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नैनीताल

कीर्तिमानों ने यादगार बनाया खगोल विज्ञान का यह सप्ताह

कीर्तिमानों ने यादगार बनाया खगोल विज्ञान का यह सप्ताह
सीएन, नैनीताल। कीर्तिमान यूं ही नही बन जाते हैं। बरसों की अथाह मेहनत, अकल्पनीय सोच और आम आदमी से उपर वैज्ञानिकों की लंबी तपस्या के बाद वह पल आता है और इतिहास के स्वर्णिम पन्नो में दर्ज हो जाता है। इस सप्ताह मुख्यतहः पृथ्वी से करोड़ो किलोमीटर दूर वैज्ञानिकों ने दो घटनाओं को अंजाम तक पहुंचाया, जिसमें एक पृथ्वी की सुरक्षा से जुड़ा था तो दूसरा एक दूसरी पृथ्वी की तलाश का प्रयास था। इन दोनों बड़ी घटनाओं को अंजाम तक पहुंचाने का पूरा पूरा श्रेय अमेरिकी अंतरिक्ष नासा को जाता है। इनके अलावा तीसरी बड़ी घटना कई दशक बाद बृहस्पति का पृथ्वी के करीब पहुंचना था। इन तीन घटनाओं ने खगोल विज्ञान जगत को यादगार बना दिया।
डार्ट (DART) अंतरिक्ष यान टकराया क्षुद्रग्रह से
26 सितंबर का वह लम्हा , उन वैज्ञानिकों की धड़कने बड़ा देने वाला रहा होगा, जिन्होंने इस मिशन के पीछे अपनी जिंदगी के कई कीमती बरस झोंक दिए थे। यह नासा का डार्ट मिशन था। जिसमे 26 सितंबर को धरती से एक करोड़ किलोमीटर से भी अधिक दूर क्षुद्रग्रह डिडिमोस से अंतरिक्ष यान टकरा गया था और उस पिंड का रास्ता बदल दिया। यह लगभग असंभव था, एक नैनो सेकंड की चूक भी इस मिशन को धराशाई कर जाती। मगर अचूक रहा और पृथ्वीवासियों के लिए महान उपलब्धि ने सुमार हो गई। मिशन के तहत नासा ने 24 नवंबर 2021 में इसे लॉन्च किया था । नासा ने एक जोड़े क्षुद्रग्रह को भेदने की तैयारी में लगा दिए थे और कैलिफोर्निया के वैंडेनबर्ग स्पेस फोर्स बेस से इस अंतरिक्ष यान को स्पेसएक्स फाल्कन 9 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया था। लंबी यात्रा तय करने के बाद यान डिफोर्मोस व डिडिमोस का रास्ता बदल दिया। इस मिशन में यान डिडीमोस बी से जा टकराया। पूरी दुनिया ने इसका लाईव प्रसारण देखा और हम सब इस कामयाबी के गवाह बन गए। डार्ट का लक्ष्य क्षुद्रग्रह डिडिमोस की दिशा बदलना है। जिसमें एक का आकार 2,500 फीट (780 मीटर) व्यास का है। इसका साथी डिडिमोस बी 525 फीट (160 मीटर) व्यास है।
पृथ्वी के सबसे बड़े दुश्मन हैं एस्टीराइड
दरसल असमान की ऊंचाईयों में विचरते एस्टीरॉयड हमारी धरती के सबसे बड़े दुश्मन हैं, जो अतीत में कई बार पृथ्वी को क्षतिग्रस्त कर चुके हैं। जिसके घाव आज भी धरती के कई हिस्सों में मौजूद हैं। धरती से टकराने वाले पिंडों से बचाव के लिए यह प्रयोग बेहद जरूरी था। लिहाजा नासा का यह प्रयोग सफल रहा । साथ ही इस प्रशिक्षण की सफलता ने भविष्य में पृथ्वी की सुरक्षा का ठोस उपाय भी ढूंढ लिया।
दूसरा कीर्तिमान: जूनो की यूरोपा में इंसान के लिए धरती की तलाश
मानव के रहने के लिए दूसरी धरती की तलाश वर्तमान में सबसे बड़ी खोज है। इस बड़ी तलाश में नासा के अंतरिक्ष यान ने 29 सितंबर 22 को बृहस्पति ग्रह के उपग्रह यूरोपा के असमान में उड़ान भरी और यूरोपा की धरती के सतह का नक्शा हम तक पहुंचा दिया। इस उड़ान में जूनो ने यूरोपा की धरती की कई तस्वीरें कैमरे में कैद की । जिसमें बेहद करीब की तस्वीरों को कैमरे में उतारा और उन्हे धरती पर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा तक पहुंचा दिया। इन तस्वीरों के जरिए अब वैज्ञानिक यूरोपा की धरती पर जीवन की संभावनाओं को ढूंढेंगे। यह मिशन भी नासा का कामयाबी भरा मिशन रहा। जिसे लेकर वैज्ञानिकों का कहना है कि अब यूरोपा की धरती के अनेक रहस्य सामने आयेंगे। मगर इतना तय है कि मानव की दूसरी धरती की तलाश में मिल रही सफलता से तय है कि वह दिन दूर नही, जब सुदूर अंतरिक्ष में मानव का दूसरा आशियाना बनाने में जरूर कामयाब हो सकेंगे। नई जमीन पर भले ही हम नहीं पहुंच पाएं, लेकिन आने वाली पीढ़ियां जरूर अंतरिक्ष में पहुंचकर , दूर बहुत दूर से पृथ्वी को देखेंगे और कहेंगे कि यह हमारी धरती है।
यूरोपा की सतह की ली महत्त्वपूर्ण तस्वीरें
जूनो ने अपनी इस उड़ान में यूरोपा की उच्चतम-रिज़ॉल्यूशन से (0.6 मील, या 1 किलोमीटर, प्रति पिक्सेल) से ली गई तस्वीर एकत्र की हैं। जिनमें यूरोपा की बर्फ से ढकी ऊपरी संरचना, आंतरिक हिस्सा , सतह की भीतरी संरचना और आयनमंडल का महत्वपूर्ण तस्वीरें जुटाई हैं। अब वैज्ञानिक प्राप्त डेटा का अध्ययन करेंगे और तय करेंगे कि किस तरह से यूरोपा की धरती मानव के लिए उपयोगी हो सकती है। बहरहाल इस दिशा में अभी कुछ कह पाना जल्दबाजी होगी। बारीकी से अध्ययन करने के बाद महत्वपूर्ण तथ्य सामने आयेंगे।
नासा ने 2011 में लॉन्च किया था जूनो को
अंतरिक्ष अनुसन्धान परिषद् नासा ने बृहस्पति व उसके उपग्रहों के अध्ययन के लिए पृथ्वी से 5 अगस्त 2011 में जूनो अंतरिक्ष यान को लॉन्च किया था। लगभग 5 वर्ष लंबी यात्रा की और 5 जुलाई 2016 में बृहस्पति ग्रह के करीब पहुंचा। नासा को इस अभियान पर लगभग 1.1 अरब डॉलर खर्च हुआ है। पृथ्वी से बृहस्पति पहुँचने में लगभग 5 साल का लंबा सफर तय करना पड़ा।
जूनो 2021 में भी पहुंचा था यूरोपा के करीब
जूनो अंतरिक्ष यान पहले भी यूरोपा की सैर कर चुका है। पिछली बार वह 16 अक्टूबर 2021 को यूरोपा के करीब पहुंचा था। तब उसने लगभग 82,000 किमी की दूरी से ली यूरोपा के चित्र लिए थे, जबकि इस बार 29 सितंबर, 2022 को जूनो व उपग्रह यूरोपा के बीच दूरी मात्र 538 किमी रह जाएगी। बहरहाल जूनो अभी यूरोपा से 83397 किमी की दूरी पर है।
70 साल बाद पृथ्वी के करीब पहुंचा बृहस्पति
26 सितंबर का दिन ब्रह्माण्ड में दुर्लभ खगोलीय घटना घटी थी। इस घटना में बृहस्पति व पृथ्वी के बीच की दूरी 591 मिलियन किमी की दूरी रह गई थी । हमारे सौरमंडल में ऐसे अवसर कम ही देखने को मिलते हैं, जब ग्रहों की आपसी दूरी बेहद कम रह जाती हैं। बृहस्पति औसत दूरी के लिहाज से यह दूरी बहुत कम रह गई थी । गुरु सौर मंडल का 5वां ग्रह है, जबकि पृथ्वी सूर्य से तीसरा स्थान का ग्रह है।सामान्य दिन में सूर्य से 460,718,000 मील (लगभग 741453748.99 किमी) दूर होता है। आकार में बृहस्पति पृथ्वी से 11 गुना बड़ा है।
शानदार यादगार इस नजारे के हम सब बने गवाह
सोमवार की शाम पश्चिम के आसमान में सूर्य अस्त हो रहा था तो ठीक इसके विपरित पूरब दिशा में बृहस्पति उदय हो रहा था । यह नजारा बेहद दर्शनीय था। आसमान की इस सुंदरता का गवाह बनने के लिए खगोल प्रेमी पूरी दुनिया में तैनात थे। नजदीक होने के कारण इसकी चमक काफी बड़ी हुई नजर आई। लिहाजा इसे पहचान पाना बेहद आसान हो गया। सभी तारों की तुलना में काफी बड़ा नजर आया। इसकी चमक देखने लायक थी।
12 वर्ष का होता है बृहस्पति इस एक साल
यह आप जानते ही होंगे कि यह विशाल ग्रह गैसीय है और तारा बनते बनते रह गया और आज हम इसे ग्रह के रूप में देखते हैं। यह भी कह सकते हैं कि स्वाभाविक रूप से, बृहस्पति एक तारा नहीं है। इसे सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में लगभग 12 साल लग जाते हैं। इसका मतलब हुआ कि गुरु का एक वर्ष पृथ्वी के 12 साल के बराबर होता है। यह भी जान लीजिए कि बृहस्पति का एक दिन 9.93 घंटे का होता है और पृथ्वी पर 24 घंटे का दिन होता है।
श्रोत: EarthSky.org, NASA
And Aries scientist, India

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