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अल्मोड़ा

25ं अगस्त 1942 सालम क्रांति में जब नर सिंह व टीका सिंह हो गये थे शहीद

25ं अगस्त 1942 सालम क्रांति में जब नर सिंह व टीका सिंह हो गये थे शहीद
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल।
आजादी के आंदोलन में सालम क्षेत्र के क्रांतिवीरों का योगदान स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। 25 अगस्त 1942 को आज ही के दिन आजादी की लड़ाई के दौरान जैंती के धामद्यो में ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लेते हुए चौकुना गांव निवासी नर सिंह धानक और कांडे निवासी टीका सिंह कन्याल शहीद हो गए थे। जब बगवाल से दो दिन पहले ही वीरखम्मम मैदान रात में मशालों से जगमगा उठा। ब्रिटिशों ने सालम के क्रांतिवीरों का मनोबल गिराने के लिए आजादी के नायक प्रताप सिंह बोरा, मर्चू राम, डिकर सिंह धानक, उत्तम सिंह बिष्ट, राम सिंह आजाद, केशर सिंह आदि क्रांतिकारियों को जेलों में ठूंस दिया था। क्रांतिकारियों के गांव कांडे, थामथोली, मझाऊं, सैनोली, दाड़िमी, चौकुना, बरम, नौगांव आदि में महिलाओं, बच्चों को अनेक यातनाएं दी गई। इसके बावजूद क्रांतिकारियों में देश प्रेम का जज्बा कमजोर नहीं हुआ। गांव-गांव क्रांतिवीरों की सभाएं होने लगीं और आंदोलन तेज हो गया। 25 अगस्त 1942 को सालम के कई गांवोंमें क्रांतिकारियों ने ब्रिटिशों के खिलाफ सीधा मोर्चा खेल दिया।
25 अगस्त 1942 सालम क्रांति का सूत्रपात
23 जून 1942 को शहरफाटक मे श्री हरगोविंद पंत द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराकर, एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया। जिसकी खबर मल्ला सालम के पटवारी रघुवर दत्त को मिली तो वह आनन-फानन में शहरफाटक पहुंच गया। उसने बलपूर्वक सभा को भंग कर राष्ट्रीय ध्वज को उतार दिया गया। इस बात की प्रतिक्रिया स्वरुप कांग्रेस कमेटी मल्ला सालम द्वारा 1 अगस्त 1942 को तिलक जयंती के उपलक्ष में 11 स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने और सभा करने का संकल्प लिया गया. इस कार्य को पूरा करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में जन जागरण और चेतना का व्यापक अभियान चलाया गया। तिलक जयंती के संकल्प को 1 अगस्त को शहर फाटक, सांगण, देवलखान, बसंतपुर, झालडुंगरा तथा तल्ला सालम के जैंती, चौखुरा, नौगांव आदि स्थानों मे राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर तथा सभाएं आयोजित कर पूरा किया गया। स्वाधीनता आन्दोलन की चेतना के विस्तार के लिए 12,अगस्त 1942 से सांगण मे कौमी सेवा दल का कैम्प लगाने का प्रस्ताव किया गया जिसके लिए राम सिंह आजाद को कैम्प संयोजक, प्रताप सिंह बोरा और भगवान सिंह धानक को प्रशिक्षक तथा हरिदत्त उपाध्याय को कैंप कमांडर चुना गया। कैंप आयोजित करने के लिए व्यापक तैयारियां चल रही थी। क्षेत्र के युवाओं ने बड़ी संख्या में कौमी एकता दल में भर्ती की पेशकश की जिसकी भनक स्थानीय प्रशासन को लग गई। प्रशासन द्वारा अल्मोड़ा के जिलाधिकारी को रिपोर्ट दी गयी कि बागी दल की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए सेना की मदद दी जाए. लेकिन जिलाधिकारी ने नायब तहसीलदार भुवन चंद्र, पेशकार भवानी दत्त को सभी पट्टी के पटवारी, लाइसेंसदार, पुलिस तथा अन्य संसाधन से सेना के बिना ही, बागी दल को गिरफ्तार और नियन्त्रित करने के आदेश दिए। यह दल पूर्ण तैयारी और 7- 8 बंदूकों सहित सालम क्षेत्र को रवाना हुआ। 15 सत्यग्रहियो को नौगांव में घेर कर गिरफ्तार कर लिया। वारन्ट गिरफ्तारी दिखाने को लेकर थानेदार वीर सिंह से गंभीर विवाद भी हुआ। नरसिंह धानक और टीका सिंह कन्याल जनयुद्ध में शहीद हो गए गिरफ्तार किए गए 15 सत्यग्रहियों मे सर्वश्री रेवाधर पाँडे, राम सिंह, हरसिंह बिष्ट, कमलापति, बाबूराम अग्रवाल,भवान सिंह धानक, लक्ष्मण सिंह क्वैराला आदि प्रमुख थे जिन्हें हांक कर रात में ही जानवरो की तरह अल्मोड़ा को ले जाया जाने लगा. इस बात की आसपास के ग्रामीणों में बहुत तीखी प्रतिक्रिया हुई। रात मे ही हजारों की संख्या मे ग्रामीण जलती मशाल और लाठी-डंडे लेकर नारे बाजी करते हुए अल्मोड़ा देवीधूरा मार्ग पर वीरखम्ब के मैदान मे सरकारी दल के पहुंचने से पहले पंहुच गए।मशालें और देशभक्ति के नारों ने रात्रि में युद्ध का वातावरण तैयार कर दिया था। सरकारी दल ने झाड़ियों मे छिपकर अपनी जान बचाई. बीरखम्ब का मैदान भगदड़ के उपरान्त जूतों और चश्मों से भरा पड़ा। जैंती, सालम,शहरफाटक से देवीधूरा तक का क्षेत्र लगभग आजाद हो गया। रोज ही जुलूस निकलते। क्षेत्र मे हुकूमत कमजोर पड़ जाने से अंग्रेजों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं और इस पूरे सालम क्षेत्र में पुनः प्रभावी ब्रिटिश राज की स्थापना के लिए जिलाधिकारी अल्मोड़ा ने बड़े स्तर पर विचार-विमर्श किया और यह निर्णय लिया कि चूंकि सत्याग्रहियों द्वारा पूरे सालम क्षेत्र को 24-25 अगस्त 1942 को जैंती में एकत्रित होने का आह्वान किया है, सालम क्षेत्र का दमन करने का यह अच्छा मौका है। 1000 ब्रिटिश सैनिकों का दल 25 अगस्त को जैंती पहुंचा। स्थानीय जनता ने भारत माता की जय, शहीदों की जय के नारों के साथ ब्रिटिश फौज का मुकाबला किया। ब्रिटिश फौज ने गोलीबारी की, भीड़ तितरबितर होने लगी। इसी दौरान गोली लगने से चौगुना के नरसिंह धानक और कांडे के टीका सिंह कन्याल इस जनयुद्ध में शहीद हो गए। इस सैनिक दमन का कोई विशेष प्रभाव नहीं हुआ लेकिन ब्रिटिश हुकूमत को अपनी हनक बरकरार रखने का भ्रम बना रहा। इस कुर्बानी से आजादी की लड़ाई और तेज हो गई। सालम के संघर्ष को जनक्रांति कहा जाने लगा। अल्मोड़ा जनपद में अल्मोड़ा, चनौदा, द्वाराहाट, चौखुटिया मे भी व्यापक संघर्ष हुआ. द्वाराहाट के मदनमोहन उपाध्याय भी एक बड़े जननायक के रूप में उभरे। उधर पश्चिमी अल्मोड़ा मे सल्ट क्षेत्र में भी एक बड़ा आन्दोलन चल रहा था जिसमे 5 सितम्बर 1942 को खुमाड़ मे बडा गोलीकांड हुआ जिसमें 4 वीर शहीद हुए।
शहीदों के गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित
आजादी के आंदोलन में सर्वस्व न्यौछावर करने वाले सालम के स्वतंत्रता सेनानियों के गांव आज भी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहे हैं। नर सिंह धानक का गांव चौकुना, शिव दत्त पांडे का गांव दन्योली, प्रताप बोरा, लक्ष्मण सिंह बोरा का गांव दाड़िमी, दुर्गा सिंह कुटौला का गांव तड़ैनी, लीलाधर शर्मा का गांव बक्सवाड़ समस्याओं से जूझ रहे है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के गांव के लोगों को आज भी सड़क के लिए चार पांच किमी की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है। शहीद दिवस के दिन हर साल धामद्यो में अनेक नेता पहुंचते हैं। विकास की घोषणाएं होती हैं लेकिन आज तक शहीदों के गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।

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