प्रकट करते हैं। कहा जाता है कि आशूरा यानी मुहर्रम के माह के दसवें दिन इस्लाम की रक्षा करने वाली कर्बला की जंग में इमाम हुसैन सबसे छोटे लड़ाके थे जो लड़ते हुए शहीद हो गए थे। दुनिया भर में शिया मुसलमान इस दिन काले कपड़े पहन कर ताजिए निकालते हैं और इस जुलूस में लोग खुद को घायल करके खुद का खून बहाते हैं और इमाम हुसैन की शहादत पर अपना दुख जाहिर करते हैं। वहीं सुन्नी समुदाय के लोग इस दिन इबादत करते हैं और रोजा रखते हैं। सुन्नी समुदाय में कहा जाता है कि मोहर्रम के माह में अल्लाह की इबादत करने और रोजा करने से अल्लाह की इनायत पूरे साल बरसती है। वहीं शिया समुदाय इसे यौम ए आशूरा के रूप में मनाता है और शिया भी इस दौरान रोजा रखते हैं।
कर्बला की जंग में इस दिन क्या हुआ था
इस्लामिक मान्यता के अनुसार कर्बला की जंग 1400 साल पहले हुई थी। जिसमें पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। इस्लाम की शुरुआत मदीना से मानी जाती है। मदीना से कुछ दूरी पर मुआविया नाम का एक शासक थाए जिसके मरने के बाद उसके बेटे यजीद को शाही गद्दी पर बैठाया गया था। यजीद बहुत ही क्रूर शासक था। यजीद अपना खुद का अलग मजहब बनाना चाहता था जिसकी वजह से उसने लोगों को अपने आदेशों को पालन करने के लिए कहा और खुद को इस्लाम का खलीफा मानने के लिए कहा। यजीद जानता था कि मोहम्मद साहब नवासे इमाम हुसैन के समर्थक बहुत ज्यादा थे, इसलिए उसने इमाम हुसैन से कहा कि अपने समर्थकों से कहे कि वो यजीद को ही खलीफा मानें। जब इमाम साहब ने यजीद की बात नहीं मानी, तो उसने लोगों पर क्रूरता करनी शुरू कर दी। उसने सभी लोगों पर जुल्म ढाए। मुहर्रम की 10 तारीख को यजीद की फौज और हुसैन के काफिले के बीच जंग हुई। यजीद की फौज बहुत बड़ी थी और हुसैन के साथ सिर्फ 72 लोग थे। हुसैन ने अपने साथियों से कहा कि वे उन्हें छोड़कर चले जाएँ, लेकिन कोई भी नहीं गया। हुसैन जानते थे कि यजीद उन्हें नहीं छोड़ेगा। यजीद बहुत ताकतवर था और उसके पास बहुत सारे हथियार थे। हुसैन के पास इतनी ताकत नहीं थी। फिर भी हुसैन ने यजीद के सामने झुकने से इंकार कर दिया। हुसैन ने अपने साथियों के साथ मिलकर यजीद की फौज का डटकर मुकाबला किया लेकिन कोई भी हुसैन को छोड़कर वहां से नहीं गया। यह हुसैन और उनके साथियों की वीरता और साहस का परिचय देता है।