धर्मक्षेत्र
आज 22 नवंबर को है काल भैरव जयंती : जब काल भैरव ने ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया
आज 22 नवंबर को है काल भैरव जयंती : जब काल भैरव ने ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया
सीएन, हरिद्वार। हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन काल भैरव जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 22 नवंबर को शाम 6 बजकर 07 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 23 नवंबर 2024 को रात 7 बजकर 56 पर समाप्त हो जाएगी। ऐसे में 22 नवंबर, शुक्रवार को काल भैरव जयंती है। भगवान काल भैरव को भूत संघ नायक के रूप में वर्णित किया गया है। पंच भूतों के स्वामी जो पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश हैं। काल भैरव जयंती का पर्व हर साल मार्गशीर्ष माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मनाया जाता है। हालांकि इस साल अष्टमी तिथि को लेकर थोड़ा कन्फ्यूजन बना हुआ है। सनातन धर्म के लोगों के लिए काल भैरव की पूजा का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जो लोग नियमित रूप से काल भैरव की पूजा करते हैं उनके घर में सदा सुख, शांति और खुशहाली बनी रहती है। इसके अलावा उन्हें भय, क्रोध, लालसा और नकारात्मक ऊर्जा आदि से भी छुटकारा मिलता है। साथ ही शत्रुओं से मुक्ति मिलती है। काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना जाता है। वैसे तो रोजाना काल भैरव की पूजा की जा सकती है। लेकिन काल भैरव जयंती के दिन बाबा की पूजा करने से साधक को विशेष फल की प्राप्ति होती है।
काल भैरव की पूजा विधि
काल भैरव जयंती के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें। स्नान आदि कार्य करने के बाद शुद्ध वस्त्र धारण करें। व्रत का संकल्प लें। भगवान शिव के साथ-साथ काल भैरव की पूजा करें। काल भैरव को काले तिल, उड़द की दाल और सरसों का तेल अर्पित करें। भैरव बाबा की प्रतिमा के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाएं। अंत में आरती करके पूजा का समापन करें। व्रत के पूरा होने के बाद काले कुत्ते को 3 से 5 मीठी रोटी जरूर खिलाएं।
ऐसे हुआ भगवान काल भैरव का जन्म
भगवान काल भैरव का प्राकट्य शिवपुराण की एक महत्वपूर्ण कथा से जुड़ा है जो उनके क्रोध, शक्ति और न्याय के प्रतीक के रूप में उनकी उपस्थिति को दर्शाती है। इस कथा के अनुसार एक बार त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच सृष्टि के सर्वोच्च देवता को लेकर विवाद हुआ। सभी देवता इस चर्चा में शामिल हुए और यह प्रश्न उठा कि कौन सबसे महान है। इस विवाद में भगवान ब्रह्मा ने अपने पांच मुखों के माध्यम से यह दावा किया कि वे सृष्टि के रचयिता हैं और इसलिए सर्वोच्च हैं। उनकी बातों में अहंकार झलक रहा था। भगवान शिव जो विनम्रता और सृष्टि की मूल चेतना के प्रतीक हैं ने उन्हें अहंकार त्यागने की सलाह दी। परंतु ब्रह्मा ने इसे अनसुना कर दिया और भगवान शिव का अपमान कर दिया। भगवान शिव ने यह अपमान सहन नहीं किया और अपने क्रोध से एक उग्र स्वरूप उत्पन्न किया। इस स्वरूप को काल भैरव कहा गया। काल भैरव एक भयानक और अजेय रूप में प्रकट हुए, जिनके हाथ में त्रिशूल और कमंडल था और उनकी गले में नरमुंड की माला थी। उनका प्रकट होना सृष्टि के संतुलन और न्याय को स्थापित करने के लिए था। भगवान काल भैरव ने ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया जिसे अहंकार का प्रतीक माना गया। इस घटना के बाद, भगवान ब्रह्मा ने अपनी गलती स्वीकार की और भगवान शिव से क्षमा मांगी। इस प्रकार, काल भैरव ने ब्रह्मा के अहंकार को समाप्त कर सत्य और न्याय की स्थापना की। हालांकि, ब्रह्मा का सिर काटने के कारण काल भैरव ब्रह्म हत्या के पाप के भागी बन गए। इस पाप के प्रायश्चित के लिए उन्होंने संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा की। अंततः वे काशी पहुंचे, जहां इस पाप से मुक्त हो गए। इसलिए काशी को मुक्ति स्थली और काल भैरव को काशी के कोतवाल कहा जाता है।