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नैनीताल

राज्यपाल ने एरीज पहुंच कर सम्पूर्णानंद दूरबीन व एरीज के बावत जानकारी ली

आँखों से 4 करोड़ गुना धुंधले पिंड का पता लगाने मे सक्षम है सम्पूर्णानंद दूरबीन
सीएन, नैनीताल।
नैनीताल शहर से पैदल मार्ग तीन किमी व मोटर मार्ग 9 किमी मनोरा गाँव की पर्वत की चोटी ओर वहॉ स्थित देश का आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज)। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार के अंतर्गत देश मे अग्रणी शोध संस्थानों मे एक नित नई खोज व शोध मे निरंतर प्रयासरत है साथ ही उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र मे भारत के सबसे बड़े 3.6 मीटर ऑप्टिकल दूरबीन सहित कई अन्य दृश्य- प्रकाशीय दूरबीनो को भी संचालित करता है। आज यहॉ की मुख्य दूरबीन सम्पूर्णानंद दूरबीन की स्वर्णजयंती वर्षगाँठ समारोह हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। मंगलवार को प्रदेश के राज्यपाल गुरूमीत सिंह ने एरीज पहुंच कर मुख्य दूरबीन सम्पूर्णानंद दूरबीन व एरीज के बावत जानकारी ली। 17 अक्टूबर 1972 राजकीय वेधशाला (अविभाजित उत्तरप्रदेश) अब वर्तमान मे उत्तराखंड नैनीताल के मनोरा पीक मे इस दूरबीन की स्थापना कि गई थी। माकूल विशेष भौगोलिक परिस्थितिया , घने जंगलों को घिरी चोटी का ख़ुबसूरत नैसर्गिक सौंदर्य ओर शहर की रोशनी से दूर रात का खुला आकाश इन सब अनुकूल परिस्थियों ने ही खगोलविदों को अपनी ओर आकर्षित किया होगा कि वे बिना किसी व्यधान के आसानी से अंतरिक्ष के ग्रहों पिंडो तारो का प्रेक्षण कर सकें व सटीक जानकारियां हासिल कर सकें । और वहॉ दूरबीन की स्थापना के लिए विशेष योगदान के लिए दूरबीन का नाम प्रसिद्ध शिक्षाविद, तत्कालीन शिक्षा मंत्री व पूर्व मुख्यमंत्री डॉ सम्पूर्णानंद के नाम पर रखा गया। 104 सेमी की ये दूरबीन माइक्रोमीटर सटीकता के साथ कतारबद्ध दो दर्पण प्रणाली है, जो तारो सितारों व आकाशगंगाओ का स्पष्ट सटीक छवियों बनाने मे पूरी तरह सक्षम है। ब्रह्माण्ड के लक्षित पिंड को ये सटीक लक्ष्य निर्धारण व दिशा निर्देशन मे कई घण्टो तक प्रेक्षण कर सकती है। शुरुआती दौर मे फोटोग्राफिक फ़िल्म व तस्वीरों के सहयोग से प्रेक्षण व शोध किये जाते थे। परंतु वर्ष 1990 के बाद दूरबीन को चार्ज कपलड डिवाइस (सीसीडी) से जोड़ दिया गया जिससे वैज्ञानिकों को सुदूर अंतरिक्ष के तारों व आकाशगंगाओ सहित अन्य पिंडो का गहरायी से जाकर अध्य्यन करने मे विशेष सहायता मिली। दूरबीन मंद प्रकाश वाले धुंधले आकाशीय पिंडो का पता लगाने मे भी सक्षम है। सुदूर उस पिंड का भी पता लगा सकती है जो रात मे हमारी आँखों की देखने की क्षमता से लगभग 4 करोड़ गुना अधिक धुंधला दिखता है। खगोलविद इस दूरबीन से ली गयी तस्वीरों व प्रेक्षणों से हमें अंतरिक्ष की उपरोक्त( शुरआत मे लिखे) सवालों के सटीक जवाब व जानकारी देने के लिए प्रयासरत है । साथ ही समय समय पर इस दूरबीन से हुई नवीन व बडी खोज से भी हमे अवगत कराते आये हैं। साथ ही नैनीताल को खगोल जगत के विश्व पटल मे एक पहचान भी मिली है।
जहॉ आज भी अधिकतर ये मानते है कि यहॉं दिन मे चाँद तारे दिखते है बल्कि ऐसा नहीं अपितु चाँद तारो की खोज मे वैज्ञानिक यहॉ नित नई शोध के लिए दिन रात अकल्पनीय मेहनत कर आकाश के पिंडो तारो ग्रहों की गतिविधियों की नई खोज व नित नई घटनाओं की सटीक जानकारी हमे पँहुचाते हैं। पास की कोई चीज़ हो तो उसे देखा जा सकता है, छुआ जा सकता है, परखा जा सकता है, पर आकाश की लाखों करोड़ों किमी दूर ज्योति,प्रकाश, टिमटिमाते तारो, ग्रहों, उपग्रहों को ना तो हम छू सकते है ना ही वहाँ तक पहुँच सकते हैं। सिर्फ अटकलें ही लगा सकते हैं ओर कल्पना के ख्याली पुलाव ही बना सकते हैं। हमारी इन्ही अटकलों को, मन मे आकाश के तारों, ग्रहों, मंदाकिनियों के हज़ारों उमड़-घुमड़ करते प्रश्नों व अंतरिक्ष मे होने वाली हर घटना व शोध के लिए जो शसक्त माध्यम है वो है दूरबीन और बिना दूरबीन के आदमी आसमान मे अरबो तारो मे लगभग 3000 तारे ही देख सकता है, जहॉ पिंड भी मात्र एक तारे की तरह दिखते हैं। दूरबीन की नजर से आसमान मे कहीं अधिक तारे व पिंडो को आसानी से देखा व पहचाना जा जाता है जिस आकाशीय ज्योत को हमारी आंखे नहीं देख पाती टेलिस्कोप उन ज्योतियो को भी ग्रहण कर लेती हैं। वर्तमान दौर मे खगोलविद दूरबीन की सहायता से आकाश के चप्पे चप्पे का का अध्यनन करने मे समर्थ हैं। 17 अक्टूबर को नैनीताल स्थित 104 सेमी टेलिस्कोप सम्पूर्णानंद टेलिस्कोप अपने 50 वी वर्षगाँठ की स्वर्ण जयंती मना रही है। सन 1970 से 72 तक अथक प्रयासों के बाद 17 अक्टूबर 1972को ये पूर्णतः स्थापित होकर कर आज 2022 तक आकाश मे कोसो दूर झाँकने ब वहॉं अध्ययन करने मे निरन्तर अग्रसर है, ये हमारे अपितु नैनीताल व उत्तराखंड के लिए गर्व का विषय है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर की खोजो के साथ सैकड़ो शोध पत्र प्रकाशित कर नैनीताल का नाम खगोल के क्षेत्र मे देश ही नही वरन विदेशों मे भी जाना जाता है। यहॉ तक कि नासा भी इस टेलिस्कोप से की गई एक शोध का लोहा मान चुका है।

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