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शिवसेना विवाद : राज्यपाल पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, लोकतंत्र के लिए दुखद

शिवसेना विवाद : राज्यपाल पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, लोकतंत्र के लिए दुखद
सीएन, नई दिल्ली।
शिवसेना विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र के राज्यपाल पर उठाए बड़े सवाल उठाए और कहा कि वे इस मामले में राज्यपाल की भूमिका को लेकर चिंतित हैं। पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा, ‘राज्यपाल को इस क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहिए, जहां उनकी कार्रवाई से एक विशेष परिणाम निकलेगा। सवाल यह है कि क्या राज्यपाल सिर्फ इसलिए सरकार गिरा सकते हैं क्योंकि किसी विधायक ने कहा कि उनके जीवन और संपत्ति को खतरा है?’ शीर्ष न्यायालय ने कहा, ‘क्या विश्वास मत बुलाने के लिए कोई संवैधानिक संकट था? सरकार को गिराने में राज्यपाल स्वेच्छा से सहयोगी नहीं हो सकते। लोकतंत्र में यह एक दुखद तस्वीर है। सुरक्षा के लिए खतरा विश्वास मत का आधार नहीं हो सकता।’ प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने राज्यपाल से कहा कि उन्हें इस तरह विश्वास मत नहीं बुलाना चाहिए था। सीजेआई ने कहा, ‘उनको खुद ये पूछना चाहिए था कि तीन साल की सुखद शादी के बाद क्या हुआ? राज्यपाल ने कैसे अंदाजा लगाया कि आगे क्या होने वाला है?’ इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र के सत्तारूढ़ एकनाथ शिंदे गुट से कहा कि विभाजित और प्रतिद्वंद्वी गुट के बीच अंतर बहुत कम है और स्पीकर के लिए यह कहना बहुत आसान है कि यह विभाजन का मामला है या नहीं, लेकिन सवाल यह है कि पीठासीन अधिकारी के लिए प्रथम दृष्टया विचार करने के लिए क्या रूपरेखा होनी चाहिए। शिंदे समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि, तत्कालीन महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार को पिछले साल सदन के पटल पर बहुमत साबित करने के लिए बुलाकर कुछ भी गलत नहीं किया। शिंदे समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने कहा कि 1994 के फैसले में, शीर्ष अदालत की नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था कि शक्ति परीक्षण लोकतंत्र का लिटमस टेस्ट है और मुख्यमंत्री इससे दूर नहीं रह सकता। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगर मुख्यमंत्री फ्लोर टेस्ट का सामना करने की जिम्मेदारी से बचते हैं, तो इसका मतलब है कि उनके पास सदन का बहुमत नहीं है। कौल ने खंडपीठ के समक्ष दलील दी–जिसमें जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं–कि यह तयशुदा कानून है कि सदन के स्पीकर को प्रथम दृष्टया यह देखना होता है कि क्या किसी राजनीतिक दल में विभाजन हुआ है और यह उसके सामने रखी गई सामग्री के आधार पर तय किया जाना है और वह लगातार पूछ नहीं सकते।

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