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देहरादून

जन्मदिन और पुण्यतिथि :  नारायण दत्त तिवारी ने राजनीति से ज्यादा निजी जीवन में बटोरी थी सुर्खियां

सीएन, देहरादून/नैनीताल। उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के साथ 18 अक्टूबर का दिन विशेष तौर पर जुड़ा हुआ है। उनका जन्म और मृत्यु दोनों इस दिन हुए थे। वह ऐसे मुख्यमंत्री और राजनीतिक थे जिन्होंने अपने करियर से ज्यादा सुर्खियां निजी जीवन से बटोरी, वह भी उम्र के अंतिम पड़ाव पर। अपनी राजनीतिक साख की वजह से सुर्खियों में रहने वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी का आज जन्मदिन और पुण्यतिथि दोनों है। हालांकि नारायण दत्त तिवारी का नाम उनके जीवन के अंतिम पड़ाव पर राजनीति की जगह उनके निजी जीवन की वजह से सुर्खियों में रहा। एनडी तिवारी 90 के दशक तक यूपी की राजनीति में बड़ा कद रखते थे। लेकिन खुद के जीवन के 80वें दशक में उनको निजी जीवन की उथल पुथल से दो चार होना पड़ा, जिसका खामियाजा उनके सार्वजनिक जीवन को भी भुगतना पड़ा। उज्जवला शर्मा के साथ एनडी तिवारी के रिश्ते और इन संबंधों से रोहित शेखर नाम के बेटे का होना पूरा देश जान चुका था। असल में कोर्ट में यह सच सामने आ चुका था जब एनडी तिवारी के डीएनए सैंपल रोहित के साथ मैच हो चुके थे। शुरुआती जीवन की बात करें तो एनडी तिवारी का जन्म 18 अक्टूबर 1925 को नैनीताल में हुआ था। उच्च शिक्षा इलाहाबाद में हुई थी। यहीं से छात्र संघ की राजनीति के साथ उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत भी हुई थी। 1968 में उज्जवला शर्मा के साथ मुलाकात के समय तिवारी युवा कांग्रेस के अध्यक्ष थे। उज्जवला के पिता भी तब केंद्रीय सरकार में मंत्री थे। उज्जवला का दांपत्य जीवन बहुत अच्छा नहीं था। वह अपने पति बीएम शर्मा से अलग हो चुकी थीं। दंपति को एक बेटा सिद्धार्थ भी था। दिल्ली में एनडी तिवारी और उज्जवला की मुलाकात हुई थी। उज्जवला के अनुसारए परिचय बढ़ने के साथ.साथ एनडी तिवारी की ओर से प्रेम प्रस्ताव आया था। यह प्रेम संबंध बहुत आगे बढ़ गए थे। यह सब एनडी तिवारी के जीवन का एक और पहलू बन गया था। जब उज्जवला ने सार्वजनिक तौर पर यह कहा था कि उनका और एनडी तिवारी का एक बेटा भी हैए उससे ठीक पहले रंगीन मिजाजी की एक और घटना एनडी तिवारी को भारी पड़ चुकी थी। तब साल 2009 में जब वह आंध्र प्रदेश के राज्यपाल थे, तब एक कथित सीडी सामने आई थी, जिसमें वह तीन महिलाओं के साथ दिख रहे थे। मामला रंगीन मिजाजी का ही था। जब सीडी वायरल हुई तो उनको राज्यपाल पद से इस्तीफा देना पड़ा। दूसरी ओर उज्जवला और रोहित के साथ भी एनडी तिवारी कोर्ट की लड़ाई हार चुके थे। रोहित ही एनडी तिवारी के जैविक पुत्र साबित हुए थे। उम्र के इस पड़ाव पर आखिरकार एनडी तिवारी ने रोहित और उनकी मां को स्वीकार किया। 88 साल की उम्र में उन्होंने उज्जवला शर्मा से शादी की और इस रिश्ते को मान्यता दी। इस शादी के पांच साल बाद अपने ही जन्म के दिन 18 अक्टूबर को साल 2018 में नई दिल्ली में एनडी तिवारी ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। उज्जवला मरते दम तक उनकी पत्नी रहीं।
निजी जीवन से हटकर बात करें तो एनडी तिवारी उत्तर प्रदेश की राजनीति के दिग्गज थे, जहां वह 1976 से 1989 की अवधि तक तीन बार मुख्यमंत्री रहे। जब 2002 में यूपी से उत्तराखंड अलग हुआ था, तब भी एनडी तिवारी 2002-2007 तक उत्तराखंड के सीएम रहे। राजीव गांधी के कार्यकाल में विदेश मंत्री का पद भी संभालने वाले एनडी तिवारी को एक समय पीएम पद तक का भी दावेदार माना गया था। नारायण दत्त तिवारी का 18 अक्टूबर 1925 में जन्म हुआ था। 18 अक्टूबर 2018 को उनका देहावसान हो गया। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के भूतपूर्व मुख्यमंत्री थे। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता थे। बाद में वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गये। वह उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री 1976-77, 1984-85, 1988-89 और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री 2002-07 के रूप में कार्यरत थे। 1986 और 1988 के बीच उन्होंने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में पहली बार विदेश मामलों के मंत्री और फिर वित्त मंत्री के रूप में भी कार्यरत थे। उन्होंने 2007 से 2009 तक आंध्र प्रदेश के राज्यपाल के रूप में भी रहें। नारायण दत्त तिवारी का जन्म 1925 में नैनीताल जिले के बलूटी गांव में हुआ था। तब उत्तर प्रदेश का गठन नहीं हुआ था और ये हिस्सा 1937 के बाद से भारत के यूनाइटेड प्रोविंस के तौर पर जाना जाता था। स्वतंत्रता के बाद संविधान लागू होने पर इसे उत्तर प्रदेश का नाम मिला। तिवारी के पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अधिकारी थे। अत उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी थी। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के आह्वान पर पूर्णानंद ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। नारायण दत्त तिवारी की शुरुआती शिक्षा हल्द्वानी, बरेली और नैनीताल से हुई। अपने पिता के तबादले की वजह से उन्हें एक से दूसरे शहर में रहते हुए अपनी पढ़ाई पूरी करनी पड़ी। अपने पिता की तरह ही वे भी स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल हुए। 1942 में वह ब्रिटिश सरकार की साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ नारे वाले पोस्टर और पंपलेट छापने और उसमें सहयोग के आरोप में पकड़े गए। उन्हें गिरफ्तार कर नैनीताल जेल में डाल दिया गया। इस जेल में उनके पिता पूर्णानंद तिवारी पहले से ही बंद थे। 15 महीने की जेल काटने के बाद वह 1944 में रिहा हुए। बाद में तिवारी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने राजनीति शास्त्र में एमए किया। उन्होंने एमए की परीक्षा में विश्वविद्यालय में प्रथम आये। बाद में उन्होंने इसी विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री भी हासिल की। 1947 में आजादी के साल ही वह इस विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। यह उनके राजनीतिक जीवन की पहली सीढ़ी थी।

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