चमोली
देश के 12 राज्यों से आए 114 साहित्यकारों ने बालसाहित्य के विभिन्न पक्षों पर की चर्चा
देश के 12 राज्यों से आए 114 साहित्यकारों ने बालसाहित्य के विभिन्न पक्षों पर की चर्चा
सीएन, गैरसैण/चमोली। अल्मोड़ा से प्रकाशित बच्चों की पत्रिका बालप्रहरी तथा श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम द्वारा श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम गैरसैण, उत्तराखंड में 13,14 तथा 15 जून 2025 को बालसाहित्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश के 12 राज्यों से आए 114 साहित्यकारों ने बालसाहित्य के विभिन्न पक्षों पर चर्चा की। संगोष्ठी के प्रारंभ में श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम गैरसैंण के परियोजना प्रबंधक गिरीश डिमरी ने सभी का स्वागत करते हुए बच्चे और बाल साहित्य विषय पर अपने विचार रखे। उच्च शिक्षा विभाग उत्तराखंड की पूर्व निदेशक एवं उत्तराखंड भाषा संस्थान में निदेशक रही डॉ. सविता मोहन ने कहा कि बच्चों के लिए लिखते समय हमें बच्चों के मनोविज्ञान को समझते हुए बच्चा बनना होगा। उन्होंने कहा कि सबसे पहले शिक्षकों, अभिभावकों तथा साहित्यकारों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जोड़ना होगा, तभी हम बच्चों तक वैज्ञानिक सोच पहुंचा पाएंगे। वरिष्ठ बाल साहित्यकार डॉ. राकेश चक्र मुरादाबाद ने कहा मोबाइल आज के दौर में बहुत ही जरूरी हो गया है। इसका सदुपयोग करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल के बाद मोबाइल एक नए विकल्प के रूप में उभरा है। सहारनपुर से आए बालसाहित्य रचनाकार डॉ. आरपी सारस्वत ने कहा कि बच्चों में पठन-पाठन की संस्कृति घटती जा रही है। इसके लिए एक अभिभावक व शिक्षक बतौर हम बड़े लोग जिम्मेदार हैं। हम स्वयं पुस्तकें नहीं पढ़ रहे हैं। खरीद कर घर नहीं ले जा रहे हैं। तब इसके लिए हमें बच्चों को दोष नहीं देना चाहिए। वरिष्ठ बाल साहित्यकार रमेशचंद्र पंत द्वाराहाट ने कहा कि वर्तमान दौर में बालसाहित्य बहुत लिखा जा रहा है। परंतु बच्चों तक बाल साहित्य नहीं पहुंच रहा है। उन्होंने कहा कि बालसाहित्य की पुस्तकों का मूल्य अधिक होने से बच्चों की पहुंच से पुस्तकें दूर हैं। बरेली से आए वरिष्ठ साहित्यकार आचार्य नरेंद्र देव ने कहा कि इंटरनेट के आज के दौर में साहित्यकारों के लिए लेखन के अवसरों में वृद्धि हुई है। कहानीकार सुधा जुगरान ने कहा कि बच्चों को मात्र उपदेशात्मक साहित्य थमाना ठीक नहीं है। बच्चों के साहित्य में मनोरंजन एवं चित्रों का समावेश भी जरूरी है। अगरतला त्रिपुरा से आए युवा साहित्यकार अभिक कुमार ने कहा कि बाल साहित्य में कल्पना व यथार्थ दोनों का होना जरूरी है। भारत ज्ञान विज्ञान समिति धनबाद झारखंड से जुड़े हेमंत जायसवाल ने कहा कि नई शिक्षा नीति के तहत बच्चों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जोड़ने की कवायद की गई है। बच्चे क्या, क्यों तथा कैसे सवाल करना सीखें ऐसा पाठ्यक्रम बनाने के साथ ही उसे धरातल पर उतारना भी जरूरी है। डॉ. चेतना उपाध्याय अजमेर, डॉ. सत्यनारायण सत्य भीलवाड़ा राजस्थान डॉ. पूनम अग्रवाल दिल्ली, सुभाष चंदर गाजियाबाद, दयाशंकर कुशवाहा देवरिया, किसान दीवान; बागबहरा, छत्तीसगढ़, डॉ. लक्ष्मीशंकर कुशवाहा कानपुर, दुर्गेश्वर राय गोरखपुर, डॉ. रंजना अग्रवाल दिल्ली, नीनासिंह सोलंकी भोपाल, डॉ. कृष्णा कुमारी कोटा राजस्थान, पूर्व प्रधानाचार्या दीपा कांडपाल नैनीताल, किताब कौतिक से जुड़े हेम पंत, भुवनेश्ववरी महिला आश्रम के सचिव दानसिंह रावत, प्रकाशचंद्र पांडे;हरिद्वार, डा. मदन सिंह रावत बिजनौर आदि ने विभिन्न सत्रों में अपने विचार रखे। इस अवसर पर लगभग एक दर्जन पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। दीक्षा जोशी, डॉ. रमा वर्मा, रूखसाना बानो, तूलिका सेठ, रमेश द्विवेदी, दुर्गेश्वर राय द्वारा पढ़ी गई कहानी तथा कविताओं पर उपस्थित 18 बच्चों ने अपनी टिप्प्णी देते हुए समीक्षा की। डॉ. एमएन नौडियाल मनन, डॉ. मंजू पांडे उदिता, डॉ इंदु गुप्ता, डॉ. खेमकरण सोमन, नरेंद्र पाल सिंह, डॉ. प्रीतम अपछ्याण, प्रकाश जोशी, उदय किरौला तथा नीरज पंत ने विभिन्न सत्रों का संचालन किया। संगोष्ठी की शुरुआत बाल कवि सम्मेलन से हुई। देश के विभिन्न राज्यों से आए अतिथि साहित्यकारों ने बालकवि सम्मेलन में शामिल बच्चों को बैज लगाकर सम्मानित किया। बच्चों ने दीप प्रज्ज्वलन करके संगोष्ठी का उद्घाटन किया। पुष्पलता जोशी पुष्पांजलि तथा डॉ. अशोक गुलशन की अध्यक्षता में दो चरणों में संपन्न हुए अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में 63 आमंत्रित कवियों ने बाल कविताओं का पाठ किया। सम्मान समारोह में पुष्पलता जोशी स्मृति न्यास, कलावती साहित्य पुरस्कार ट्स्ट, शिक्षाविद् केपी एस अधिकारी, प्रों जगत सिंह बिष्ट, डॉ. नीलम नेगी, डॉ. अशोक गुलशन, परमेश्वरी शर्मा, लक्ष्मी खन्ना सुमन, कैलाश सिंह डोलिया, यामिनी जोशी, डॉ. दीपा कांडपाल, उदय किरौला, श्रीमती सुधा भार्गव के सहयोग से डॉ. रंजना अग्रवाल, शिवचरण सरोहा, डॉ. आशुतोष सती, डॉ. राकेश चक्र, डॉ. कुसुम चौधरी, श्रीमती तूलिका सेठ, श्रीमती नीना सिंह सोलंकी सहित 22 साहित्यकारों को बाल साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया। संगोष्ठी के समापन समारोह में बाल प्रहरी के संपादक एवं बालसाहित्य संस्थान के सचिव उदय किरौला ने सभी का आभार व्यक्त किया। राष्ट्रीय संगोष्ठी से पूर्व 8 से 12 जून तक बच्चों की 5 दिवसीय बाल लेखन कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसका उद्घाटन उत्तराखंड शिक्षा विभाग के उपनिदेशक जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान गौचर चमोली के प्राचार्य आकाश सारस्वत ने किया।
