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आज नवरात्रि के तीसरे दिन है मां चंद्रघंटा की पूजा का विधान: अक्षत, चंदन और भोग के लिए पेड़े चढ़ायें

आज नवरात्रि के तीसरे दिन है मां चंद्रघंटा की पूजा का विधान: अक्षत, चंदन और भोग के लिए पेड़े चढ़ायें
सीएन, नैनीताल।
। 11 अप्रैल को नवरात्रि का तीसरा दिन है। नवरात्रि के तीसरे दिन मां के तृतीय स्वरूप माता चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना की जाती है। माता चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र बना हुआ है जिस वजह से भक्त मां को चंद्रघंटा कहते हैं।चैत्र नवरात्रि की धूम देशभर में है, मंदिरों में जयकारे गूंज रहे है और भक्त देवी की भक्ति में डूबे हैं। नवरात्रि में पूरे नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग.अलग स्वरूपों की पूजा करने का विधान है। वहीं इस पर्व के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाएगी। माना जाता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा और भक्ति करने से आध्यात्मिक शक्ति मिलती है। सिंह पर सवार माता के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्द्धचंद्र है, इसलिए माता को चंद्रघंटा नाम दिया गया है। ज्योतिषाचार्य के अनुसारए मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप की पूजा के लिए लाल और पीले फूलों का उपयोग करना चाहिए। साथ ही पूजा में अक्षत, चंदन और भोग के लिए पेड़े चढ़ाना चाहिए। इस दिन व्रत रखने के साथ ही पूरे विधि विधान से आराधना करने से माता की कृपा प्राप्त होती है। मां चंद्रघंटा का स्वरूप धर्म शास्त्रों के अनुसार, मां चंद्रघंटा का रूप अत्यंत शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनका शरीर स्वर्ण के समान उज्जवल है इनका वाहन सिंह है और इनके दस हाथ हैं जो कि विभिन्न प्रकार के अस्त्र.शस्त्र से सुशोभित रहते हैं। मां चंद्रघंटा ने राक्षसों के संहार के लिए अवतार लिया था। इनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवों की शक्तियां समाहित हैं। माता अपने हाथों में तलवार, त्रिशूल, धनुष व गदा धारण करती हैं।  सर्वप्रथम जल्दी उठकर स्नानादि के बाद साफ वस्त्र पहनें। इसके बाद घर के मंदिर की सफाई करें और गंगाजल छिड़कें। अब मां चंद्रघंटा का ध्यान करें और उनके समक्ष दीपक प्रज्वलित करें। फिर माता रानी को अक्षत, सिंदूर, पुष्प आदि चीजें अर्पित करें। माता को प्रसाद चढ़ाएं, इसमें खीर और फल के अलावा केसर-दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं। माता की आरती करें। पूजा के अंत में गलती के लिए क्षमा याचना करें और फिर प्रसादी वितरण करें। आराधना में इस मंत्र का करें जाप
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता प्रसादं तनुते मह्मम् चंद्रघण्टेति विश्रुता या ऊं देवी चंद्रघण्टायै नमः

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