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भगवान राम के अयोध्या पहुंचने पर क्या-क्या हुआ, त्रेता युग की पहली दिवाली

भगवान राम के अयोध्या पहुंचने पर क्या-क्या हुआ, त्रेता युग की पहली दिवाली
सीएन, अयोध्या।
सनातन धर्म में कार्तिक माह की अमावस्या तिथि को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है और इसी दिन को दीपावली के रूप में मनाया जाता है। लंकापति रावण का वध करके जब श्री राम अयोध्या आए थे तो कैसे नगरवासियों ने उनका स्वागत किया था। दिवाली का त्योहार पूरे भारत में बहुत उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार अच्छाई की जीत और बुराई के ऊपर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेता युग में जब भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो उनके स्वागत के लिए अयोध्यावासियों ने अपने घरों को दीयों से सजाया था। इसी खुशी के अवसर पर दिवाली का त्योहार मनाया गया था। इस दिन को याद करते हुए लोग अपने घरों को साफ-सुथरा करके दीये, मोमबत्तियाँ और रंगोली से सजाते हैं। वे भगवान राम, माता सीता और भगवान लक्ष्मण की पूजा करते हैं और अपने घरों में सुख.समृद्धि की कामना करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, उस समय अयोध्या के लोगों ने अपने प्रिय राजा के स्वागत में पूरे नगर को दीपों से सजाया और उत्सव मनाया, जो अब दीपावली के रूप में मनाया जाता है।  रामायण के अनुसार, वनवास के दौरान लंकापति रावण ने सीता का हरण किया था जिसके बाद प्रभु राम ने रावण का वध किया और सीता को वापस पाया। लंका में विजय के बाद, विभीषण को लंका का राजा बनाकर प्रभु राम अयोध्या लौटे थे। घरों की साफ-सफाई की गई। दीये और मोमबत्तियां जलाना शुरू किया गया। रंगोली बनाई गई। आतिशबाजी और पटाखे जलाए गए। एक दूसरे को मिठाइयां खिलाई गई। विभीषण ने प्रभु राम को पुष्पक विमान से विदा किया था। जब अयोध्या के निवासियों को पता चला कि प्रभु राम लंकापति पर विजय पाकर अयोध्या वापस आ रहे हैं तो सब जगह खुशियां ही खुशियां फैल गई। ऐसा यह बताया जाता है कि जैसे ही यह सूचना अयोध्या में फैली, प्रकृति भी खुश होकर खिल उठी और सूखी सरयू नदी फिर से अविरल बहने लगी। पूरे नगर में उल्लास की लहर दौड़ गई। अयोध्या के लोग अपने राजा के स्वागत के लिए दीपों से पूरे नगर को रोशन कर दिया। जिन जगहों से भी प्रभु राम गुजरे, वहां की प्रकृति का सौंदर्य निखर गया था। लोग खुशियों में पटाखे फोड़ने लगे और देवी-देवता भी पुष्पों की वर्षा कर रहे थे। जब प्रभु राम अयोध्या पहुंचे तो उन्होंने सभी को गले लगाया और अयोध्या वासियों ने उनका स्वागत पुष्पों से किया। यह दिन कार्तिक अमावस्या का था, जिसे अब दीपावली के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं और धर्म ग्रंथों के आधार पर तय हुई परंपरागत धारणाओं के अनुसार अयोध्या के पवित्र श्री राम जन्मभूमि मंदिर के इतिहास का विवरण कुछ इस प्रकार है। जब भगवान श्री राम प्रजा सहित बैकुंठ धाम चले गए तो पूरी अयोध्या नगरी मंदिर, राज महल, घर-द्वार सरयू में समाहित हो गई। मात्र अयोध्या का भू-भाग ही बच गया और वर्षों तक यह भूमि यूं ही पड़ी रही। बाद में कौशांबी के महाराज कुश ने अयोध्या को फिर से बसाया। इसका वर्णन कालिदास के ग्रंथ रघुवंश में मिलने की बात कही जाती है।

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