धर्मक्षेत्र
पीपल के वृक्ष व तुलसी की पूजा ही सोमवती अमावस्या का विधान
पीपल के वृक्ष व तुलसी की पूजा ही सोमवती अमावस्या का विधान
प्रो. ललित तिवारी, नैनीताल। संस्कृति में ऋतु, मास, प्रकृति, तिथि, चंद्रमा, सूर्य, ग्रह सहित पूर्णमासी एवम अमावस्या तिथि को विशेष महत्व दिया गया है। अध्यात्म, आस्था, दर्शन एवम विज्ञान मानवीय दृष्टिकोण बनाते है।मान्यता है अमावस के दिन स्नान, दान-पुण्य से लाभ मिलता है साथ ही पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। जिससे वह प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीष प्रदान करते हैं। अमावस्या तिथि हर माह के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि कहलाती है। इस वर्ष फाल्गुन माह में ये तिथि 20 फरवरी 2023 को पड़ रही है। 20 फरवरी सोमवार है, जिसकी वजह से इस तिथि को सोमवती अमावस्या कहा जाता है। इस दिन गंगा नदी और किसी अन्य नदी में स्नान कर पितरों का तर्पण और दान भी किया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास वर्ष का अंतिम मास होता है, इसलिए इसमें मंत्र जप और तप का विशेष महत्व होता है। इस दिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और पीपल के पेड़ की परिक्रमा करती हैं। इस तिथि के स्वामी पितृ माने जाते हैं। इस दिन स्नान-दान करने से पितृ दोष, कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। इस दिन भगवान त्रिकाल दर्शि शिव और भगवान विष्णु की पूजा करना शुभ होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन 5 माला गायत्री मंत्र का जाप करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन घी, दूध, दही, शहद, गंगाजल और शक्कर से शिवलिंग का अभिषेक करने से भी शुभ फल की प्राप्ति होती है। सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर 108 बार कच्चा सूत लपेटते हुए परिक्रमा करना और भगवान शिव का ध्यान अनंदायक है। जो मनोकामना पूर्ण करते। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को 5 तरह के फल अर्पित करने भी लाभप्रद है। सोमवती अमावस्या के दिन 108 माला ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप, शिवजी का अभिषेक, पितरों को जल, पीपल का एक पौधा लगाना, भगवान विष्णु और पीपल के वृक्ष, तुलसी की पूजा ही सोमवती अमावस्या का विधान है।
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