स्वास्थ्य
जनता की जीत, स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार की गूंज, विशेषज्ञ डॉक्टर बेचैन, मरीज परेशान
जनता की जीत, स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार की गूंज, विशेषज्ञ डॉक्टर बेचैन, मरीज परेशान
सीएन, अल्मोड़ा। सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के पंडित हरगोविंद पंत जिला चिकित्सालय में ईएनटी विभाग की ओपीडी सेवाएं डॉ. मोनिका के पुनः कार्यभार ग्रहण करने के साथ पुनः प्रारंभ हो गई हैं। सामाजिक कार्यकर्ता संजय पांडे ने कहा है कि यह केवल एक नियुक्ति नहीं, बल्कि एक संघर्षशील जन आंदोलन की जीत है, सत्य और सेवा के पक्ष में खड़े हर नागरिक, पत्रकार और जनप्रतिनिधि की सामूहिक सफलता। अल्मोड़ा की जागरूक जनता, संघर्षशील मीडिया साथियों और न्यायप्रिय जनप्रतिनिधियों ने इस लड़ाई को एक आवाज़ दी। लेकिन यह जीत अधूरी है, क्योंकि बीमारी अब सिर्फ शरीर में नहीं, बल्कि सिस्टम में घर कर चुकी है। नाम न छापने की शर्त पर विभागीय और सेवानिवृत्त कर्मचारियों ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं, देहरादून स्थित महानिदेशालय के कार्यालय में ट्रांसफर-पोस्टिंग में डॉक्टरों से 5 से 7 लाख तक की अवैध वसूली की जाती है और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से 60,000 से 1 लाख तक की मांग की जाती है। यह केवल भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि जनसेवा के मंदिरों में हो रही नीलामी है, जहां योग्य डॉक्टरों को क्लिनिक से हटाकर फाइलों में बंद किया जा रहा है और मरीज लाइन में खड़े हैं, बिना इलाज के।प्रदेश में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी का हवाला दिया जाता है, जबकि वास्तविकता यह है कि महानिदेशक कार्यालय में तीन-तीन एनेस्थीसिया विशेषज्ञ प्रशासनिक कार्यों में लगाए गए हैं, प्रमुख स्वास्थ्य महानिदेशक पद पर एक वरिष्ठ गायनेकोलॉजिस्ट तैनात हैं, और देहरादून के सीएमओ एक रेडियोलॉजिस्ट हैं। क्या यह विशेषज्ञों की कमी है, या संसाधनों का जानबूझकर किया गया दुरुपयोग, अल्मोड़ा में प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक और मुख्य चिकित्सा अधिकारी दशकों से जमे हुए हैं। देहरादून के कई अधिकारी भी वर्षों से कुर्सी पकड़कर बैठे हैं।
क्या ट्रांसफर नीति कुछ विशेष लोगों पर लागू नहीं होती। क्या यह एक छुपा हुआ गिरोह है जो सिस्टम को बंधक बनाकर बैठा है। ’हम सरकार और मुख्यमंत्री से मांग करते हैं, ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़े भ्रष्टाचार की न्यायिक जांच हो। विशेषज्ञ डॉक्टरों को क्लिनिकल सेवाओं में तैनात किया जाए। प्रभावी, पारदर्शी और समयबद्ध ट्रांसफर नीति लागू हो। पर्वतीय जिलों को प्राथमिकता देते हुए विशेषज्ञों की स्थायी नियुक्तियां हों। जनता अब चुप नहीं बैठेगी। हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि जनसेवा के नाम पर व्यापार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हमारी यह लड़ाई केवल डा. मोनिका की वापसी तक सीमित नहीं है। यह लड़ाई उस पूरे तंत्र के खिलाफ है जो आम आदमी की सेहत से खिलवाड़ कर रहा है। यह लड़ाई ईमानदारी, पारदर्शिता और न्याय के लिए है और जब तक सिस्टम ठीक नहीं होता, हम शांत नहीं बैठेंगे।
