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नैनीताल

हमारे सौर परिवार का सबसे बड़ा पिंड पुराणों और विज्ञान में, कैसे पड़ा नाम बृहस्पति व जुपिटर

हमारे सौर परिवार का सबसे बड़ा पिंड पुराणों और विज्ञान मे, कैसे पड़ा नाम बृहस्पति व जुपिटर
बबलू चन्द्रा, नैनीताल।
बृहस्पति यानी जुपिटर हमारे सौर परिवार का सबसे विशाल ग्रह 2022 मे ट्रेंड में है और हम अभी भी इसकी मूलभूत ( बेसिक) जानकारी से कोसों दूर हैं। जबकि प्राचीन काल से ही ये अपनी विशालता के कारण मानव का ध्यान हमेशा अपनी ओर खींचता आया है। वर्तमान में 26 सितम्बर 2022 को ये 70 सालों बाद ये धरती के करीब पहुँचा है, रात के आकाश मे अनोखी छटा से आसमान को रोशन तो कर ही रहा है साथ ही आदमी का ध्यान भी अपनी ओर खींच रहा है। रात के आसमान मे तारों से अलग बड़े से बल्ब के रुप मे चमकता ये पिंड क्या है? आजकल ही क्यों दिख रहा है? तारों से अलग क्यों दिख रहा है? इतना बड़ा क्या है क्यों है? पहली मर्तबा देखने पर आपके मन मे भी ये सवाल हिचकोले मार रहे होंगे आइए जानते है ये पिंड क्या है? कैसा है? और क्यों चर्चाओं मे बना हुआ है।
विशाल पिंड का नाम बृहस्पति ओर जुपिटर क्यों पड़ा
धरती की तरह सूर्य की परिक्रमा करने वाला ये हमारे सौर मंडल का पांचवा और सबसे विशाल ग्रह है। प्राचीन काल में ही इसे पहचान लिया गया था भारतीय आख्यानों के अनुसार इसे देवों के गुरु देवगुरू बृहस्पति का नाम दिया गया था। तैत्तरीय ब्राह्मण में उल्लेख भी है- बृहस्पति हः प्रथमः जायमानः, तिष्य नक्षत्रमभिसंबभूव (जब बृहस्पति सबसे पहले प्रकट हुआ तो ये तिष्य यानी पुष्य नक्षत्र के निकट था)। महाभारत के भीष्मपर्व मे कहा गया है कि अत्यंत चमकदार प्रज्वल्लित बृहस्पति वर्ष भर विशाखा नक्षत्र के समीप रहेगा। हमारे देश की पुरानी देवकथाओं के अनुसार बृहस्पति देवताओं के गुरु थे। इसलिए बृहस्पति को गुरू भी कहते हैं। वहीं रोमनों ने इस ग्रह को जूपिटर कहा यूनाइनयो का Zeus व वैदिक है)। यूनानी व रोमन लोग जूपिटर को सबसे बड़ा देवता मानते थे। नाम भले ही इनके पौराणिक देवो के नाम है पर आज हम जानते हैं कि ये हमारी पृथ्वी की तरह सूर्य की परिक्रमा करने वाला एक विशाल पिंड है।
सबसे पहले गैलीलियो ने देखा व खोजे इसके चाँद
जानकारी बताने पर होना पड़ा पुराने जमाने के लोगों का शिकार और क्या दिया जवाब
खगोल-विज्ञान के इतिहास में वर्ष 1609 ई. विशेष महत्व रखता है इसी वर्ष इटली के महान वैज्ञानिक गैलीलियो गैलीलेई ने अपनी बनाई दूरबीन से पहली बार आकाश के पिंडो को निहारा और चाँद के अंदर तक उसके पहाड़ो को झाँका और सूर्य के काले धब्बों को पहचाना। अगले वर्ष 1610 मे गैलीलियो ने इसी दूरबीन से आकाश मे बृहस्पति ग्रह को देखा और पाया पृथ्वी की तरह ही चार चांद इसकी भी परिक्रमा कर रहे हैं। उन्होंने इसकी जानकारी अन्य खगोल के विद्वानों को दी तो अन्य ये बात मानने के लिए तैयार नहीं हुए कि हमारे चाँद के अलावा और भी चाँद हैं। वो दूरबीन से देखना भी नहीं चाहते थे। गैलीलियो ने समझाया कि मेरी दूरबीन आकाश की वस्तुओं को बड़ा बनाकर दिखाती है जबकि आप सिर्फ नेक्ड आई (नग्न आंखों) से ही आसमान देखते हैं, फिर भी वे मानने को राजी नहीं हुए। पुराणों मे बृहस्पति के चांदो का कोई जिक्र नहीं था इसलिए इस बात पर गैलीलियो को पौराणिक मतों को मानने वाले विद्वानों ज्योतिषियों का भी निशाना बनना पड़ा। उन्हें गैलीलियो ने जवाब दिया कि पुराने लोग व ज्योतिषी सिर्फ आंख व कान के धनी थे, पर मेरे पास आँख व कान के अलावा एक दूरबीन भी है, जो आकाश मे झाँकने वाली संसार की पहली दूरबीन भी है।
कितना विशाल है जूपिटर
बृहस्पति सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है जिसमे हमारी पृथ्वी के आकार के लगभग 1300 पिंड समा सकते हैं। सौर मंडल के अन्य ग्रहों को भी जोड़ दिया जाए तो भी बृहस्पति उनसे कई गुना बड़ा है। विषुवत वृत्त मे इसका व्यास एक लाख बयालीस हज़ार नौ सौ अस्सी (142980) किमी है, पृथ्वी के व्यास का 11 गुना। और धुर्वीय व्यास 1,33,500 किमी। पर बृहस्पति पृथ्वी की तरह ठोस नहीं हल्की गैसों वाला पिंड है इसलिए 1300 गुना बड़ा होने मे भी भार मे 1300 गुना भारी नहीं चूंकि इसका घनत्व पृथ्वी के घनत्व से काफी कम है (पानी का घनत्व 1 माना जाता है) पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5 है तो बृहस्पति का सिर्फ 1.3 फिर भी पृथ्वी से 318 गुना भारी है। सूर्य से दूर होने के कारण इसे एक परिक्रमा पूरी करने मे 11.86 साल लगते हैं ( जुपिटर के 12 साल हमारे एक साल के बराबर) ओर सूर्य से इसकी औसत दूरी लगभग 78 करोड़ किमी है। पृथ्वी 24 घंटे मे अपनी धुरी में एक चक्कर लगा लेती है। लेकिन बृहस्पति इतना विशाल होने के बावजूद महज 10 घंटो में अपनी धुरी मे एक चक्कर पूरा कर लेता है। एक दिन 10 घण्टो का। ओर तेज रफ़्तार से घूमने के कारण ही विषुव वृत्त में फूल गया है, इंसानों का घूमने फिरने से पेट कम होता है इसका बढ़ कर फूल गया। बृहस्पति की सतह पर आदमी का वजन ढाई गुना बढ़ जाएगा पृथ्वी मे 100 किलो है तो बृहस्पति मे 250 किलो हो जाएगा। लेकिन आदमी का यहॉ उतरना बेहद मुश्किल है।
बृहस्पति मे उतरना मानव के लिए बेहद मुश्किल
बृहस्पति का वायुमंडल बेहद जटिल व घना है जो खतरनाक जहरीली गैसों से बना है। इसके वायुमंडल मे हाइड्रोजन, एनोनिया व मीथेन गैसों की मात्रा अधिक है साथ ही ये जहरीली भी। अगर आदमी ऑक्सीजन सिलेंडर साथ लेकर भी यहॉं उतरने की कोशिश करेगा तो भी सतह मे नहीं उतर पायेगा चूंकि इसकी सतह पर इसके वायुमंडल का बहुत ज्यादा भार है जिसके नीचे फौलाफ़ की गाड़ी भी चकनाचूर हो जाएगी फिर इंसान का तो सुरमा भी नजर नहीं आएगा। अभी यहॉ उतरना मुश्किल है पर इसके चाँद पर उतर कर इसका अध्ययन कर इसकी जानकारी जुटाई जा सकती है। 29 सितम्बर को नासा का जूना उपग्रह जो 2011 मे भेजा गया था इसके चाँद यूरोपा के बेहद करीब 538 किमी पहुँचकर इसकी जानकारी जुटाएगा।
फ़ोटो- बबलू चन्द्रा
स्रोत-गुणाकर मुले अंश

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