आपदा
उत्तराखंड : हो रहा है बड़ा बदलाव, बड़े भूकंप की संभावना से इंकार नहीं
उत्तराखंड : हो रहा है बड़ा बदलाव, बड़े भूकंप की संभावना से इंकार नहीं
सीएन, देहरादून। अभी हाल में तुर्की में आये भूकम्प में हजारों लोगों की जान चली गई। भूकंप कब और कहां आजाये इसकी भविष्यवाणी नही की जा सकती है। लेकिन भारत के हिमालयी राज्य भूकंप के लिए अतिसंवेदनशील है। ऐसा वैज्ञानिको के अध्ययन से पता चलता है। उत्तराखंड भी ऐसे ही राज्यों में शुमार है। राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान हैदराबाद के वैज्ञानिकों के मुताबिक उत्तराखंड में बड़े भूकंप की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। यहां हर साल टेक्टॉनिक प्लेट के 18 मिमि तक खिसकने से ऊर्जा भूमि के अंदर संचित हो रही है। भूमि के अंदर लगातार हो रही हलचल पर नजर रखने की वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं। इसी के तहत ऊखीमठ क्षेत्र में जीपीएस स्थापित किया जा रहा है। इसकी मदद से भूकंप की संभावनाओं के बारे में जानकारी मिल सकेगी। राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान हैदराबाद के वैज्ञानिकों की टीम तुंगनाथ घाटी के रौडू गांव में जीपीएस स्थापित करने की कवायद में जुटी है। जीपीएस की मदद से ऊखीमठ व केदारघाटी में भूमि के अंदर की हलचल का अध्ययन किया जा सकेगा। यह यंत्र एक वर्ष के बाद भूमि की गति व हलचल की रीडिंग देना शुरू करेगा, जिसके आधार पर उत्तराखंड में भूकंप की संभावनाओं का अध्ययन किया जाएगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तराखंड में भूमि के अंदर काफी मात्रा में ऊर्जा जमा हो रही है, जो किसी भी स्तर पर ठीक नहीं नहीं है। इन हालात में समय-समय पर हल्की तीव्रता के भूकंप जरूरी है, जिससे यह ऊर्जा बाहर निकले और बड़े भूकंप की संभावनाएं खत्म हों। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है, जो हालात पैदा हो रहे हैं, वह इस प्रदेश में बड़े भूकंप (8 से 9 रिक्टर स्केल) का कारण बन सकते हैं। ऐसे में व्यापक नुकसान का खतरा है। इसे ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड में अलग-अलग स्थानों पर 32 जीपीएस स्थापित किए गए हैं, जिसमें ऊखीमठ का रौडू गांव भी शामिल है। बता दें कि केदारघाटी प्राकृतिक आपदा के चलते यह क्षेत्र पहले से अति संवेदनशील श्रेणी में शामिल है। वर्ष 1991 में उत्तरकाशी और 1999 में चमोली में आए भूकंप का प्रभाव इस क्षेत्र में पड़ा है। साथ ही वर्ष 2017 में काकलीमठ घाटी में भी भूकंप से जमीन के अंदर काफी दरारें पड़ी थी। भू-वैज्ञानिक एन पूर्णचंद्र राव के अनुसार, उत्तराखंड के हिमालयी इलाकों की प्लेटों पर तनाव काफी बढ़ा है, जो कभी भी निकल सकता है, जिससे एक बड़ा भूकंप उत्तराखंड में आ सकता है, जिसका असर दिल्ली तक रहेगा। वैज्ञानिक डॉ सुशील कुमार रोहिल्ला का कहना है कि 1905 के कांगड़ा और 1934 के बिहार नेपाल की सीमा पर भूकंप आए। इसके बाद उत्तराखंड का ही क्षेत्र ऐसा है जहां भूकंप आने का खतरा हो सकता है, लेकिन दुनिया में ऐसी कोई अभी टेक्नोलॉजी नहीं है जो यह बता सके कि भूकंप किस निश्चित समय पर आएगा। हालांकि उत्तराखंड में बड़ा भूकंप आएगा, इस बात को लेकर भी उन्होंने मना नहीं किया है। तुर्की के भूकंप के बाद उत्तराखंड समेत देश के पहाड़ी राज्यों में सभी को इस बात की चिंता है कि अगर इतना बड़ा भूकंप भारत में आएगा तो फिर क्या स्थिति होगी। वहीं उत्तराखंड भूकंप के लिहाज से जोन 5 में आता है। ऐसे में उत्तराखंड में भूकंप के दौरान होने वाले नुकसान को कम करने को लेकर आपदा प्रबंधन विभाग भी तैयारियों की बात कह रहा है। हां ये सच है कि उत्तराखंड में बड़े भूकंप की संभावना से इंकार तो नहीं ही किया जा सकता है। राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान हैदराबाद वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी अमित कुमार बंसल के मुताबिक उत्तराखंड में बड़े भूकंप की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। भौगोलिक स्तर पर हो रहे परिवर्तन से यह खतरा बना हुआ है। भूमि के अंदर हो रही लगातार हलचल के अध्ययन के लिए रौडू में जीपीएस स्थापित करने के लिए भूमि का चयन किया जा रहा है। इस उपकरण की मदद से भूमि के अंदर की हलचल की माप मिलेगी, साथ ही भूकंप की संभावनाओं के अध्ययन में भी मदद मिलेगी।
भूकंप क्या है और उससे अपनी सुरक्षा कैसे करे
भूकंप, पृथ्वी की निचली सतह मे, अचानक से कंपन्न उत्पन्न होना जिससे, पृथ्वी की सतह भाग की परतों मे गैसों के असंतुलन के कारण जो वेग उत्पन्न होती है, उन्हीं वेगों के माध्यम से संपीडन उत्पन्न होता है तथा धरातल की उपरी सतह पर हलचल शुरू होती है। उसके साथ ही वेगों की तीव्रता की गति के अनुसार, पृथ्वी की उपरी सतह फटना व धीरे-धीरे धसना शुरू होती है। कभी-कभी भूकंप की तीव्रता की गति इतनी होती है कि भवन, इमारते गिर जाती है। जलाशयों मे उफान आ जाता है तथा कई बार सुनामी तथा भूस्खलन तक का कारण भी भूकंप बन जाता है। भूकंप की गणना रिएक्टर मे होती है। दो-तीन रिएक्टर सामान्य माना जाता है जबकि, सात तथा उससे रिएक्टर बहुत ही तीव्र व खतरनाक भूकंप माने जाते जो कि, भारी तबाही के रूप होते है। यदि योजना बना कर काम करे तो, किसी भी संकट से बचा जा सकता है। ठीक उसी प्रकार भूकंप आने के दौरान तथा उसके बाद भी सुरक्षा तथा सावधानी रखी जा सकती है।
भूकंप से अपनी सुरक्षा कैसे करे
भूकंप के आते ही जैसे ही हलका सा भी कंपन्न महसूस करे घर, ऑफिस या बंद बिल्डिंग से बहार रोड पर या खुले मैदान मे खड़े हो जाये। घर मे गैस सिलेंडर तथा बिजली का मेन स्वीच निकाल दे। ना तो वाहन चलाये न ही वाहनों मे यात्रा करे। कही भी सुरक्षित तथा ढके हुए स्थान पर खड़े हो जाये। किसी भी गहराई वाले स्थान, कुए, तालाब, नदी, समुद्र तथा कमजोर व पुराने घर के पास खड़े ना होए। भूकंप आने से पहले, वैज्ञानिको द्वारा की गई भविष्यवाणी तथा प्राक्रतिक संकेतों पर भी ध्यान दे, सुरक्षा तथा सावधानी बरते व भूकंप से बचे।