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नैनीताल

धरती से नग्न आंखों से भी पहचाना जा सकता हैं मून गोल्डन हैंडल

धरती से नग्न आंखों से भी पहचाना जा सकता हैं मून गोल्डन हैंडल
बबलू चंद्रा, नैनीताल।
चन्द्रमा जिसे हम धरती से बिना किसी उपकरण के नेक्ड आई से भी देख सकते हैं और नित नए रंग रूप को निहारते आये हैं, इसके बहुत से किस्से कहानियां भी सुनते औऱ सुनाते हैं पर इसके ख़ुबसूरत गोल्डन हैंडल के बारे मे शायद ही सुना या देखा होगा। कभी-कभार ही मिलने वाले रोचक पहलुओं से हम अभी भी अनभिज्ञ हैं और उन्हें दरकिनार करते हैं इसी कड़ी मे खास है आज दिखने वाला मून गोल्डन हैंडल जिसे धरती से नग्न आंखों से भी पहचाना जा सकता यदि आपने पहले ये देखा हो तो आप एकदम पहचान सकते हैं, पहली मर्तबा देखने वालों को छोटी से दूरबीन से भी दिख जाएगा। धरती से औसतन तीन लाख छियासी हजार किमी (3,86000) दूर चाँद कभी धरती के निकट आ जाता है तो कभी दूर चला जाता है इसकी घटती-बढ़ती कलाओं से हम भलीभांति परिचित हैं। इसी रंग-रूप और घटते- बढ़ते स्वरूप की वजह से चाँद को अनेकों नाम दिए गए हैं। इन्ही घटती बढ़ती आकार के बीच महीने मे एक दिन ऐसा भी आता है जब उसके उत्तर पश्चिम हिस्से मे एक ऊँचे आकार का पर्वत नजर आता है हूबहू कान या कढ़ाई के एक हैंडल के आकार का। ये चाँद के ज्युरा रेंज के पर्वत है जो अमावस्या से दसवें दिन मे नजर आते है ,ये पर्वत श्रंखला 422 किमी तक फैली है और 2700 मीटर ऊंची हैं । प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि को जब इन चोटियों पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो ये रोशनी से ये खिल कर उठती है ओर रोशनी कम होने पर सुनहरे गोल्डन रंग मे रंगी हुई नजर आती हैं। ठीक वैसे जैसे हिमालय की चोटियों मे सूर्य की पहली किरणें पढ़ने पर वो सुनहरे रंग मे नजर आती है।जिस कारण इसे मून गोल्डन हैंडल नाम दिया गया है। इसके अलावा इसे मून मैडन भी कहा जाता है। एरीज नैनीताल के वरिष्ठ खगोल वैज्ञानिक शशिभूषण पांडेय बताते हैं कि चाँद की सुंदरता मे गोल्डन हैंडल का अपना एक अलग महत्व है जिसकी सुंदरता वास्तव मे लाजवाब है जिसे देखने का मौका भी महीने मे सिर्फ दो दिन ही मिलता है। शहर की चमचमाती रोशनी से अलग अंधेरी जगहों मे जा कर इस ख़ुबसूरत गोल्डन हैंडल को देखने के साथ ही अपने कैमरे मे कैद कर सकते हैं।
अखण्ड शांति का साम्राज्य है चाँद पर दो मनुष्य एक दूसरे को नही सुन सकते
चन्द्रमा पर वायुमंडल नहीं है, वर्षों पहले रहा होगा। हमारी धरती पर वायुमंडल इसलिए है क्योंकि पृथ्वी की आकर्षण शक्ति ने इसे थामे रखा है। पृथ्वी की तुलना मे चाँद बहुत छोटा है, चाँद का व्यास लगभग 3476 किमी है पृथ्वी के व्यास का एक चौथाई, द्रव्यमान भी 81 गुना कम। चाँद मे सूखे पाट, सपाट मैदान के साथ-साथ बड़े-बड़े गड्ढे (क्रेटर) तो है ही साथ ही ऊंचे-ऊंचे पहाड़ भी हैं। चाँद को जो गोलार्द्ध पृथ्वी से दिखता है वहॉ दिन के समय तापमान 100 डिग्री सेल्सियस तो रात को शून्य से नीचे 170 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चले जाता है। चाँद की आकर्षण शक्ति कम होने की वजह से उसका वायुमंडल उड़ गया है। और आज वहां असीम शांति का साम्राज्य है। वायु के माध्यम से ही आवाज एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचती है। इसलिए चाँद की सतह पर दो व्यक्ति एक दूसरे की बात सीधे नहीं सुन सकते। उन्हें एक दूसरे की बात सुनने के लिए विशेष यंत्रो की सहायता लेनी पड़ती है। कम आकर्षण शक्ति के कारण वहाँ पृथ्वी की वस्तुओं का भार भी घट (कम) जाता है। इसलिए चन्द्रमा की सतह पर उतरने के लिये मनुष्य को भारी-भरकम सूट पहनना पड़ता है।

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