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देहरादून

मसूरी गोलीकांड : 2 सितंबर 1994 जिसे याद कर आज भी सिहर उठते हैं लोग

मसूरी गोलीकांड: 2 सितंबर 1994 जिसे याद कर आज भी सिहर उठते हैं लोग
सीएन, मसूरी।
उत्तराखंड राज्य बने 23 साल हो गए हैं। उत्तराखंड राज्य का गठन 9 नवम्बर, 2000 को भारत के 27 वे राज्य के रूप में हुआ। वहीं राज्य का गठन बहुत लम्बे संघर्ष और बलिदानों के फलस्वरूप हुआ। उन्हीं बलिदानों में से एक बलिदान था गोलीकांड जिसे कोई कभी नहीं भूल सकता है। पहाड़ों की रानी मसूरी में 2 सितंबर 1994 को हुए गोलीकांड को कभी नहीं भूल पाएंगे, जिसमें पुलिस की गोली से 6 राज्य आंदोलनकारी शहीद हो गए थे। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान मसूरी के झूलाघर में हुए गोलीकांड को याद कर आज भी मसूरीवासियों के तन में सिरहन दौड़ जाती है। वहीं मसूरी की शांत वादियों के इतिहास में 2 सितंबर एक ऐसे काले दिन के रूप में दर्ज है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। यह वही दिन है, जब तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार की पुलिस ने बिना चेतावनी के अकारण ही राज्य आंदोलनकारियों पर गोलियों की बौछार कर दी थी। इस गोलीकांड में मसूरी के छह आंदोलनकारी तो शहीद हुए ही एक पुलिस अधिकारी की भी गोली लगने से मौत हो गई थी। 1 सितंबर 1994 को खटीमा में भी पुलिस ने राज्य आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसाई थी। इसके बाद पुलिस व पीएसी ने 1 सितंबर की रात ही राज्य आंदोलन की संयुक्त संघर्ष समिति के झूलाघर स्थित कार्यालय पर कब्जा कर वहां क्रमिक धरने पर बैठे पांच आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया था। इसके विरोध में 2 सितंबर को नगर के अन्य आदोलनकारियों ने झूलाघर पहुंचकर शांतिपूर्ण धरना शुरू कर दिया। यह देख रात से ही वहां तैनात सशस्त्र पुलिस कर्मियों ने बिना किसी पूर्व चेतावनी के आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी। इसमें छह आंदोलनकारी बेलमती चौहान, हंसा धनाई, युवा बलबीर सिंह नेगी, रायसिंह बंगारी, धनपत सिंह और मदन मोहन ममगाईं शहीद हो गए। साथ ही बड़ी संख्या में आंदोलनकारी गंभीर रूप से घायल हुए। पुलिस ने शहर भर में आंदोलनकारियों की धरपकड़ शुरू की तो पूरे शहर अफरातफरी फैल गई। पुलिस ने आंदोलनकारियों को गिरफ्तार करने के बाद उन्हें दो ट्रकों में ठूंसकर देहरादून स्थित पुलिस लाइन भेज दिया। यहां उन्हें अमानवीय यातनाएं दी गई और फिर सेंट्रल जेल बरेली भेज दिया गया। कई आंदोलनकारियों पर वर्षो तक अदालत में मुकदमे चलते रहे। यूकेडी के केंद्रीय अध्यक्ष और राज्य आंदोलनकारी काशी सिंह ऐरी ने कहा कि आंदोलनकारियों के जिस सपने को लेकर उत्तराखंड बनाने की कल्पना की थी, वह आज पूरा नहीं हो पाया है। पहाड़ से पलायान होने के कारण गांव.गांव खाली हो गये हैं। बेरोजगारी बढ़ गई है। युवा परेशान हैं।

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