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नैनीताल

स्वर्णजयंती : एरीज की संपूर्णानंद टेलीस्कोप ने भारत को दिलाई दुनिया में पहचान

1974 में दो साल मे बनकर तैयार हुई टेलीस्कोप का 50 वॉ स्थापना दिवस आज होगा
सीएन, नैनीताल।
नैनीताल संपूर्णानंद दूरबीन की 50 वी वर्षगाँठ मंगलवार को रही है। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज), मनोरापीक, नैनीताल एक खगोलीय वेधशाला का गठन उत्तर प्रदेश राजकीय वेधशाला के नाम से उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 20 अप्रैल 1954 ई0 को वाराणसी में किया गया, तदोपरांत 1955 ई0 में नैनीताल एवं 1961 में अपने वर्तमान स्थान मनोरा पीक में ले जाया गया । सन् 2000 ई0 में उत्तराखण्ड राज्य के गठन के बाद यह राजकीय वेधशाला”के रूप में जाना जाने लगा। तत्पश्चात 22 मार्च 2004 यह भारत सरकार के अधीन एक स्वायतशासी संस्थान का रूप दिया गया। जहॉ आज भी अधिकतर ये मानते है कि यहॉं दिन मे चाँद तारे दिखते है बल्कि ऐसा नहीं अपितु चाँद तारो की खोज मे वैज्ञानिक यहॉ नित नई शोध के लिए दिन रात अकल्पनीय मेहनत कर आकाश के पिंडो तारो ग्रहों की गतिविधियों की नई खोज व नित नई घटनाओं की सटीक जानकारी हमे पँहुचाते हैं। पास की कोई चीज़ हो तो उसे देखा जा सकता है, छुआ जा सकता है, परखा जा सकता है, पर आकाश की लाखों करोड़ों किमी दूर ज्योति,प्रकाश, टिमटिमाते तारो, ग्रहों, उपग्रहों को ना तो हम छू सकते है ना ही वहाँ तक पहुँच सकते हैं। सिर्फ अटकलें ही लगा सकते हैं ओर कल्पना के पुलाव ही बना सकते हैं। हमारी इन्ही अटकलों को, मन मे आकाश के तारों, ग्रहों, मंदाकिनियों के हज़ारों उमड़-घुमड़ करते प्रश्नों व अंतरिक्ष मे होने वाली हर घटना व शोध के लिए जो शसक्त माध्यम है वो है दूरबीन और बिना दूरबीन के आदमी आसमान मे अरबो तारो मे लगभग 3000 तारे ही देख सकता है, जहॉ पिंड भी मात्र एक तारे की तरह दिखते हैं। दूरबीन की नजर से आसमान मे कहीं अधिक तारे व पिंडो को आसानी से देखा व पहचाना जा जाता है जिस आकाशीय ज्योत को हमारी आंखे नहीं देख पाती टेलिस्कोप उन ज्योतियो को भी ग्रहण कर लेती हैं। वर्तमान दौर मे खगोलविद दूरबीन की सहायता से आकाश के चप्पे चप्पे का का अध्यनन करने मे समर्थ हैं ओर आज नैनीताल स्थित 104 सेमी टेलिस्कोप सम्पूर्णानंद टेलिस्कोप अपने 50 वी वर्षगाँठ की स्वर्ण जयंती मना रही है। यहॉ तक कि नासा भी इस टेलिस्कोप से की गई एक शोध का लोहा मान चुका है। इसी कड़ी मे 17 अक्टूबर को नैनीताल मनोरा पीक स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) मे स्थित 104 सेमी व्यास की सम्पूर्णनाद दूरबीन भी अपने 50वे वर्ष पर स्वर्ण जयंती मना रहा है। सन 1969 मे दूरबीन के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद सन 1972 मे दूरबीन का निर्माण शुरू हुआ और जिसे स्थापित होने मे दो वर्ष का समय लगा और अक्टूबर 1974 को दूरबीन पूर्णतः तैयार हो गई। अविभाजित उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व तत्कालीन शिक्षा के नाम पर इस दूरबीन सम्पूर्णानंद टेलीस्कोप नाम दिया गया। तब से अब तक इस दूरबीन से सैकड़ो शोध पत्रों के साथ अंतरराष्ट्रीय शोध मे अपनी अहम भूमिका निभाई है । जिसके चलते भारत को दुनिया में अलग पहचान दिलाई है। मात्र 104 सेमी दूरबीन आकार में भले ही मामूली नजर आए, लेकिन इसके कारनामें बहुत बड़े हैं, जो दूर के तारों की चाल ढाल को देखने की क्षमता रखती है। जिसमें बायनरी तारों की खोज के महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है तो अनेक प्रकार के तारों की जानकारी जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके अलावा भी इस दूरबीन ने अनेक खोजें की हैं। 104 सेमी की इस दूरबीन के उपकरणों को पूर्वी जर्मनी से लाना पड़ा था। तब के हिसाब से यह दूरबीन अत्याधुनिक थी। मगर समय के साथ तकनीक भी विकसित होते चली गई और इसका विस्तार भी होता चला गया। जिसके चलते 1980 के दशक में सीसीडी डिजिटल कैमरे का आविष्कार हो चुका था और तत्काल इस अत्याधुनिक charge coupled divice सीसीडी कैमरे को इस दूरबीन से जोड़ दिया गया। डा शशिभूषण पांडेय कहते हैं कि इस कैमरे की सुविधा उपलब्ध हो जाने के बाद इस दूरबीन ने दूरगामी परिणाम देने शुरू कर दिए। जिसके चलते एरीज की इस दूरबीन से दूर के तारों समेत मंदाकिनी, निहारिकाएं व तारों के समूहों को देख पाने की क्षमता बड़ गई और खोज का सफर तेजी से आगे बड़ने लगा और आज हम इसकी स्वर्ण जयंती का गवाह बनने जा रहे हैं। 17 अक्टूबर 2022 को स्वर्णजयंती समारोह के उद्घाटन में वह सभी वैज्ञानिक शामिल होने जा रहे हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस दूरबीन से जुड़े रहे हैं। ये हमारे अपितु नैनीताल के लिए गर्व का विषय है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर की खोजो के साथ सैकड़ो शोध पत्र प्रकाशित कर नैनीताल का नाम खगोल के क्षेत्र मे देश ही नही वरन विदेशों मे भी जाना जाता है।

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