स्वास्थ्य
आज 25 अप्रैल को है विश्व मलेरिया दिवस: रोकथाम को जागरूकता पैदा करना उद्देश्य
आज 25 अप्रैल को है विश्व मलेरिया दिवस: रोकथाम को जागरूकता पैदा करना उद्देश्य
सीएन, नैनीताल। मलेरिया की रोकथाम और नियंत्रण के प्रति निवेश और प्रतिबद्धता के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए प्रतिवर्ष 25 अप्रैल को दुनिया भर में विश्व मलेरिया दिवस मनाया जाता है। पूरे विश्व की 3ण्3 अरब जनसंख्या में लगभग 106 से देश हैं जिनमें मलेरिया का खतरा है वर्ष 2012 में मलेरिया के कारण लगभग 6,27,000 मृत्यु हुई जिनमें से अधिकतर अफ्रीकी, एशियाई, लैटिन अमेरिकी बच्चे शामिल है, इसका प्रभाव कुछ हद तक मध्य पूर्व तथा कुछ यूरोप के भागों में भी हुआ। विश्व मलेरिया दिवस उन 8 आधिकारिक वैश्विक सामुदायिक स्वास्थ्य अभियानों में से एक हैं जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन, द्वारा चिन्हित किया गया है इनमें से विश्व स्वास्थ्य दिवस, विश्व रक्तदाता दिवस, विश्व टीकाकरण सप्ताह, विश्व तपेदिक दिवस, विश्व तंबाकू निषेध दिवस, विश्व हेपेटाइटिस दिवस एवं विश्व एड्स दिवस हैं। विश्व मलेरिया दिवस का वार्षिक पालन विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व में किया जाता है। दरअसल मलेरिया एक ऐसी बीमारी है जो आज भी दुनियाभर में लाखों लोगों की जान लेती है। खासकर गरीब और पिछड़े इलाकों में रहने वाले लोग इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ इस दिन को मनाने का उद्देश्य यह बताता है कि मलेरिया के खिलाफ लड़ाई को तेज करना जरूरी है ताकि हर कोईए चाहे वह कहीं भी रहता हो, सुरक्षित रह सके। ये दिन हमें याद दिलाता है कि मलेरिया केवल एक बीमारी नहीं है बल्कि यह स्वास्थ्य असमानता का भी प्रतीक है। विश्व मलेरिया दिवस को पहली बार 2008 में डब्ल्यूएचओ द्वारा मनाया गया था। इससे पहले 2001 से अफ्रीका मलेरिया दिवस मनाया जाता था। लेकिन बाद में यह महसूस किया गया कि मलेरिया एक वैश्विक समस्या है, इसलिए इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दी गई। 2025 में इस दिन की थीम है हमें मलेरिया के खिलाफ अपनी रणनीति को दोबारा सोचने, नए तरीकों को अपनाने और फिर से उत्साह के साथ काम करने की जरूरत है। इसका मकसद है लोगों को जागरूक करना कि मलेरिया का अंत केवल सरकारों से नहीं बल्कि हम सभी की भागीदारी से ही संभव है। 2022 में मलेरिया के लगभग 25 करोड़ नए मामले दर्ज किए गए और 6 लाख से ज्यादा मौतें हुईं। इनमें से 94 प्रतिशत मामले अफ्रीकी क्षेत्र में थे, लेकिन भारत और दक्षिण एशिया के कई हिस्से भी इससे प्रभावित हैं। खासकर ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में यह बीमारी अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
