नैनीताल
रामपुर तिराहा कांड के दो दोषियों को उम्रकैद की सजा अहम फ़ैसला: पूरन महरा
-अब सभी आंदोलनकारी संगठनों को महत्वपूर्ण विषय पर एक मंच पर लड़ाई लड़नी होगी
सीएन, नैनीताल। प्रमुख राज्य आंदोलनकारी पूरन महरा ने मंगलवार को आयोजित पत्रकार वार्ता में कहा कि रामपुर तिराहा कांड के कुछ दोषियों को उम्रकैद की सजा हो गई यह अहम फैसला है। यह अन्य दोषियों के लिए भी मील का पत्थर साबित होगा, पर उत्तराखंड अलग राज्य की लड़ाई लड़ने वाले शहीदों के हत्यारों या हत्या की साजिश करने वालों पर हत्या करने के आरोप ही न लग पाये ये भी महत्वपूर्ण है ऐसे में असल दोषियों को सजा मिलना तो नामुमकिन ही हो जायेगा। महरा ने कहा 2 अक्टूबर 1994 को अलग राज्य की मांग के लिए दिल्ली जा रहे आन्दोलनकारियों को रामपुर तिराहा में गोली मार मौत के घाट उतार दिया गया। रामपुर तिराहा काण्ड से सम्बंधित एक मामले में सीबीआई बनाम मिलाप सिंह व अन्य के मामलों में दो पीएसी के दो तत्कालीन कांस्टेबलों को सजा सुनाई गई। रामपुर तिराहा के बर्बर कांड का दुखद पहलू है जो चार मामले मुजफ्फरनगर की कोर्ट में चल रहे हैं उनमें कोई ऐसा मुक़दमा नहीं है जिसमें शहीदों के हत्या से संबंधित मामला हो और शहीदों के हत्यारों को हत्या करने की सजा मिल सके। वरिष्ठ आन्दोलनकारी पूरन सिंह मेहरा ने कहा कि वह सभी हत्या से संबंधित मुक़दमे आरोप पत्र समय पर दाखिल नहीं हो पाये या तय ही नहीं किये जा सके और खारिज हो गये। ऐसे मामलों में हत्या करने हत्या का प्रयास करने गैर इरादतन हत्या करने के मुक़दमे ही महत्वपूर्ण होते हैं और इसमें आईपीसी की धारा 302 अब 101 लगती है। जो चार मुक़दमे चल रहे हैं। ये महिलाओं से अत्याचारों से संबंधित सीबीआई बनाम मिलाप सिंह व अन्य है। यह तत्कालीन पीएसी के कांस्टेबलों मिलाप सिंह व विरेंद्र प्रताप सिंह जिन पर आईपीसी की धारा 120 बी, 323, 354, 376, 392, 509 के तहत हैं ये दुराचार, मारपीट, नकदी व गहने आदि लूटने से सम्बंधित हैं, जिनमें 30 साल बाद प्राथमिक स्तर पर निर्णय हो पाया। दूसरा मामला सीबीआई बनाम राधामोहन द्विवेदी है। यह लगभग 16 पीड़ित महिलाओं के साथ हुए अत्याचारों, अपराधों से संबंधित शारीरिक शोषण, कपड़े फाड़े जाने, लूटपाट से जुड़े मामलों से है जिसमें अधिकांश धारायें पूर्व मुकदमे की तरह की ही हैं यह मुकदमा काफी समय तक बंद रहा। तीसरा मुक़दमा सीबीआई बनाम एसपी मिस्र है, इसमें पुलिस कर्मियों पर पर आरोप है उन्होंने षड्यंत्र के तहत आंदोलनकारी शहीदों के शवों को गायब कर दिया या गंग नहर में फेंक दिया। आईपीसी की धारा 201, 120 के तहत मामला दर्ज है चौथा मामला सीबीआई बनाम बृज किशोर व अन्य आईपीसी की धारा 211, 182, 218,120 आंदोलनकारियों पर हथियारों पेट्रोल आदि की झूठी बरामदगी दिखाई गयी है जबकि हत्या गैर इरादत हत्या से संबंधित कोई भी मुकदमा नहीं चल रहा है। उत्तराखंड आन्दोलनकारियों की हत्या से संबंधित सभी मामलों का खारिज हो जाना व किसी अपराधी को सजा न मिल पाना दिन के उजाले में किसी आश्चर्य से कम नहीं है जबकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1996 में सरकार को आदेश जारी किया शहीद उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों को दस दस लाख रुपये दे। उन्होंने कहा सभी आंदोलनकारी संगठनों को इस महत्वपूर्ण विषय पर एक मंच पर लड़ाई होगी। इस अवसर पर वरिष्ठ राज्य आन्दोलनकारी मुकेश जोशी, शाकिर अली व मुन्नी तिवारी भी उपस्थित थी