नैनीताल
गर्मियों में पहाड़ के वनों को आग से भारी नुकसान का अंदेशा
2016 में पर्वतीय क्षेत्र के 4470 हैक्टेयर वनों में भीषण आग से हुआ था भारी नुकसान
इस बार पर्याप्त वर्षा व बर्फवारी नही होने से से चीड़ जंगलों में बनी है नमी की कमी
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल। इस बार जहां लगातार तापमान बढ़ रहा है वहीं शीतकालीन वर्षा व बर्फवारी नही होने के कारण अभी से सूखे की स्थित बन चुकी है। इस बार इसका असर पहाड़ के वनों में पड़ने की पूरी आशंका बन गई है। नैनीताल सहित पर्वतीय क्षेत्रों के चीड़ वनों में नमी भी समाप्त हो रही है। फिलहाल आग की दो घटनायें हुई है। लेकिन अभी तक नैनीताल वन प्रभाग के अधिकारियों ने राहत की सांस ली है। वन विभाग के अधिकारिक सूत्रों के अनुसार इस वर्ष पर्याप्त वर्षा व बर्फवारी नही होने से से चीड़ जंगलों में नमी की कमी होने लगी है। फिलहाल वन प्रभाग में आग की अभी तक कोई बड़ी घटना नही हुई है। इसके अलावा वनों को आग से बचाने के लिए कंट्रोल वर्निग का कार्य कराया जा रहा है। इसके साथ ही जागरूकता अभियान चलाने, कन्ट्रोल रूम भी स्थापित करने व अतिरिक्त कर्मी तैनात करने की कार्य योजना तैयार की गई है। मालूम हो कि 2016 में पर्वतीय क्षेत्र के 4470 हैक्टेयर वनों में भीषण आग से भारी नुकसान हो गया था। 2017 में समय-समय पर वर्षा होने के कारण आग की घटनाएं कम हुई। लेकिन इस बार 2016 की पुनरावृत्ति होने के पूरे आसार बने हुए है। इस पर वनाधिकारियों ने चिन्ता भी जाहिर की है।
मालूम हो कि बीते वर्ष समय-समय पर हो रही वर्षा के कारण वन अफसरों को इन्द्रदेव से राहत मिल रही थी। वही इस बार 2016 की पुनरावृत्ति होने की आशंका बनी हई है। इस मामले में अबकी नैनीताल हाई कोर्ट का खौफ भी बना हुआ है। बता दें कि वर्ष 2016 में उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों में भीषण आग का मामला उत्तराखंड हाई कोर्ट में पहुंच गया था। इस मामले हाई कोर्ट ने गम्भीर रूख आख्तियार कर लिया था। इसके साथ ही कड़े निर्देश भी जारी कर दिये। कोर्ट ने शासन को जहां एसडीआरएफ, एनडीआरएफ फोर्स तैनात करने के निर्देश दिये थे। वहीं 24 घंटे आग नहीं बुझने पर डीएफओ, 48 घंटे में वन संरक्षक व 72 घंटे जंगल की आग नहीं बुझने पर प्रमुख वन संरक्षक को सस्पेंड करने तक के कड़े आदेश जारी किये थे। लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सस्पेंड मामले पर स्टे दिया था। लेकिन अफसरों को अन्य आग को रोकने संबंधित आदेशों का पालन करने को लेकर इस बार भी डर बना हुआ है। मिली रिपोर्टो के मुताबिक प्रदेश के 23 हजार हैक्टेयर जंगल आग के दायरे में आते है। रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, अल्मोड़ा, चमोली व पौड़ी जिला के वन सवाधिक संवेदनशील है। पहाड़ों के चीड़ जंगलों में गर्मियों में आग लगना आम बात है। लेकिन सूखे व सरकारी मशीनरी की उदासीनता के कारण यह आग भीषण रूप रख लेती है। जंगलों में नमी नही होने के कारण आग और अधिक भयानक होती है। पहाड़ों में चीड़ के जंगलों में भारी पतझड़ होने के बाद आग की घटनायंे शुरू होती है। मार्च माह से शुरू होने पतझड़ तक वन विभाग को पूरी तैयारी करनी पड़ती है। कइ स्थानों में वनों में पतझड़ भी शुरू हो गया है। वनों की आग चीड़ जंगलों को भारी नुकसान पहुंचाती है। वहीं अब बांज वनों में चीड़ के अतिक्रमण से मिश्रित वनों को भी खतरा पैदा हो गया है।
जंगल में आग लगने की एक वजह मानव जनित
उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक(वनाग्नि एवं आपदा प्राबंधन) मान सिंह के अनुसार, जंगल में आग लगने की एक वजह मानव जनित होती है। कई बार ग्रामीण जंगल में जमीन पर गिरी पत्तियों या सूखी घास में आग लगा देते हैं, जिससे उसकी जगह नई घास उग सके। लेकिन आग इस कदर फैल जाती है कि वन संपदा को खासा नुकसान होता है। वहीं, दूसरा कारण चीड़ की पत्तियों में आग का भड़कना भी है। चीड़ की पत्तियां (पिरुल) और छाल से निकलने वाला रसायन, रेजिन, बेहद ज्वलनशील होता है। जरा सी चिंगारी लगते ही आग भड़क जाती है और विकराल रूप ले लेती है। उत्तराखंड में करीब 16 से 17 फीसदी जंगल चीड़ के हैं। इन्हें जंगलों की आग के लिए मुख्यतः जिम्मेदार माना जाता है। वहीं, पिछले साल कम बारिश होना भी जंगलों में आग लगने का एक कारण है। उन्होंने बताया कि बारिश न होने या कम होने से जमीन में आद्रता कम हो जाती है।