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नैनीताल

गोविंद बल्लभ पंत के आत्मबल से अयोध्या में मंदिर से श्री राम की मूर्ति नहीं हटी

सीएन, नैनीताल। 22 जनवरी को अयोध्या में भव्य राम मंदिर का उद्घाटन होने जा रहा है. पूरे देश को भव्य राम मंदिर के उद्घाटन का इंतजार है. इतिहास की बात करें तो अयोध्या जिस जगह पर श्रीराम का भव्य मंदिर बन कर तैयार हो गया है बहुत से लोगों को पता नहीं है कि जी मंदिर को बाबरी मस्जिद का नाम दिया गया था। वह भगवान श्री राम का मंदिर था. इतिहास के मुताबिक जिस जगह पर राम मंदिर बनकर तैयार है वहां पर 22-23 दिसंबर 1949 की रात में रामलला की मूर्ति प्रकट हुई थी मंदिर में मूर्ति प्रकट होते ही आसपास के लोगों ने मंदिर में आकर श्री राम का दर्शन करना शुरू कर दिया था। दूर-दूर से लोग आकर मंदिर में भजन कीर्तन शुरू कर दिया लेकिन भजन कीर्तन के साथ-साथ तनाव की स्थिति भी पैदा हो गई. जानकार बताते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू देश में हालत बिगड़ने के चलते मंदिर के पक्ष में नहीं थे. इसके लिए जवाहरलाल नेहरू ने 26 दिसंबर 1949 को तत्कालीन घटना में दखल देने के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत को पत्र और टेलीग्राम के माध्यम से देश के हालत खराब और बुरे परिणामों की हवाला देते हुए गोविंद बल्लभ पंत पर मंदिर मूर्ति हटाने के लिए दबाव बनाने लगे लेकिन गोविंद बल्लभ पंत मंदिर से मूर्ति हटाने में किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की इसके बाद मामला कोर्ट में जाने के बाद जवाहरलाल नेहरू फिर से गोविंद बल्लभ पंत पर मंदिर से रामलला की मूर्ति को हटाने के लिए दबाव बनाने लगे इसके बाद 17 अप्रैल 1950 को एक बार फिर से जवाहरलाल नेहरू ने गोविंद बल्लभ पंत को पत्र लेकर गोविंद बल्लभ पंत के ऊपर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि जो लोग कभी कांग्रेस के स्तंभ हुआ करते थे आज सांप्रदायिकता ने उनके विरुद्ध कब्जा कर लिया है अपने लोगों से कहने के बाद भी अपनों लोगों ने मेरे बातों पर ध्यान नहीं दिया. मंदिर और मस्जिद के मामले में जो भी हुआ वह बहुत बुरा हुआ लेकिन सबसे बुरी बात है कि अयोध्या में जो कुछ भी हुआ अपने लोगों की मंजूरी से हुई. लेकिन पंत जी ने नेहरूजी को कहा कि स्थितियां बड़ी खराब हैं. मूर्ति हटाने का प्रयत्न किया गया तो भीड़ को नियंत्रित करना कठिन होगा. जानकारों की माने तो मूर्ति रखे जाने के तीसरे दिन 25 दिसंबर, 1949 को स्थानीय प्रशासन ने विवादित स्थल को धारा-145 के तहत कुर्क कर लिया और मूर्ति के भोग, राग, आरती तथा व्यवस्था के लिए बाबू प्रियादत्त राम जो शहर के प्रमुख रईस तथा नगरपालिका फ़ैज़ाबाद के अध्यक्ष थे, की नियुक्ति रिसीवर के रूप में कर दी। अयोध्या का प्रश्न विधानसभा में 31 अगस्त, 1950 में उठा. इसमें मुख्य मुद्दे ज़िले का सांप्रदायिक वातावरण, 6 सितंबर 1950 को अक्षय ब्रह्मचारी का प्रस्तावित अनशन तथा 14 सितंबर, 1950 को अयोध्या में सांप्रदायिक मामले के कारण शांतिभंग की आशंका के थे. जानकार मानते हैं कि जवाहरलाल नेहरू रामलला के मंदिर बनाने के पक्ष नहीं थे. तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत की आत्मबल और संकल्प के चलते मंदिर से मूर्ति नहीं हटाई गई.भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत जयंती के उत्तराखंड प्रदेश के मुख्य संयोजक और पूर्व दर्जा राज्य मंत्री उत्तराखंड सरकार गोपाल सिंह रावत का कहना है कि भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत की कुशल राजनीति और दृढ़ संकल्प का नतीजा रहा की जिस जगह को कभी मस्जिद का नाम दिया जाता था आज वह रामलाल का मंदिर है आज भव्य बनकर तैयार हो चुका है और पूरे देश को इस भव्य मंदिर में भगवान श्री राम के प्राण प्रतिष्ठा का इंतजार है.

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