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पर्यावरण

हिमालय है तो हम हैं..गंगोत्री के भैंरोंघाटी में ऑल वेदर रोड परियोजना के लिए देवदार के 6,000 पेड़ काटे जायेंगे

सीएन, नैनीताल। आज से पहले धरती पर इतना स्वार्थी और मूर्ख मनुष्य कभी भी नहीं रहा होगा जो पृथ्वी के फेफड़ों को अंधाधुँध काटकर स्वयं खुशहाल जीवन जीने की कोशिश कर रहा है, और वह भी ‘माता भूमि पुत्रोऽहं पृथिव्या’ कहने-मानने वाली वैदिक संस्कृति के पुजारियों के देश में। इस देश के सभी संसाधनों को अंबाडाणी के श्रीचरणों में समर्पित करने वाले अभियान में बस्तर जैसे छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के अधिसूचित क्षेत्रों में लाखों बहुमूल्य पेड़ काटकर आदिवासियों की जमीन छीनी जा रही है। तो विकास के नाम पर गंगोत्तरी के नीचे भैरों घाटी में चार धाम ऑल वेदर रोड परियोजना के लिए देवदार के 6,000 पेड़ काटे जायेंगे। इस परियोजना में सड़क की चौड़ाई को लेकर सत्ता और पर्यावरणविदो, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा क्षेत्रीय जनता के बीच शुरू से ही विवाद रहा है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया तो उसने राष्ट्रीय सुरक्षा और सीमा क्षेत्रों के सामरिक महत्व को देखते हुए, भैरों घाटी से झाला तक के 20.6 कि.मी. लंबे स्ट्रेच में सड़क की चौड़ाई 10 मीटर तक रखने की अनुमति दिसंबर 2021 में दी, जिसमें 7.5 मीटर कारेजवे (दो-लेन) और शोल्डर शामिल हैं। उत्तराखंड सरकार ने 6 दिसंबर, 2025 को इस स्ट्रेच के लिए वन भूमि के गैर-वानिकी उपयोग को मंजूरी दी है, लेकिन पर्यावरण समूहों की आपत्तियों के कारण काम अभी रुका हुआ है। अब इन 6,000 देवदार वृक्षों को बचाने के लिए रासस के पुराने चावल डॉ. मुरली मनोहर जोशी अपने साथ डॉ. कर्ण सिंह के अलावा रासस के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल, पर्यावरण विंग के प्रमुख गोपाल आर्य को लेकर मैदान में उतरे हैं। डॉ. जोशी और डॉ. कर्ण सिंह के नेतृत्व में इन पेड़ों को बचाने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम ‘हिमालय है तो हम हैं’ यात्रा के रूप में 7 दिसंबर, 2025 को हरसिल (उत्तरकाशी) में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। यह यात्रा 6 दिसंबर से शुरू हुई थी और इसमें दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों से आए पर्यावरणविद्, वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता, एक्टिविस्ट और स्थानीय निवासियों ने भाग लिया। कार्यक्रम में भगीरथी इको-सेंसिटिव जोन (BESZ) में सड़क चौड़ीकरण के खिलाफ एकजुटता का संदेश देते हुए प्रतिभागियों ने काटने के लिए चिह्नित देवदार के पेड़ों की पूजा की और उनके तनों पर रक्षा सूत्र बाँधे, जो पेड़ों की रक्षा का प्रतीक थे। कार्यक्रम में डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित किया, जिसमें उन्होंने कहा कि विकास, सुरक्षा और हिमालय संरक्षण एक-दूसरे से जुड़े हैं। उन्होंने जोर दिया कि ‘हिमालय सुरक्षित हो तो राष्ट्र सुरक्षित’ और यह यात्रा राष्ट्रीय, वैश्विक और स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। डॉ. कर्ण सिंह भी आंदोलन के प्रमुख नेता के रूप में जुड़े हुए थे और उन्होंने भी वर्चुअल संबोधन दिया। सामाजिक कार्यकर्ता गीता गैराला ने हिमालय और गंगा पर एक गीत गाया, आयुष जोशी, सुरेश भाई, पूरन रावत, हेमंत ध्यानी और कल्पना ठाकुर जैसे लोगों के साथ लगभग 60-100 लोग हरसिल और भैरोंघाटी में एकत्रित हुए। यह कार्यक्रम सितंबर 2025 में डॉ. जोशी, डॉ. सिंह और 50 से अधिक नागरिक समाज के सदस्यों द्वारा सुप्रीम कोर्ट को भेजी गई अपील पर आधारित था, जिसमें 2021 के आदेश की समीक्षा की माँग की गई थी। उस आदेश में हिमालयी सड़कों को 5.5 मीटर से अधिक चौड़ा करने की अनुमति दी गई थी, जो पर्यावरणीय क्षति का कारण बन सकता है। नवंबर में दिल्ली में एक सार्वजनिक बैठक के बाद यह यात्रा आयोजित की गई। हाल के धराली बाढ़ आपदा को उदाहरण बताते हुए, प्रतिभागियों ने 20.6 किमी. लंबे स्ट्रेच (भैरोंघाट से झाला तक) के लिए 42 हेक्टेयर वन भूमि के उपयोग पर चिंता जताई, जिसमें कई दशकों पुराने देवदार पेड़ शामिल हैं। पर्यावरण समूहों की आपत्तियों के कारण काम रुका हुआ है। स्थानीय धराली गाँव के कुछ निवासियों ने कलेक्ट्रेट पर काउंटर-प्रोटेस्ट किया, दावा करते हुए कि यह सड़क सीमा जिले में नागरिक और सुरक्षा आंदोलन के लिए महत्वपूर्ण है। पेड़ों को बचाने का प्रयास जारी है, लेकिन कोई अंतिम फैसला नहीं आया है। सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया का इंतजार है। नैनीताल समाचार से साभार

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