धर्मक्षेत्र
आज 19 मई को है मोहिनी एकादशी : राजा युधिष्ठिर और श्रीराम ने रखा था व्रत
आज 19 मई को है मोहिनी एकादशी: राजा युधिष्ठिर और श्रीराम ने रखा था व्रत
सीएन, हरिद्वार। हिन्दू पंचाग के अनुसार मोहिनी एकादशी का व्रत वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्री विष्णु के निमित्त रखा जाता है। इस बार यह व्रत 19 मई को रखा जाएगा। वैशाख शुक्ल एकादशी तिथि 18 मई को प्रातः 11. 23 मिनट पर आरंभ होगी और इस तिथि का समापन 19 मई रविवार को दोपहर 01.50 मिनट पर होगा। उदयातिथि के आधार पर मोहिनी एकादशी व्रत 19 मई, 2024 को रखा जाएगा। एकादशी सब पापों को हरने वाली उत्तम तिथि है इस दिन जगत के पालनहार श्री विष्णुजी की उपासना करनी चाहिए। भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठिर को मोहिनी एकादशी का महत्व समझाते हुए कहते हैं कि महाराज ! त्रेता युग में महर्षि वशिष्ठ के कहने से परम प्रतापी श्री राम ने इस व्रत को किया। यह व्रत सब प्रकार के दुखों का निवारण करने वाला, सब पापों को हरने वाला व्रतों में उत्तम व्रत है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य मोहजाल तथा पातक समूह से छुटकारा पाकर विष्णुलोक को जाते हैं। मोहिनी एकादशी के व्रत के प्रभाव से शत्रुओं से छुटकारा मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु के अवतार प्रभु श्री राम एवं विष्णुजी के मोहिनी स्वरुप का पूजन.अर्चन किया जाता है। एकादशी तिथि पर सुबह जल्दी उठकर स्नान करके सूर्यदेव को जल अर्घ्य दें। भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरुप को मन में ध्यान करते हुए रोली, मोली, पीले चन्दन, अक्षत, पीले पुष्प, ऋतुफल, मिष्ठान आदि भगवान विष्णु को अर्पित करें। फिर धूप.दीप से श्री हरि की आरती उतारें और मोहिनी एकादशी की कथा पढ़ें। इस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जप एवं विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना बहुत फलदायी है। इस दिन भक्तों को परनिंदा, छल.कपट, लालच, द्धेष की भावनाओं से दूर रहकर, श्री नारायण को ध्यान में रखते हुए भक्तिभाव से उनका भजन करना चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें। शास्त्रों के अनुसार मोहिनी, भगवान विष्णु का अवतार रूप थी। समुद्र मंथन के समय जब समुद्र से अमृत कलश निकला, तो इस बात को लेकर विवाद हुआ कि राक्षसों और देवताओं के बीच अमृत का कलश कौन लेगा। सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। अमृत के कलश से राक्षसों का ध्यान भटकाने के लिए मोहिनी नामक एक सुंदर स्त्री के रूप में विष्णु भगवान प्रकट हुए। इस प्रकार सभी देवताओं ने भगवान विष्णु की सहायता से अमृत का सेवन किया।यह शुभ दिन वैशाख शुक्ल एकादशी का था, इसीलिए इस दिन को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। यह वही व्रत है जिसे राजा युधिष्ठिर और भगवान श्रीराम ने रखा था।
मोहिनी एकादशी की कथा
इस तिथि और व्रत के विषय में एक कथा कही जाती है। सरस्वती नदी के रमणीय तट भद्रावती नाम की सुंदर नगरी है। वहां धृतिमान नामक राजा जो चन्द्रवंश में उत्पन और सत्यप्रतिज्ञ थे, राज्य करते थे। उसी नगर में एक वैश्य रहता था जो धनधान्य से परिपूर्ण समृद्धिशाली था, उसका नाम था धनपाल वह सदा पुन्यकर्म में ही लगा रहता था दूसरों के लिए पौसला यानी प्याऊ कुआँ, मठ, बगीचा, पोखरा और घर बनवाया करता था। भगवान विष्णु की भक्ति में उसका हार्दिक अनुराग था। उसके पाँच पुत्र थे। सुमना, द्युतिमान, मेधावी, सुकृत तथा धृष्ट्बुद्धि। धृष्ट्बुद्धि पांचवा था। वह सदा बड़े.बड़े पापों में संलग्न रहता था। जुये आदि दुर्व्यसनों में उसकी बड़ी आसक्ति थी। वह वेश्याओं से मिलने के लिये लालायित रहता और अन्याय के मार्ग पर चलकर पिता का धन बर्बाद किया करता। एक दिन उसके पिता ने तंग आकर उसे घर से निकाल दिया और वह दर दर भटकने लगा। इसी प्रकार भटकते हुए भूख.प्यास से व्याकुल वह महर्षि कौँन्डिन्य के आश्रम जा पहुँचा। शोक के भार से पीड़ित वह मुनिवर कौँन्डिन्य के पास गया और हाथ जोड़ कर बोला ब्रह्मन ! द्विजश्रेष्ट ! मुझ पर दया करके कोई ऐसा व्रत बताइये, जिसके पुण्य के प्रभाव से मेरी मुक्ति हो। कौँन्डिन्य बोले वैशाख के शुक्ल पक्ष में मोहिनी नाम से प्रसिद्द एकादशी का व्रत करो। मोहिनी को उपवास करने पर प्राणियों के अनेक जन्मों के किए हुए मेरु पर्वत जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं। मुनि का यह वचन सुनकर धृष्ट्बुद्धि का चित्त प्रसन्न हो गया। उसने कौँन्डिन्य के उपदेश से विधिपूर्वक मोहिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के करने से वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर गरुड़ पर आरूढ़ हो सब प्रकार के उपद्रवों से रहित श्रीविष्णुधाम को चला गया। इस प्रकार यह मोहिनी का व्रत बहुत उत्तम है। इसके पढ़ने और सुनने से सहस्र गोदान का फल मिलता है।