Connect with us

धर्मक्षेत्र

उत्तराखंड की कुल देवी मां नंदा की नवदुर्गा के रूप में पूजा जारी, नैनीताल के नयना देवी मंदिर को पौराणिक ख्याति प्राप्त

चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल। इन दिनों नैनीताल सहित कुमांऊ के विभिन्न स्थानों में उत्तराखंड की कुल देवी मां नंदा की पूजा अर्चना की जा रही है। परंपरा अनुसार सावन भांदो में जनमानस देवी को.एक बेटी के रूप में उसे पुजता है। इसके बाद उसे गाजेबाजे के साथ उसके ससुराल कैलाश पर्वत को विदा करता है। मां नंदा को सती का स्वरूप भी माना जाता है।सती भगवान शिव की अर्धांगिनी थी। कुमाऊं में नंदा को नवदुर्गा के रूप में पूजा.जाता है। यह परम्परा अल्मोड़ा व नैनीताल में सदियों से चली आ रही है। नंदा महोत्सव व नवरात्रों में नैनीताल की नयना देवी को.नवदुर्गा. के रूप में पूजे जाने की परंपरा. है। यह परंपरा अल्मोड़ा, कपकोट सहित गढ़वाल के विभिन्न स्थानों में आज भी जारी. है। नैनीताल में मां सती की आंख गिरने के कारण नैनी झील की उत्पत्ति जिक्र ग्रन्थों में मिलता है। नैनी झील व नयना मंदिर के कारण ही नैनीताल नाम की उत्पत्ति हुई। कुमाऊं में सबसे पुरानी नंदा देवी मंदिर की मान्यता अल्मोड़ा के नंदा देवी मंदिर को मिली है। लेकिन नैनीताल के नयना देवी मंदिर को भी पौराणिक ख्याति प्राप्त है। नैना या नयना देवी को भी नंदा देवी की तरह नव दुर्गा के रुप में पूजा जाता है। नैनीताल में वर्तमान मंदिर की स्थापना 1883 में की गई थी। इससे पूर्व मंदिर बोट हाउस क्लब के पास था लेकिन 1880 में महाविनाशकारी भूस्खलन के कारण वह ध्वस्त हो गया। प्रत्येक वर्ष नंदा महोत्सव के दौरान मंदिर में भाद्र शुक्ल अष्टमी को विशेष पूजा होती है। मान्यता है कि कुमाऊं की ईष्ट देवी गौरी के साथ नंदा का आगमन हुआ। नंदा चंद वंशीय राजाओं की कुलदेवी हैं। कुमाऊं में कई स्थानों पर नंदा देवी के मंदिर हैं। इनमें से एक नैनीताल के मंदिर को पौराणिक मान्यता प्राप्त है। वर्तमान मंदिर की स्थापना 1883 में मोतीराम शाह ने अंग्रेजों से सवा एकड़ भूमि लेकर की थी। इस मंदिर स्थापित मूर्ति काले पत्थर की नेपाली शैली की बनी है। मंदिर पगौड़ा व गौथिक शैली में निर्मित है। मंदिर परिसर में स्थित भैरव मंदिर व नयना मंदिर एक ही शैली से निर्मित है जबकि नवग्रह मंदिर ग्वालियर शैली में निर्मित है। अल्मोड़ा स्थित नंदा देवी मंदिर की स्थापना चन्द शासक उद्योत चन्द ने 1680 में की थी। जब कुमाऊं में मिस्टर ट्रेल कमिश्नर था तो उसने 1815 में अल्मोड़ा में मूल मंदिर को दूसरे स्थान पर स्थापित करवा दिया। बताया जाता है कि ट्रेल के आंखों की ज्योति चली गई। लोगों के सुझाव पर मंदिर फिर मूल स्थान पर स्थापित करवाया तो उसके आंखों की ज्योति वापस लौट आई। ट्रेल भी मां नंदा के आगे नत मस्तक हो गया। इस घटना का जिक्र प. बद्रीदत्त पांडे ने अपनी पुस्तक कुमाऊं के इतिहास में किया है।

More in धर्मक्षेत्र

Trending News

Follow Facebook Page

About

आज के दौर में प्रौद्योगिकी का समाज और राष्ट्र के हित सदुपयोग सुनिश्चित करना भी चुनौती बन रहा है। ‘फेक न्यूज’ को हथियार बनाकर विरोधियों की इज्ज़त, सामाजिक प्रतिष्ठा को धूमिल करने के प्रयास भी हो रहे हैं। कंटेंट और फोटो-वीडियो को दुराग्रह से एडिट कर बल्क में प्रसारित कर दिए जाते हैं। हैकर्स बैंक एकाउंट और सोशल एकाउंट में सेंध लगा रहे हैं। चंद्रेक न्यूज़ इस संकल्प के साथ सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर दो वर्ष पूर्व उतरा है कि बिना किसी दुराग्रह के लोगों तक सटीक जानकारी और समाचार आदि संप्रेषित किए जाएं।समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी को समझते हुए हम उद्देश्य की ओर आगे बढ़ सकें, इसके लिए आपका प्रोत्साहन हमें और शक्ति प्रदान करेगा।

संपादक

Chandrek Bisht (Editor - Chandrek News)

संपादक: चन्द्रेक बिष्ट
बिष्ट कालोनी भूमियाधार, नैनीताल
फोन: +91 98378 06750
फोन: +91 97600 84374
ईमेल: [email protected]

BREAKING