Connect with us

नैनीताल

अब अंतरिक्ष से आयेंगे हीरे : उल्का पिंडों में मिले

अब अंतरिक्ष से आयेंगे हीरे : उल्का पिंडों में मिले
सीएन, नैनीताल।
हम सिर्फ धरती की बात करते हैं और धरती पर ही अपनी जरूरतों की तलाश करते हैं, जबकि अनंत में फैले अंतरिक्ष में बेशकीमती बेशुमार ऐसे खजाने छिपे हैं, जिसकी हम कल्पना भी नही कर सकते। हमारी सोच से दूर वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष के छोटे पिंडों में हीरे खोज निकाले हैं। ये हीरे ऐसे वैसे नहीं, बल्कि दुर्लभ हैं। बाल जितने पतले और किसी धातु से भी अधिक ठोस हैं। अंतरिक्ष से आए उल्कापिंडों में दुर्लभ हीरे वैज्ञानिकों ने खोजे हैं। आरएमआईटी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को इस बेशकीमती खोज का श्रेय जाता है।
दुर्लभ हैं ये हेक्सागोनल हीरे
आरएमआईटी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का कहना है कि कहा कि लोंसडेलाइट दुर्लभ हेक्सागोनल हीरे अंतरिक्ष से आए हैं। सौर मंडल के शुरुआत में एक बौने ग्रह व क्षुद्रग्रह के बीच हुए टकराव से इन हीरों का निर्माण हुआ। आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने पिछले सप्ताह इनकी खोज का दावा किया है। हीरों की खोज का यह पता नया नहीं है। पहले भी अंतरिक्ष के विचरते चट्टानों और उल्का पिंडों में हीरों की खोज कर चुके हैं। ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने 12 सितंबर 22 को इसका खुलासा किया। इसका पता उन्हे अफ्रीका से लाए गए चार उल्कापिंडों से चला।
यह दुर्लभ प्रकार के अंतरिक्ष हीरे लोंसडेलाइट हैं।
बाल से भी पतले और ठोस हैं ये हीरे
वैज्ञानिको ने कहा है कि यह हीरे मानव बाल से भी अधिक पतले हैं और बहुत ही ज्यादा कठोर हैं। इनकी तुलना पृथ्वी पर पाए जाने वाले हीरों से करें तो पृथ्वी के हीरे धरती की गहराई में उच्च तापमान और दबाव से बनते हैं। इनके निर्माण की प्रक्रिया भिन्न है, जबकि उन्हे उल्का पिंड में मिले हीरे बौने ग्रह के बीच एक प्राचीन टक्कर के दौरान बने होंगे। उनका कहना है कि यह बौने ग्रह प्लूटो के बराबर विशाल क्षुद्रग्रह हो सकते हैं।
अंतरिक्ष हीरे के नाम नाम की बात करें तो यह नाम प्रसिद्ध ब्रिटिश अग्रणी क्रिस्टलोग्राफर, कैथलीन लोन्सडेल से लिया गया है। पृथ्वी के हीरे में एक घन क्रिस्टल संरचना होती है। इसके विपरीत लोंसडेलाइट में हेक्सागोनल क्रिस्टल संरचना होती है। यह अंतर है इन दोनों हीरों के बीच का।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
शोध का हिस्सा रहे ऑस्ट्रेलिया में मेलबर्न आरएमआईटी विश्वविद्यालय के डगल मैककुलोच का कहना है कि यह अध्ययन स्पष्ट रूप से साबित करता है कि लोंसडेलाइट प्रकृति में मौजूद है। वैज्ञानिकों ने लोंसडेलाइट को एक दुर्लभ प्रकार के उल्कापिंड में पाया जिसे यूरिलाइट कहा जाता है। जो इंसान के बाल से भी अधिक पतले हैं। यह शोध पीयर-रिव्यू जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित में प्रकाशित हुआ है। दावा किया है कि लोन्सडेलाइट क्रिस्टल की खोज की है जो आकार में एक माइक्रोन तक है।
मोनाश विश्वविद्यालय के एंड्रयू टॉमकिंस इस तरह से अपनी बात रखते हैं
हमें लगता है कि अगर हम एक औद्योगिक प्रक्रिया विकसित कर सकते हैं जो लोंसडेलाइट द्वारा पूर्व-आकार वाले ग्रेफाइट भागों के प्रतिस्थापन को बढ़ावा देती है, तो लोंसडेलाइट का उपयोग छोटे, अल्ट्रा-हार्ड मशीन भागों को बनाने के लिए किया जा सकता है।
ऐसे बनते हैं अंतरिक्ष में हीरे
उल्कापिंड के स्लाइस के स्नैपशॉट लेने के लिए उन्नत इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी तकनीकों का इस्तेमाल किया। विशेष रूप से उनका उपयोग लोंसडेलाइट की खोज के लिए किया और अध्ययन किया कि यह और नियमित हीरे अंतरिक्ष में किस तरह से बनते हैं। यह एक सुपरक्रिटिकल रासायनिक वाष्प जमाव प्रक्रिया की तरह है जो इन अंतरिक्ष चट्टानों में हुई है। संभवतः भयावह टक्कर के तुरंत बाद बौने ग्रह में बने होंगे। यह हीरे सुपरक्रिटिकल तरल पदार्थ से बने उल्कापिंडों में बने होंगे।
विकिपीडिया का सुपरक्रिटिकल फ्लूइड
तापमान और उसके महत्वपूर्ण बिंदु से ऊपर के दबाव पर कोई भी पदार्थ, जहां अलग-अलग तरल और गैस चरण मौजूद नहीं होते हैं, लेकिन इसे एक ठोस में संपीड़ित करने के लिए आवश्यक दबाव से कम होता है। इस परिभाषा से भी काफी कुछ साफ नजर आता है। इधर शोध करने वाले वैज्ञानिकों ने कहा कि एक सुपरक्रिटिकल तरल पदार्थ के रूप में मौजूद पहले से मौजूद ग्रेफाइट के आकार और बनावट को लगभग पूरी तरह से संरक्षित करता है।
महत्वपूर्ण है हीरों की यह खोज
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के भारतीय वैज्ञानिक डा शशिभूषण पांडेय इस खोज को लेकर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहते हैं कि यह महत्वपूर्ण खोज है। इस खोज के बाद बेशकीमती धातुओं की तलाश अब धरती से परे अंतरिक्ष में होने लगेगी। अंतरिक्ष में छोटे बड़े बेशुमार पिंड हैं और धरती से बहुत अधिक दूर भी नहीं हैं। इन तक हमारी पहुंच बन भी सकती हैं। इतना ही नही आसमानी पिंडों को धरती पर लाया भी जा सकता है। मगर इस काम में काफी समय लगेगा। जिस तरह से खगोल विज्ञान निरंतर आगे बड़ रहा है, उससे लगता है कि भविष्य में काफी कुछ हमें अंतरिक्ष से मिलने लगेगा।
श्रोत : Earth sky Image via Billy Huynh/ Unsplash.

Continue Reading
You may also like...

More in नैनीताल

Trending News

Follow Facebook Page

About

आज के दौर में प्रौद्योगिकी का समाज और राष्ट्र के हित सदुपयोग सुनिश्चित करना भी चुनौती बन रहा है। ‘फेक न्यूज’ को हथियार बनाकर विरोधियों की इज्ज़त, सामाजिक प्रतिष्ठा को धूमिल करने के प्रयास भी हो रहे हैं। कंटेंट और फोटो-वीडियो को दुराग्रह से एडिट कर बल्क में प्रसारित कर दिए जाते हैं। हैकर्स बैंक एकाउंट और सोशल एकाउंट में सेंध लगा रहे हैं। चंद्रेक न्यूज़ इस संकल्प के साथ सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर दो वर्ष पूर्व उतरा है कि बिना किसी दुराग्रह के लोगों तक सटीक जानकारी और समाचार आदि संप्रेषित किए जाएं।समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी को समझते हुए हम उद्देश्य की ओर आगे बढ़ सकें, इसके लिए आपका प्रोत्साहन हमें और शक्ति प्रदान करेगा।

संपादक

Chandrek Bisht (Editor - Chandrek News)

संपादक: चन्द्रेक बिष्ट
बिष्ट कालोनी भूमियाधार, नैनीताल
फोन: +91 98378 06750
फोन: +91 97600 84374
ईमेल: [email protected]

BREAKING