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नैनीताल

आग के दरिया मे तैरने की तैयारी : 400 डिग्री सेल्सियस्य ताप मे पहुँचेगा नासा का बैलून

लोहा पिघला देने वाले वातावरण मे इंसान व यंत्रो का पहुँचना मुश्किल इसलिए गुब्बारा छानेगा खाक
सीएन, नैनीताल।
वीनस यानी हमारा पड़ोसी ग्रह शुक्र पृथ्वी से देखने में भले ही देखने में दिलकश नजर आता हो, लेकिन इसके करीब जाने का मतलब खुद को राख में मिला देना है। मगर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा इस आग से खेलने को तैयार है। इसके लिए नासा ने पहली तैयारी को अंजाम तक पहुंचा दिया है। जिसके तहत नासा ने पहला परीक्षण किया और वीनस बैलून एरोबोट ने परीक्षण उड़ान की पहली पास कर ली है। इसकी सफलता की घोषणा नासा ने कर दी है। प्रथम परीक्षण में वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने जुलाई में नेवादा के ब्लैक रॉक डेजर्ट में वीनस बैलून प्रोटोटाइप का परीक्षण किया था। साथ ही जेपीएल के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की टीम ने ओरेगॉन के टिलमूक में अंतरिक्ष निगम के पास परीक्षण किया। परीक्षण वैज्ञानिकों की सोच के अनुसार सफल रहा। वैज्ञानिकों का कहना है कि शुक्र ग्रह की दुनिया के घने वातावरण में खुद को सुरक्षित रखना बेहद जरूरी है। क्योंकि शुक्र में तापमान 4 सौ डिग्री सेल्सियस से भी अधिक है और इतने तापमान में लोहा भी पिघल जाता है। इतने अधिक तापमान में जीवन की संभावना की कल्पना तो बेमानी है, लेकिन इसके वातावरण की पिघला देने वाली गर्मी के कारण को जानना समझना बेहद जरूरी है। इसके लिए शुक्र ग्रह के असमान में 55 किलोमीटर की ऊंचाई पर बैलून पहुंचाने का इरादा नासा का है। इस मिशन के तहत वैज्ञानिकों ने वीनस के वातावरण की परिस्थितियों के समरूप तापमान और घनत्व का मिलान करने के लिए गुब्बारे के जरिए परीक्षण किया और गुब्बारे को 1 किलोमीटर की ऊंचाई पर उतारा गया। नासा के वैज्ञानिकों का मानना है कि खतरनाक वातावरण वाले वीनस की दुनिया का पता लगाने का एक वैकल्पिक तरीका हो सकता है। नासा पासाडेना कैलिफ़ोर्निया में जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी ने 10 अक्टूबर 2022 को वैज्ञानिकों ने इस जानकारी का खुलासा किया और बताया कि एरोबोट की अवधारणा का पहला परीक्षण सफल रहा है। इस परीक्षण से वाज्ञानिकों को उम्मीद हो है कि वास्तव में एयरोबोट शुक्र के घने बादलों के बीच बह सकता है। जेपीएल के लिए उड़ान परीक्षणों के प्रमुख अन्वेषक, रोबोटिक्स टेक्नोलॉजिस्ट जैकब इज़रालेविट्ज़ ने कहा कि परीक्षण से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार जिस तरह का डिजाइन किया गया था, उड़ान में गुब्बारे ने वैसा ही प्रदर्शन किया। कहा कि हम प्रोटोटाइप के प्रदर्शन से बेहद खुश हैं। लॉन्च के बाद नियंत्रित ऊंचाई वाले स्थान पर पहुंचा। एक युद्ध जैसी स्थिति से जूझने के बाद वापस लौटा। हमने इन उड़ानों का व्यापक डेटा रिकॉर्ड किया है और अपनी पड़ोसी ग्रह की खोज करने से पहले अपने सिमुलेशन मॉडल को बेहतर बनाने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है। सेंट लुइस में वाशिंगटन विश्वविद्यालय में पॉल बायरन और एक एरोबोट विज्ञान सहयोगी ने कहा कि इन परीक्षण उड़ानों की सफलता हमारे लिए बहुत बड़ी बात है। हमने सफलतापूर्वक उस तकनीक का प्रदर्शन किया है जिसकी हमें शुक्र के बादलों की जांच के लिए आवश्यकता होगी। ये परीक्षण इस बात की नींव रखते हैं कि हम शुक्र की नर्क जैसी सतह के ऊपर लंबी अवधि के रोबोटिक अन्वेषण को कैसे प्राप्त कर सकते हैं। नासा शुक्र के वायुमंडल के उस क्षेत्र का अध्ययन करना चाहता है , जिसकी ऊंचाई सतह से बहुत कम है। लिहाजा यह योजना गुब्बारे के जरिए सफल हो सकती है। क्योंकि गुब्बारा हवा में महीनों तक तैर सकता है। साथ ही गुब्बारा शुक्र के पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर आसानी से उड़ सकता है। इतना ही नही गुब्बारारूपी यह अंतरिक्ष यान शुक्र की सतह से 52 से 62 किलोमीटर के बीच अपनी ऊंचाई बदलने में सक्षम होगा। मिशन के तहत एरोबोट अकेला होगा। वह शुक्र के वायुमंडल के ऊपर एक ऑर्बिटर के साथ मिलकर काम करेगा। अपने विज्ञान प्रयोगों के संचालन के साथ-साथ, गुब्बारा ऑर्बिटर के साथ संचार का कार्य करता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि प्रोटोटाइप मूल रूप से गुब्बारे के भीतर एक और गुब्बारा है। दबावयुक्त हीलियम कठोर आंतरिक जलाशय को भरता है। लचीला बाहरी हीलियम गुब्बारा, इस बीच, विस्तार और अनुबंध कर सकता है। गुब्बारा ऊँचा उठ सकता है या ऊँचाई में नीचे उतर सकता है। यह हीलियम वेंट्स की सहायता से ऐसा करता है। यदि मिशन टीम चाहती है कि गुब्बारा ऊपर जाए, तो वे हीलियम को आंतरिक जलाशय से बाहरी गुब्बारे में बहाते हैं। गुब्बारे को वापस नीचे लाने के लिए, हीलियम को वापस जलाशय में ले जाया जाता है। इससे बाहरी गुब्बारा सिकुड़ जाता है और अपनी कुछ उछाल खो देता है। शुक्र की सतह से 55 किमी की ऊंचाई में हवा का तापमान इतना अधिक नहीं है, और वायुमंडलीय दबाव कम तीव्र हैं। फिर भी शुक्र के वायुमंडल का यह हिस्सा अभी भी काफी कठोर हो सकता है क्योंकि बादल सल्फ्यूरिक एसिड की बूंदों से भरा होता हैं। जिससे चलते कठोर वातावरण से बचाने में मदद करने के लिए इंजीनियरों ने बहुपरत सामग्री से गुब्बारे का निर्माण किया। इस सामग्री में एक एसिड-प्रूफ कोटिंग, सौर ताप को कम करने के लिए एक धातुकरण परत और एक आंतरिक परत है जो उपकरणों को ले जाने के लिए पर्याप्त मजबूत है। यहां तक ​​कि सील भी एसिड प्रूफ है। उड़ान परीक्षणों से पता चलता है कि गुब्बारे की सामग्री और निर्माण शुक्र पर भी काम करना चाहिए। वीनस के वातावरण के अनुकूल उपयोग की जा रही सामग्री को बनाना चुनौतीपूर्ण है, और नेवादा लॉन्च और रिकवरी का परीक्षण शुक्र पर बैलून की विश्वसनीयता का विश्वास दिलाता है। शुक्र के आधिकांश हिस्से में कार्बनडाइऑक्साइड वायुमंडल है, जो ग्रीनहाउस के गायब होने के बना है। जिस कारण यह ग्रह नरक में तब्दील हो गया है। इधर वैज्ञानिकों को दो बाल पहले शुक्र के वातावरण में फॉस्फीन की खोज हुई। तभी से शुक्र के बादलों में संभावित जीवन के प्रश्न ने नए सिरे से रुचि पैदा कर दी है। नासा का गुब्बारा मिशन शुक्र के सबसे हैरान करने वाले और चुनौतीपूर्ण रहस्यों को उजागर कर सकता है।
श्रोत: EarthSky व जेपीएल के माध्यम से।
फोटो: नासा/जेपीएल-कैल्टेक के माध्यम से।

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